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एक जमाना था जब बेटी पैदा होने पर बांटे जाते थे सोने के सिक्के, 10 ग्राम की होती थी मोहर - Gold Coin for Girl Born

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jun 10, 2024, 5:02 PM IST

सन 1638 में 10.92 ग्राम की ढली ये नजराना मोहर में से एक सोने की नजराना मोहर अब महाराष्ट्र के संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर के पास है. ये न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव सदस्य हैं. वह आगरा में आयोजित प्रदर्शनी में आगरा किला की टकसाल में ढाली शाहजहां की सोने की मोहर लेकर आए हैं.

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मुगल बादशाह शाहजहां की पोती और उसके जन्म पर जारी किया गया नजराना. (फोटो क्रेडिट; संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर)
मुगल बादशाह के नजराना पर संवाददाता श्यामवीर की रिपोर्ट. (वीडियो क्रेडिट; Etv Bharat)

आगरा: भले ही देश में आज महिला सशक्तिकरण की बात होती है. मगर, आज भी तमाम परिवार हैं, जिनके घर में जब बेटी पैदा होती है तो उनके चेहरे मुरझा जाते हैं. लेकिन, आज से 400 साल पहले मुगल काल में जब बेटी पैदा होती थी तो शहजादे जैसे ही खुशियां मनाई जाती थीं.

जिसका पुख्ता प्रमाण सोने की नजराना मोहर है. जो मुगल बादशाह शाहजहां ने पहली पोती और बेटे औरंगजेब की पहली बेटी जेब-अन-निसा पैदा होने पर आगरा किला की टकसाल में बनवाकर बंटवाई थीं.

सन 1638 में 10.92 ग्राम की ढली ये नजराना मोहर में से एक सोने की नजराना मोहर अब महाराष्ट्र के संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर के पास है. ये न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव सदस्य हैं. वह आगरा में आयोजित प्रदर्शनी में आगरा किला की टकसाल में ढाली शाहजहां की सोने की मोहर लेकर आए हैं.

बता दें कि, आगरा में तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगी है. जिसमें लोगों को मोहरें, सिक्कों और रुपयों का अनूठा संसार देखने को मिल रहा है. अवध न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ने ये तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगाई. जिसमें मुगल बादशाहों से लेकर गुप्त, मौर्य और कुषाण वंश के सिक्के प्रदर्शन करने के साथ ही बिक्री और खरीद भी की गई.

संग्रहकर्ताओं ने बताया कि भारत में पहला कागज का नोट सन 1876 में जम्मू एवं कश्मीर के राजा ने पहली बार चलाया था. सन 1917 में भारत में ढाई रुपये का नोट चलता था. 1920 से लेकर 1927 तक 1000 रुपये का नोट अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहा था.

आगरा किला की टकसाल में ढली थी मोहर: न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव सदस्य और संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर ने बताया कि मेरे पास मुगलकाल की एक सोने की मोहर है. जो दुनिया की इकलौती मोहर है. ये मोहर मैंने खरीदी थी. अब इस सोने की मोहर की कीमत करोड़ो में है. ये सोने की मोहर आगरा किला की टकसाल में मुगल बादशाह शाहजहां ने ढलवाई थी.

सन 1638 में शाहजहां ने बनवाई थी नजराना: संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर ने बताते हैं कि, शहंशाह शाहजहां ने नजराना मोहर अपने बेटे औरंगजेब की पहली पुत्री जेब-उन-निसा के जन्म की खुशी में ढलवाई थी. ये मोहर हिजरी वर्ष 1047 और सन 1638 में ढाली गई थी. जिसका वजन करीब 10.92 ग्राम है. जो दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र मोहर है. जिसकी कीमत करीब 85 लाख रुपये आंकी जा चुकी है. मगर, ये बेशकीमती है.

मुगलों ने आगरा में ढालवाई थीं दुर्लभ मोहरें: संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर ने बताते हैं कि मुगलकाल में हर बादशाह ने आगरा किला की टकसाल के साथ अन्य टकसाल में सोने और चांदी की मोहरें ढलवाई थीं. जिसमें मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औररंगजेब, मोहम्मद शाह और जहांदार शाह की चलवाई गई सोने-चांदी की मोहरें शामिल हैं. जो गोल और चौकोर आकार की थीं. जहांगीर ने आगरा, लाहौर और अहमदाबाद टकसाल में सिक्के ढलवाए.

नजराना यूं समझें: डॉ. दिलीप राजगोर ने बताया कि, आज भी किसी के घर पर बेटी पैदा होती है तो उसका मुंह छोटा हो जाता है. 400 साल पहले जब मुगल बादशाह के यहां पर बेटी पैदा होती थी तो वो ऐसा नहीं करते थे. मुगल बादशाह शाहजहां ने पहली पोती और बेटे औरंगजेब की पहली बेटी पैदा होने पर बहुत ही नायाब सोने का सिक्का तैयार कराया था. जिसे नजराना बतौर अपने राज्य के संभ्रांत लोगों में वितरित कराया था.

तब एक सोने के सिक्के के बराबर एक सोने का सिक्का यानी सोने की मोहर होती थी. मैंने अभी मुगलकाल के सिक्कों पर तीसरी किताब लिखी है. जिसमें बाबर से शाहजहां के समय में बनाए और चलन में रहे सिक्कों के बारे में तमाम जानकारियां हैं. नजराना का मतबल होता था कि, किसी मौके पर राजा से मिलने जा रहे हैं तो उन्हें कुछ नजर करें. जिससे राजा याद रखें. इसलिए, टकसाल जाकर लोग कीमत यदा करके सिक्के या मोहरे बनवाते थे. इसके साथ ही राजा भी उस समय खास अवसर पर अपने राज्य के संभ्रांत लोगों को नजराने में कुछ ना कुछ दिया करते थे. जो सिक्के चलन में नहीं होते थे.

ये भी पढ़ेंः खोदा खेत, निकला खजाना; उत्तर प्रदेश में मटके में दबे मिले मुगलकाल के 168 चांदी के सिक्के

मुगल बादशाह के नजराना पर संवाददाता श्यामवीर की रिपोर्ट. (वीडियो क्रेडिट; Etv Bharat)

आगरा: भले ही देश में आज महिला सशक्तिकरण की बात होती है. मगर, आज भी तमाम परिवार हैं, जिनके घर में जब बेटी पैदा होती है तो उनके चेहरे मुरझा जाते हैं. लेकिन, आज से 400 साल पहले मुगल काल में जब बेटी पैदा होती थी तो शहजादे जैसे ही खुशियां मनाई जाती थीं.

जिसका पुख्ता प्रमाण सोने की नजराना मोहर है. जो मुगल बादशाह शाहजहां ने पहली पोती और बेटे औरंगजेब की पहली बेटी जेब-अन-निसा पैदा होने पर आगरा किला की टकसाल में बनवाकर बंटवाई थीं.

सन 1638 में 10.92 ग्राम की ढली ये नजराना मोहर में से एक सोने की नजराना मोहर अब महाराष्ट्र के संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर के पास है. ये न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव सदस्य हैं. वह आगरा में आयोजित प्रदर्शनी में आगरा किला की टकसाल में ढाली शाहजहां की सोने की मोहर लेकर आए हैं.

बता दें कि, आगरा में तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगी है. जिसमें लोगों को मोहरें, सिक्कों और रुपयों का अनूठा संसार देखने को मिल रहा है. अवध न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ने ये तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगाई. जिसमें मुगल बादशाहों से लेकर गुप्त, मौर्य और कुषाण वंश के सिक्के प्रदर्शन करने के साथ ही बिक्री और खरीद भी की गई.

संग्रहकर्ताओं ने बताया कि भारत में पहला कागज का नोट सन 1876 में जम्मू एवं कश्मीर के राजा ने पहली बार चलाया था. सन 1917 में भारत में ढाई रुपये का नोट चलता था. 1920 से लेकर 1927 तक 1000 रुपये का नोट अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहा था.

आगरा किला की टकसाल में ढली थी मोहर: न्यूमिजमैटिक सोसाइटी ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव सदस्य और संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर ने बताया कि मेरे पास मुगलकाल की एक सोने की मोहर है. जो दुनिया की इकलौती मोहर है. ये मोहर मैंने खरीदी थी. अब इस सोने की मोहर की कीमत करोड़ो में है. ये सोने की मोहर आगरा किला की टकसाल में मुगल बादशाह शाहजहां ने ढलवाई थी.

सन 1638 में शाहजहां ने बनवाई थी नजराना: संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर ने बताते हैं कि, शहंशाह शाहजहां ने नजराना मोहर अपने बेटे औरंगजेब की पहली पुत्री जेब-उन-निसा के जन्म की खुशी में ढलवाई थी. ये मोहर हिजरी वर्ष 1047 और सन 1638 में ढाली गई थी. जिसका वजन करीब 10.92 ग्राम है. जो दुनिया में अपनी तरह की एकमात्र मोहर है. जिसकी कीमत करीब 85 लाख रुपये आंकी जा चुकी है. मगर, ये बेशकीमती है.

मुगलों ने आगरा में ढालवाई थीं दुर्लभ मोहरें: संग्रहकर्ता अशोक जयराज सिंह ठाकुर ने बताते हैं कि मुगलकाल में हर बादशाह ने आगरा किला की टकसाल के साथ अन्य टकसाल में सोने और चांदी की मोहरें ढलवाई थीं. जिसमें मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औररंगजेब, मोहम्मद शाह और जहांदार शाह की चलवाई गई सोने-चांदी की मोहरें शामिल हैं. जो गोल और चौकोर आकार की थीं. जहांगीर ने आगरा, लाहौर और अहमदाबाद टकसाल में सिक्के ढलवाए.

नजराना यूं समझें: डॉ. दिलीप राजगोर ने बताया कि, आज भी किसी के घर पर बेटी पैदा होती है तो उसका मुंह छोटा हो जाता है. 400 साल पहले जब मुगल बादशाह के यहां पर बेटी पैदा होती थी तो वो ऐसा नहीं करते थे. मुगल बादशाह शाहजहां ने पहली पोती और बेटे औरंगजेब की पहली बेटी पैदा होने पर बहुत ही नायाब सोने का सिक्का तैयार कराया था. जिसे नजराना बतौर अपने राज्य के संभ्रांत लोगों में वितरित कराया था.

तब एक सोने के सिक्के के बराबर एक सोने का सिक्का यानी सोने की मोहर होती थी. मैंने अभी मुगलकाल के सिक्कों पर तीसरी किताब लिखी है. जिसमें बाबर से शाहजहां के समय में बनाए और चलन में रहे सिक्कों के बारे में तमाम जानकारियां हैं. नजराना का मतबल होता था कि, किसी मौके पर राजा से मिलने जा रहे हैं तो उन्हें कुछ नजर करें. जिससे राजा याद रखें. इसलिए, टकसाल जाकर लोग कीमत यदा करके सिक्के या मोहरे बनवाते थे. इसके साथ ही राजा भी उस समय खास अवसर पर अपने राज्य के संभ्रांत लोगों को नजराने में कुछ ना कुछ दिया करते थे. जो सिक्के चलन में नहीं होते थे.

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