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सद्भाव का पैगाम दे रहे कादरबाड़ी के मुस्लिम कारीगर, जलाभिषेक के लिए कांच की गंगाजली बनाकर तैयार करते हैं इरफान

यूपी के कासगंज जिले के सोरों क्षेत्र के गांव कादरबाड़ी में मस्लिम परिवार (Muslim artisans make Gangajali) के लोग अपने हुनर के लिए जाने जाते हैं. यह कच्चे कांच को आकार देकर गंगाजली का निर्माण करते हैं. जिसके बाद कांवड़ यात्री कांच की गंगाजली लटकाकर पैदल यात्रा करते हुए शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 7, 2024, 10:30 PM IST

देखें खास रिपोर्ट

कासगंज : महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है. कासगंज में लाखों की संख्या में कांवड़ यात्री कांच की गंगाजली लटकाकर पैदल यात्रा करते हुए शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. लेकिन, कभी सोचा है कि यह गंगाजली बनती कैसे है और इसको कौन बनाता है? आपको जानकर आश्चर्य होगा की सनातन धर्म की पूजा अर्चना में काम आने वाली गंगाजली को मुस्लिम समुदाय के लोग तैयार करते हैं. आइए जानते हैं, इसे बनाने वालों का जीवन कैसा होता है? इन्हें किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है?

गंगाजली के निर्माण का कारोबार : यूपी के कासगंज जिले के सोरों क्षेत्र का गांव कादरबाड़ी उस समय सुर्खियों में आया था जब अतीक व अशरफ हत्याकांड को अंजाम देने वाले युवकों में एक युवक अरुण मौर्य इसी गांव का रहने वाला निकला था. आज यह गांव एक बार फिर चर्चा में है. आज इस गांव का जिक्र हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए हो रहा है. दरअसल, तीर्थ नगरी सोरों क्षेत्र के गांव कादरबाड़ी में अनेक मुस्लिम परिवार कांवड़ यात्रियों के द्वारा गंगाजल भरकर लाने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली कांच की गंगाजली के निर्माण के कारोबार में लगे हैं.

कांच के ढक्कन का निर्माण : कारीगर इरफान बताते हैं कि उनकी सात पीढ़ियों से लोग सनातन धर्म की सेवा कर रहे हैं और कांवड़ यात्रियों के लिए कांच की गंगाजली को बनाने के काम में लगे हुए हैं. कादरबाड़ी गांव में दर्जनों मुस्लिम परिवार कांच की गंगाजली बनाते हैं. यह कार्य उनकी दिनचर्या में शामिल है और उनका जीवन इसी कार्य पर निर्भर है. घर के पुरुषों व बच्चों से लेकर महिलाओं तक सभी इस कार्य में जुटे रहते हैं. गर्म भट्ठी में कांच की गंगाजली बनाना बड़ा ही मुश्किल और जोखिम भरा काम है. भट्ठी में डालकर कांच की फनल को मुलायम बनाया जाता है. फिर गर्म कांच की बंद फनल को पाइप द्वारा फूंक मारकर फुलाया जाता है, फिर उसे फ्लास्क जैसा आकार दिया जाता है. साथ ही गंगाजली को ढकने के लिए कांच के ढक्कन का निर्माण भी इसी विधि द्वारा किया जाता है.

जीवन यापन का एक मात्र साधन : कारीगर इरफान बताते हैं कि यहां लोग एक दिन की मजदूरी में 400 से लेकर 500 रुपए तक कमा लेते हैं. सबसे बड़ी बात कि सनातन धर्म की पूजा पद्धति में शामिल कांच की गंगाजली का निर्माण यहां मुस्लिम समाज के महिला व पुरुष बड़ी संजीदगी के साथ करते हैं. उनके मन में कभी कोई गुरेज नहीं होता कि मुस्लिम होते हुए भी वह हिंदू समुदाय की पूजा में प्रयोग होने वाली वस्तु का निर्माण कर रहे हैं. कांच की गंगाजली का निर्माण कार्य ही ग्राम कादरबाड़ी के मुस्लिम समाज के लोगों के जीवन यापन का एक मात्र साधन है.

हर साल रहती है गंगाजली की भारी मांग : कारीगर इरफान ने बताया कि हम सिर्फ मजदूरी के तहत कार्य करते हैं. तीर्थ नगरी सोरों के अलावा प्रदेश के अन्य स्थानों और प्रदेश के बाहर उत्तराखंड के हरिद्वार के दुकानदार कांच की गंगाजली निर्माण के लिए आर्डर देते हैं. हम दुकानदारों से गंगाजली बनाने की संख्या के हिसाब से मेहनताना लेते हैं तो गंगाजली बनाने से सबसे ज्यादा मुनाफा दुकानदारों को होता है, हमको तो सिर्फ मजदूरी ही मिल पाती है. बता दें कि हर की पौड़ी से प्रति वर्ष 15 से 20 लाख शिव भक्त कांवड़ यात्री महाशिवरात्रि अथवा अन्य पर्व पर इसी कांच की गंगाजली में जल भरकर ले जाते हैं और विभिन्न स्थानों पर बने देवालयों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. इसी कारण इस क्षेत्र में हर साल गंगाजली की भारी मांग रहती है.

कांच की गंगाजली को बनाने वाले कारीगर जावुद्दीन कहते हैं कि हम फूस की झोपड़ी में भट्ठी जलाकर गंगाजली बनाते हैं. इससे कई बार झोपड़ी में आग भी लग जाती है. हम लोग झुलस भी जाते हैं. आग लगने से काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है. इस नुकसान की भरपाई भी हमें स्वयं ही करनी पड़ती है. सरकार से हमारी मांग है कि हमें लोन दिलाया जाए, जिसके चलते हमारी पक्की भट्ठियां और पक्का कमरा बन जाए, जिससे आग लगने की घटनाओं को रोका जा सके. हमें खेती के लिए पट्टे की जमीन दी जाए, जिससे हमारे परिवारों का भरण-पोषण आसानी से हो सके.

कांच की गंगाजली बनाने वाले कारीगर सलीम कहते हैं कि इस धंधे के चलते हमारे बेटे-बेटियों की शादी विवाह में भी समस्या आती है. लोग काम बंद करने को कहते हैं लेकिन, तमाम मुश्किलों के बाद भी हम यह काम नहीं छोड़ सकते क्योंकि इस प्रकार की कांच की गंगाजली बनाना सिर्फ हम ही लोगों को आता है. यह कला कहीं दूसरी जगह नहीं पाई जाती. अगर हम नहीं बनाएंगे तो हमारे हिंदू भाई जो कांवड़ लेकर गंगा जल भरने जाते हैं तो वह गंगा जल किस में भर कर लाएंगे.



यह भी पढ़ें : प्रयागराज माघ मेला: गंगा जल का रंग हुआ लाल, श्रद्धालुओं ने शुद्ध और स्वच्छ जल की मांग की

यह भी पढ़ें : जानिए क्या कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के लिए तैयार है काशी में गंगा

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कासगंज : महाशिवरात्रि का पर्व आने वाला है. कासगंज में लाखों की संख्या में कांवड़ यात्री कांच की गंगाजली लटकाकर पैदल यात्रा करते हुए शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं. लेकिन, कभी सोचा है कि यह गंगाजली बनती कैसे है और इसको कौन बनाता है? आपको जानकर आश्चर्य होगा की सनातन धर्म की पूजा अर्चना में काम आने वाली गंगाजली को मुस्लिम समुदाय के लोग तैयार करते हैं. आइए जानते हैं, इसे बनाने वालों का जीवन कैसा होता है? इन्हें किन किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है?

गंगाजली के निर्माण का कारोबार : यूपी के कासगंज जिले के सोरों क्षेत्र का गांव कादरबाड़ी उस समय सुर्खियों में आया था जब अतीक व अशरफ हत्याकांड को अंजाम देने वाले युवकों में एक युवक अरुण मौर्य इसी गांव का रहने वाला निकला था. आज यह गांव एक बार फिर चर्चा में है. आज इस गांव का जिक्र हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए हो रहा है. दरअसल, तीर्थ नगरी सोरों क्षेत्र के गांव कादरबाड़ी में अनेक मुस्लिम परिवार कांवड़ यात्रियों के द्वारा गंगाजल भरकर लाने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली कांच की गंगाजली के निर्माण के कारोबार में लगे हैं.

कांच के ढक्कन का निर्माण : कारीगर इरफान बताते हैं कि उनकी सात पीढ़ियों से लोग सनातन धर्म की सेवा कर रहे हैं और कांवड़ यात्रियों के लिए कांच की गंगाजली को बनाने के काम में लगे हुए हैं. कादरबाड़ी गांव में दर्जनों मुस्लिम परिवार कांच की गंगाजली बनाते हैं. यह कार्य उनकी दिनचर्या में शामिल है और उनका जीवन इसी कार्य पर निर्भर है. घर के पुरुषों व बच्चों से लेकर महिलाओं तक सभी इस कार्य में जुटे रहते हैं. गर्म भट्ठी में कांच की गंगाजली बनाना बड़ा ही मुश्किल और जोखिम भरा काम है. भट्ठी में डालकर कांच की फनल को मुलायम बनाया जाता है. फिर गर्म कांच की बंद फनल को पाइप द्वारा फूंक मारकर फुलाया जाता है, फिर उसे फ्लास्क जैसा आकार दिया जाता है. साथ ही गंगाजली को ढकने के लिए कांच के ढक्कन का निर्माण भी इसी विधि द्वारा किया जाता है.

जीवन यापन का एक मात्र साधन : कारीगर इरफान बताते हैं कि यहां लोग एक दिन की मजदूरी में 400 से लेकर 500 रुपए तक कमा लेते हैं. सबसे बड़ी बात कि सनातन धर्म की पूजा पद्धति में शामिल कांच की गंगाजली का निर्माण यहां मुस्लिम समाज के महिला व पुरुष बड़ी संजीदगी के साथ करते हैं. उनके मन में कभी कोई गुरेज नहीं होता कि मुस्लिम होते हुए भी वह हिंदू समुदाय की पूजा में प्रयोग होने वाली वस्तु का निर्माण कर रहे हैं. कांच की गंगाजली का निर्माण कार्य ही ग्राम कादरबाड़ी के मुस्लिम समाज के लोगों के जीवन यापन का एक मात्र साधन है.

हर साल रहती है गंगाजली की भारी मांग : कारीगर इरफान ने बताया कि हम सिर्फ मजदूरी के तहत कार्य करते हैं. तीर्थ नगरी सोरों के अलावा प्रदेश के अन्य स्थानों और प्रदेश के बाहर उत्तराखंड के हरिद्वार के दुकानदार कांच की गंगाजली निर्माण के लिए आर्डर देते हैं. हम दुकानदारों से गंगाजली बनाने की संख्या के हिसाब से मेहनताना लेते हैं तो गंगाजली बनाने से सबसे ज्यादा मुनाफा दुकानदारों को होता है, हमको तो सिर्फ मजदूरी ही मिल पाती है. बता दें कि हर की पौड़ी से प्रति वर्ष 15 से 20 लाख शिव भक्त कांवड़ यात्री महाशिवरात्रि अथवा अन्य पर्व पर इसी कांच की गंगाजली में जल भरकर ले जाते हैं और विभिन्न स्थानों पर बने देवालयों में शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं. इसी कारण इस क्षेत्र में हर साल गंगाजली की भारी मांग रहती है.

कांच की गंगाजली को बनाने वाले कारीगर जावुद्दीन कहते हैं कि हम फूस की झोपड़ी में भट्ठी जलाकर गंगाजली बनाते हैं. इससे कई बार झोपड़ी में आग भी लग जाती है. हम लोग झुलस भी जाते हैं. आग लगने से काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है. इस नुकसान की भरपाई भी हमें स्वयं ही करनी पड़ती है. सरकार से हमारी मांग है कि हमें लोन दिलाया जाए, जिसके चलते हमारी पक्की भट्ठियां और पक्का कमरा बन जाए, जिससे आग लगने की घटनाओं को रोका जा सके. हमें खेती के लिए पट्टे की जमीन दी जाए, जिससे हमारे परिवारों का भरण-पोषण आसानी से हो सके.

कांच की गंगाजली बनाने वाले कारीगर सलीम कहते हैं कि इस धंधे के चलते हमारे बेटे-बेटियों की शादी विवाह में भी समस्या आती है. लोग काम बंद करने को कहते हैं लेकिन, तमाम मुश्किलों के बाद भी हम यह काम नहीं छोड़ सकते क्योंकि इस प्रकार की कांच की गंगाजली बनाना सिर्फ हम ही लोगों को आता है. यह कला कहीं दूसरी जगह नहीं पाई जाती. अगर हम नहीं बनाएंगे तो हमारे हिंदू भाई जो कांवड़ लेकर गंगा जल भरने जाते हैं तो वह गंगा जल किस में भर कर लाएंगे.



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