भोपाल: एमपी में लोकसभा चुनाव के दौरान सेहरा बांध कर जो कांग्रेस से दूल्हे लाए गए, वो अब बीजेपी में आने के बाद पार्टी के गले की हड्डी बन गए हैं. शर्तों के साथ बीजेपी में आए इन नेताओं के पुर्नवास में पार्टी संगठन से लेकर सरकार तक पसीने छूट गए हैं. वजह ये है कि बीजेपी के बहुमत के बाद अब कांग्रेस नेताओं की ताजपोशी बीजेपी के कद्दावर नेताओं को ही हजम नहीं हो पा रही है. यही वजह है कि शपथ लेने के नौ दिन गुजर जाने के बाद भी राम निवास रावत को विभाग नहीं मिल पाया है. उधर अमरवाड़ा से जीत का तोहफा लेकर आए कमलेश शाह के मंत्री पद की रिटर्न गिफ्ट भी फिलहाल खटाई में पड़ती दिख रही है. लोकसभा चुनाव के दौरान दलबदल की आंधी में बीजेपी की रैलियों का मुख्य आकर्षण बने सुरेश पचौरी भी कतार में हैं कि कब उन्हें किस पद से नवाजा जाएगा.
बीजेपी की गले की हड्डी बने नए मेहमान
2020 में मामला दूसरा था, तब ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए 22 विधायक बीजेपी के लिए वो मेहमान थे, जो अपने साथ पार्टी की सत्ता की चाबी लिए आए थे. जाहिर है उन्हें नवाजना पार्टी की मजबूरी थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव तक पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में थी और लोकसभा चुनाव में नतीजों का स्कोर ऐसा बुरा नहीं था कि थोक के भाव में कांग्रेसियों को बीजेपी में लाने की जरुरत पड़े, लेकिन बीजेपी में न्यू ज्वाइनिंग टोली के साथ नया विभाग बना दिया गया और एक लाख 26 हजार न्यू ज्वाइनिंग का विश्व रिकार्ड भी पार्टी ने बना डाला.
सवाल ये कि थोक कि भाव में आए कांग्रेसियों का पुर्नवास कैसे हो. इनमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री पूर्व मंत्री और विधायक की हैसियत में आए नेता तो इस शर्त के साथ ही आए थे कि उन्हें बीजेपी में सम्मानजनक स्थान मिलेगा. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं, 'असल में जिस तरह से पार्टी बहुमत में थी. इससे कोई खास जरुरत नहीं थी. पार्टी की सबसे बड़ी ताकत उनका अपना कार्यकर्ता है. जो हर हाल में सेवा समर्पण के साथ जुटा रहा है. उनकी अनदेखी के साथ नए मेहमान की अगुवाई पर पार्टी में दबी जुबान में हो या खुलकर विरोध स्वाभाविक है.
राम को निवास नहीं मिला...शाह को भरोसा
कैबिनेट मंत्री की शर्त के साथ आए रामनिवास रावत के लिए कैबिनेट विस्तार हुआ. अकेले उन्हें शपथ दिलाई गई. इतिहास में पहली बार ये भी हुआ कि एक मंत्री ने दो-दो बार शपथ ली, लेकिन जिस तरह से रामनिवास रावत का विभाग उनके मंत्री बन जाने के नौ दिन बाद अटका हुआ है. साफ हो गया कि पार्टी में वरिष्ठ विधायकों का विरोध असर दिखा गया है. जानकारी के मुताबिक अब राम निवास रावत भी विभाग के लिए दिल्ली भोपाल एक कर रहे हैं. उधर कमलेश शाह ने अमरवाड़ा की जीत सौगात में दी, लेकिन जिस तरह से आभार यात्रा के बाद सीएम डॉ मोहन यादव ने मत्री पद के सवाल पर कहा कि फिलहाल कैबिनेट विस्तार नहीं विकास की बात है. उससे ये भी स्पष्ट हो गया कि कमलेश शाह भी हाथ के हाथ तो सौगात नहीं पाने वाले.
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वरिष्ठ पत्रकार पवन देवलिया कहते हैं, 'असल में राम निवास रावत को मंत्री बनाए जाने के बाद पार्टी के वरिष्ठ विधायक तो नाराज ही हैं. सिंधिया खेमें में भी जमकर बगावत है. वजह ये है कि सिंधिया ने जब कांग्रेस की सरकार गिराई थी. तब ग्वालियर चंबल में रावत ने सिंधिया के खिलाफ जमकर हमला बोला था. उधर सुरेश पचौरी जब बीजेपी में आए तो कई रैलियों में वो पार्टी नेताओं के साथ दिखाई दिए, लेकिन अब वे भी परेशान हैं कि अब तक उनका भी पार्टी में पुर्नवास नहीं हो पाया.'