नूंहः सुपर फूड की श्रेणी में शामिल मशरूम खाने में स्वादिष्ट है. स्वाद के मामले में मशरूमन सिर्फ नॉनवेज को टक्कर देता है, बल्कि यह पोषक तत्वों का खजाना है. देश-दुनिया में बढ़ते डिमांड के कारण इसकी खेती काफी लाभदायक है. इसको ध्यान में रखते हुए राजस्थान सीमा पर स्थित हरियाणा के नूंह जिले के मुंडाका गांव को राज्य सरकार ने मशरूम विलेज घोषित किया है. यहां के किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि एवं बागवानी विभाग की ओर से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में काम कर रही है.
मशरूम में मौजूद गुणों के कारण वैश्विक स्तर पर इसकी डिमांड है. इसकी खेती आर्थिक रूप से काफी लाभदायक है. विकास गांव के अंतिम लोगों तक पहुंचे, इसके लिए राज्य के सीमा पर स्थित मुंडाका गांव को मशरूम विलेज बनाने की दिशा में कदम उठाया जा रहा है. इसके प्रोत्साहन के लिए गांवों में स्वयं सहायता समूह का गठन किया जाएगा. इसके साथ ही मशरूम लैब, बीज उत्पादन केंद्र, साल भर मशरूम की खेती के लिए एयर कंडीशन यूनिट लगाया जाएगा. ग्लोबल स्तर पर ब्रांडिंग और मार्केटिंग के लिए भी योजना तैयार की जा रही है, ताकि मुंडाका मशरूम को वैश्विक पहचान मिल सके.- डॉ. दीन मोहमद, जिला बागवानी अधिकारी, नूंह
गांव को स्पेशल ब्रांड बनाने का लक्ष्यः गांव के 43 किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए प्रशिक्षण दिलाया गया है. इनमें से 25 किसानों ने मशरूम उगाना शुरू कर दिया है. शेष किसानों को भी प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी कृषि एवं बागवानी विभाग को सौंपी गई है. मुंडाका गांव में प्रशासन की ओर से 150 किसान परिवारों को मशरूम की खेती कराने की योजना है. गांव को स्पेशल ब्रांड बनाकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है. भविष्य में गांव की मशरूम को अन्य देशों में निर्यात करने के भी योजना है.
43 किसानों को मिला विशेष प्रशिक्षणः मुंडाका गांव में सैनी समाज के लोगों की आबादी अधिक है. खेती, सब्जी उगाना व बागवानी करना सैनी समाज का पारंपरिक कार्य माना जाता है. कृषि और बागवानी में इन्हें दक्ष माना जाता है. इसी कड़ी में बागवानी विभाग की ओर से गांव के 43 किसानों को करनाल मुस्पल के महाराणा प्रताप बागवानी विश्वविद्यालय करनाल के अधीन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण दिलाकर मशरूम उगाने के लिए प्रोत्साहित किया था. इसका उद्देश्य किसानों को आधुनिक तकनीक से कम लागत पर अधिक मुनाफा वाले स्टैंडर्ड क्वालिटी के मशरूम उगाने के लिए साधन-संसाधन उपलब्ध करना है.
4 किसानों से शुरू हुआ है सफरः प्रशिक्षण लेने के बाद बीते साल 2023 में मुंडाका गांव के मात्र चार किसानों ने मशरूम की खेती को अपनाया. उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ तो बाकि किसान भी मशरूम उगाने के लिए आगे आए हैं. बागवानी विभाग के अधिकारियों के बताया कि मुंडाका के किसानों द्वारा उगाई जाने वाली मशरूम का स्पेशल ब्रांडिंग किया जाएगा. इसके लिए क्वालिटी कंट्रोल, पैकिंग, मार्केटिंग सहित सभी पहलूओं पर ध्यान दिया जाएगा.
गांवों में आधारभूत संरचना का होगा विकासः मसरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए गांव में ही कंपोस्ट यूनिट, बीज केंद्र, लैब के साथ-साथ किसानों द्वारा उगाई जाने वाली मशरूम को सुरक्षित रखने के लिए गांव में ही एयर कंडीशनर यूनिट बनाने की योजना है. किसानों को मशरूम उत्पादन के लिए गांव में मशरूम उत्पादन समूह बनाया जाएगा. किसानों द्वारा उगाई जाने वाली मशरूम लोकल मार्केट के अलावा बाहर भी बेचा जाएगा.
एक झोपड़ी यूनिट पर 37000 रुपये की सब्सिडीः करीब 300 बैग एक झोंपड़ी के यूनिट में लगाए जाते हैं. इस पर किसानों को लगभग 50 हजार की लागत आती है. यहां से करीब डेढ़ लाख की मशरूम, लगभग 200 रुपए प्रति किलो की दर से बिकती है. मुनाफा के साथ-साथ एक झोपड़ी यूनिट पर 37000 रुपये सब्सिडी भी मिलती है.
मशरूम की खेती के प्रति युवाओं का रुझानः गांव के किसानों द्वारा उगाई जाने वाली मशरूम को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जाएगी. इसके अलावा तावडू खंड में मोहमदपुर अहीर सहित 3 गांवों के किसान भी मशरूम की खेती कर रहे हैं, लेकिन मुंडाका गांव के किसान मशरूम की खेती से नए जुड़े हैं. सबसे खास बात यह है कि पढ़े-लिखे युवा किसान रोजगार नहीं मिलने के चलते मशरूम की खेती की तरफ अपना रुझान बढ़ा रहे हैं.