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एमपी में लोकसभा के दूसरे चरण में गर्मी नहीं ये वजह है कम वोट पड़ने की, जानिए शिवराज डाबी से - MP Low Voting Percentage Reason - MP LOW VOTING PERCENTAGE REASON

लोकसभा के दूसरे चरण में एमपी में भी कम वोटिंग हुई है. 2019 के मुकाबले बात की जाए तो 6 सीटों पर 9 फीसदी वोट कम पड़े. ऐसे में बीजेपी की टेंशन बढ़ गई है. इधर बीजेपी आईटी विभाग के पूर्व प्रमुख शिवराज डाबी ने कम वोट पड़ने की वजह गर्मी को नहीं बल्कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को बताया है.

MP LOW VOTING PERCENTAGE REASON
गर्मी नहीं है वोट कम पड़ने की वजह
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 27, 2024, 8:49 PM IST

कार्यकर्ताओं को घर बिठाने से बिगड़े हालात

भोपाल। एमपी में दूसरे चरण के मतदान में भी 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 9 फीसदी मतदान कम हुआ. मतदान के बाद बीजेपी में टेंशन बढ़ गई है. इस बीच बीजेपी के आईटी विभाग के पूर्व प्रमुख शिवराज डाबी ने कम मतदान की असल वजह पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी बताई है. जिन एजेंसियों से काम कराने कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया जाता है वो कॉल सेंटर की तरह काम करके अपना पैसा बनाकर निकल जाती हैं. शिवराज डाबी का आरोप है कि एजेंसी को काम देकर कार्यकर्ता को घर बिठा दिया जाता है. पार्टियां चाहती हैं कि पोलिंग के दिन अचानक से वो कार्यकर्ता वोटिंग के दिन वोटर को पोलिंग बूथ तक ले जाए.

गर्मी नहीं ये वजह है वोट कम पड़ने की

बीजेपी के आईटी सेल के पूर्व प्रमुख शिवराज डाबी का कहना है कि गर्मी तो 2019 में भी थी फिर 2024 में वोट क्यों कम पड़ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाते हुए सवाल किया है कि क्या इस बार पार्टियों ने अपने मूल कार्यकर्ताओं को घर बिठा दिया है. डाबी का कहना है कि "अब पार्टियों के पास पन्ना प्रमुख तो दूर बूथ के प्रभारी मिलना भी मुश्किल हो गया है. इसके लिए प्रदेश के बाहर से आई चुनाव में काम करने वाली एजेंसियां जिम्मेदार हैं. अब पार्टियों के काम प्रदेश के बाहर की एजेंसियां करने लगी हैं जो सर्वे, प्रचार, सोशल मीडिया, कॉल सेंटर जैसे सभी काम करती हैं और अपना तगड़ा पैसा बनाकर वोटिंग के दो दिन पहले निकल लेती हैं."

कार्यकर्ताओं को घर बिठाने से बिगड़े हालात

शिवराज डाबी का कहना है कि "पार्टी का जो स्थानीय कार्यकर्ता है जो 5 सालों तक इंतजार करता है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार पार्टी को योगदान देगा, उसको घर बैठा दिया जाता है या फिर उन्हें इन बाहरी एजेंसियों की मेहमान नवाजी का काम दे दिया जाता है. फिर पार्टी यह उम्मीद करती है कि वो कार्यकर्ता वोटिंग वाले दिन वोटरों को घर से निकाल कर पोलिंग बूथ पर लेकर आए. ऐसे में फिर कार्यकर्ता क्यों जाएगा."

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कार्यकर्ताओं को स्किल्ड नहीं बनाती पार्टियां

शिवराज डाबी का कहना है कि "ये कमोबेश हर पार्टी की स्थिति है. पार्टियों को सोचना चाहिए कि बाहरी एजेंसी को बुलाने के बजाय वही स्किल अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं में ही डेवलप करे, उन्हें प्रशिक्षण दे तो हमारे पास हमेशा के लिए एक स्किल्ड कार्यकर्ता रहेगा. अगर कोई बाहरी एजेंसी आ भी जाती है तो उसमें यह कंडीशन डाल देना चाहिए कि उनकी टीम के साथ 50% हमारे स्थानीय कार्यकर्ता काम करेंगे."

कार्यकर्ताओं को घर बिठाने से बिगड़े हालात

भोपाल। एमपी में दूसरे चरण के मतदान में भी 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 9 फीसदी मतदान कम हुआ. मतदान के बाद बीजेपी में टेंशन बढ़ गई है. इस बीच बीजेपी के आईटी विभाग के पूर्व प्रमुख शिवराज डाबी ने कम मतदान की असल वजह पार्टी के मूल कार्यकर्ताओं की अनदेखी बताई है. जिन एजेंसियों से काम कराने कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया जाता है वो कॉल सेंटर की तरह काम करके अपना पैसा बनाकर निकल जाती हैं. शिवराज डाबी का आरोप है कि एजेंसी को काम देकर कार्यकर्ता को घर बिठा दिया जाता है. पार्टियां चाहती हैं कि पोलिंग के दिन अचानक से वो कार्यकर्ता वोटिंग के दिन वोटर को पोलिंग बूथ तक ले जाए.

गर्मी नहीं ये वजह है वोट कम पड़ने की

बीजेपी के आईटी सेल के पूर्व प्रमुख शिवराज डाबी का कहना है कि गर्मी तो 2019 में भी थी फिर 2024 में वोट क्यों कम पड़ रहे हैं. उन्होंने आरोप लगाते हुए सवाल किया है कि क्या इस बार पार्टियों ने अपने मूल कार्यकर्ताओं को घर बिठा दिया है. डाबी का कहना है कि "अब पार्टियों के पास पन्ना प्रमुख तो दूर बूथ के प्रभारी मिलना भी मुश्किल हो गया है. इसके लिए प्रदेश के बाहर से आई चुनाव में काम करने वाली एजेंसियां जिम्मेदार हैं. अब पार्टियों के काम प्रदेश के बाहर की एजेंसियां करने लगी हैं जो सर्वे, प्रचार, सोशल मीडिया, कॉल सेंटर जैसे सभी काम करती हैं और अपना तगड़ा पैसा बनाकर वोटिंग के दो दिन पहले निकल लेती हैं."

कार्यकर्ताओं को घर बिठाने से बिगड़े हालात

शिवराज डाबी का कहना है कि "पार्टी का जो स्थानीय कार्यकर्ता है जो 5 सालों तक इंतजार करता है कि वह अपनी क्षमता के अनुसार पार्टी को योगदान देगा, उसको घर बैठा दिया जाता है या फिर उन्हें इन बाहरी एजेंसियों की मेहमान नवाजी का काम दे दिया जाता है. फिर पार्टी यह उम्मीद करती है कि वो कार्यकर्ता वोटिंग वाले दिन वोटरों को घर से निकाल कर पोलिंग बूथ पर लेकर आए. ऐसे में फिर कार्यकर्ता क्यों जाएगा."

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शिवराज डाबी का कहना है कि "ये कमोबेश हर पार्टी की स्थिति है. पार्टियों को सोचना चाहिए कि बाहरी एजेंसी को बुलाने के बजाय वही स्किल अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं में ही डेवलप करे, उन्हें प्रशिक्षण दे तो हमारे पास हमेशा के लिए एक स्किल्ड कार्यकर्ता रहेगा. अगर कोई बाहरी एजेंसी आ भी जाती है तो उसमें यह कंडीशन डाल देना चाहिए कि उनकी टीम के साथ 50% हमारे स्थानीय कार्यकर्ता काम करेंगे."

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