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MSP खरीद में ट्रांसपोर्टरों का 8 करोड़ रुपए बकाया, भुगतान नहीं होने पर सुसाइड की दी चेतावनी - MSP Purchase Transporters Demand

Transporters Warned of Suicide कोटा संभाग में एमएसपी पर हुई खरीद के माल को गोदाम तक पहुंचने वाले ट्रांसपोर्टर का करोड़ों रुपए का भुगतान बकाया है. यह करीब 8 करोड़ के आसपास हो गया है. ऐसे में उन्होंने बकाया देने की बात की और सुसाइड की चेतावनी दी है.

ट्रांसपोर्टरों का 8 करोड़ रुपए बकाया
ट्रांसपोर्टरों का 8 करोड़ रुपए बकाया (ETV Bharat File Photo)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 25, 2024, 1:18 PM IST

कोटा. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हुई खरीद के माल को गोदाम तक पहुंचाने वाले ट्रांसपोर्टर का करोड़ों रुपए का भुगतान बकाया है. यह भुगतान हर साल कुछ बकाया रह जाता था. इसके चलते अब 8 करोड़ के आसपास भुगतान ट्रांसपोर्टर का हो गया है. ट्रांसपोर्टर का आरोप है कि ये राजफैड से पैसा मांग-मांग कर थक गए हैं.

कोटा के ट्रांसपोर्टर दीपक अग्रवाल का कहना है कि उनके सहित कुछ ट्रांसपोर्टर हैं, जो राजफैड से पीड़ित हैं. उन्होंने हाड़ौती के न्यूनतम समर्थन मूल्य के खरीद केंद्र पर रबी और खरीफ सीजन की जिंस सरसों, चना और सोयाबीन को केंद्र से राजफैड के गोदाम तक पहुंचाया है. कई कोशिश के बावजूद हमारा भुगतान नहीं किया जा रहा है. हम हर स्तर पर इसकी मांग उठा चुके हैं. आखिर में हमें सुसाइड की चेतावनी ही देनी पड़ी है. इसके बावजूद भी राजफैड के अधिकारियों के कान में जू तक नहीं रेंग रही है. इधर, राजफैड के कार्यवाहक क्षेत्रीय अधिकारी विष्णु दत्त शर्मा का कहना है कि ट्रांसपोर्टर का भुगतान कर रहे हैं. कुछ भुगतान राजफैड के स्तर का कर दिया गया है, जबकि नैफेड के लिए हमने खरीद की थी, ऐसे में नैफेड से भुगतान नहीं आने के चलते इनका भुगतान बकाया है. जयपुर स्तर पर प्रक्रिया भी इसको लेकर चल रही है.

पढ़ें. बकाया वेतन नहीं मिलने से नाराज सैकड़ों सफाई कर्मचारियों ने किया प्रदर्शन , नगर निगम के बाहर दिया धरना

आश्वासन देखकर जबरन डलवाया जाता है टेंडर : ट्रांसपोर्टर दीपक अग्रवाल का कहना है कि हर साल उनका भुगतान बाकी रह जाता है. ऐसे वह टेंडर डालने के लिए नहीं जाते हैं, जिसके बाद जिला प्रशासन और अन्य अधिकारी उन्हें मीटिंग के लिए बुलाते हैं और भुगतान दिलाने का आश्वासन देते हैं. इसके बाद उनसे टेंडर की कॉपियां डलवाई जाती हैं. ऐसा बीते दो से तीन सालों तक चल रहा है, लेकिन बाद में फिर वही ढाक के तीन पात जैसी स्थिति हो जाती है. अधिकारी भी अपना काम निकल जाने के बाद हमारी कोई सुनवाई नहीं करते हैं.

कई फर्मों के 8 करोड़ बकाया : दीपक अग्रवाल का कहना है कि साल 2020 का कुछ पैसा बाकी है, इसके बाद 2021 का 65 फीसदी पैसा भी बकाया है. वहीं, 2022 का 50 फीसदी, 2023 का 38 फ़ीसदी और 2024 का 50 फीसदी पैसा बकाया है. कुल मिलाकर करीब 7 से 8 करोड़ रुपए का ट्रांसपोर्टर का बकाया है. इसमें सर्वाधिक पैसा संजय गोयल का बकाया है, जो 3.5 करोड़ रुपए है. वह बीते कुछ सालों से बेड रेस्ट पर ही है. इसके बाद बारां की फर्म जीवराज एंड कंपनी और मैसर्स दीपक कुमार अग्रवाल का 1.50-1.50 करोड़, कोटा ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव सोसाइटी का 90 लाख और वर्धमान ट्रेडिंग कंपनी बूंदी का 70 लाख रुपए बकाया है. इसके अलावा भी छोटे-छोटे ट्रांसपोर्टर के भी लाखों रुपए बकाया हैं.

कोटा. न्यूनतम समर्थन मूल्य पर हुई खरीद के माल को गोदाम तक पहुंचाने वाले ट्रांसपोर्टर का करोड़ों रुपए का भुगतान बकाया है. यह भुगतान हर साल कुछ बकाया रह जाता था. इसके चलते अब 8 करोड़ के आसपास भुगतान ट्रांसपोर्टर का हो गया है. ट्रांसपोर्टर का आरोप है कि ये राजफैड से पैसा मांग-मांग कर थक गए हैं.

कोटा के ट्रांसपोर्टर दीपक अग्रवाल का कहना है कि उनके सहित कुछ ट्रांसपोर्टर हैं, जो राजफैड से पीड़ित हैं. उन्होंने हाड़ौती के न्यूनतम समर्थन मूल्य के खरीद केंद्र पर रबी और खरीफ सीजन की जिंस सरसों, चना और सोयाबीन को केंद्र से राजफैड के गोदाम तक पहुंचाया है. कई कोशिश के बावजूद हमारा भुगतान नहीं किया जा रहा है. हम हर स्तर पर इसकी मांग उठा चुके हैं. आखिर में हमें सुसाइड की चेतावनी ही देनी पड़ी है. इसके बावजूद भी राजफैड के अधिकारियों के कान में जू तक नहीं रेंग रही है. इधर, राजफैड के कार्यवाहक क्षेत्रीय अधिकारी विष्णु दत्त शर्मा का कहना है कि ट्रांसपोर्टर का भुगतान कर रहे हैं. कुछ भुगतान राजफैड के स्तर का कर दिया गया है, जबकि नैफेड के लिए हमने खरीद की थी, ऐसे में नैफेड से भुगतान नहीं आने के चलते इनका भुगतान बकाया है. जयपुर स्तर पर प्रक्रिया भी इसको लेकर चल रही है.

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आश्वासन देखकर जबरन डलवाया जाता है टेंडर : ट्रांसपोर्टर दीपक अग्रवाल का कहना है कि हर साल उनका भुगतान बाकी रह जाता है. ऐसे वह टेंडर डालने के लिए नहीं जाते हैं, जिसके बाद जिला प्रशासन और अन्य अधिकारी उन्हें मीटिंग के लिए बुलाते हैं और भुगतान दिलाने का आश्वासन देते हैं. इसके बाद उनसे टेंडर की कॉपियां डलवाई जाती हैं. ऐसा बीते दो से तीन सालों तक चल रहा है, लेकिन बाद में फिर वही ढाक के तीन पात जैसी स्थिति हो जाती है. अधिकारी भी अपना काम निकल जाने के बाद हमारी कोई सुनवाई नहीं करते हैं.

कई फर्मों के 8 करोड़ बकाया : दीपक अग्रवाल का कहना है कि साल 2020 का कुछ पैसा बाकी है, इसके बाद 2021 का 65 फीसदी पैसा भी बकाया है. वहीं, 2022 का 50 फीसदी, 2023 का 38 फ़ीसदी और 2024 का 50 फीसदी पैसा बकाया है. कुल मिलाकर करीब 7 से 8 करोड़ रुपए का ट्रांसपोर्टर का बकाया है. इसमें सर्वाधिक पैसा संजय गोयल का बकाया है, जो 3.5 करोड़ रुपए है. वह बीते कुछ सालों से बेड रेस्ट पर ही है. इसके बाद बारां की फर्म जीवराज एंड कंपनी और मैसर्स दीपक कुमार अग्रवाल का 1.50-1.50 करोड़, कोटा ट्रांसपोर्ट को-ऑपरेटिव सोसाइटी का 90 लाख और वर्धमान ट्रेडिंग कंपनी बूंदी का 70 लाख रुपए बकाया है. इसके अलावा भी छोटे-छोटे ट्रांसपोर्टर के भी लाखों रुपए बकाया हैं.

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