भोपाल: देश का हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्य प्रदेश का गठन 1 नवंबर 1956 को हुआ था. मध्य प्रदेश का गठन भाषाई आधार पर 4 छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर किया गया था. राज्य का गठन हो जाने के बाद प्रदेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी राजधानी बनाने की. चुनौती इसलिए थी कि प्रदेश के 3 बड़े शहरों ने राजधानी का दावा पेश किया था, लेकिन राजधानी तो किसी एक को ही बनाया जा सकता था. सबने खूब दांव पेंच लगाया लेकिन अंत में इन सबसे इतर भोपाल को को मध्य प्रदेश की राजधानी के रूप में चुना गया. इस आर्टिकल में हम बताएंगे की राजधानी बनने के प्रबल दावेदार वो तीन जिले कौन थे. उन्हें दरकिनार कर भोपाल को राजधानी चुनने की वजह क्या रही.
नागपुर क्यों नहीं बना मध्य प्रदेश की राजधानी
भारत आजाद हुआ उस वक्त ईस्ट इंडिया कंपनी का नागपुर पर शासन था. यह मध्य भारत प्रोविंस की राजधानी थी और राज्य पुनर्गठन के वक्त इसकी सबसे बड़ी दावेदारी थी मध्य प्रदेश की राजधानी की रेस में. इसके पीछ तर्क था कि सेंट्रल प्रोविंस जब अंग्रेजों ने बनाया तो उस वक्त मकराई और बरार के साथ ही मौजूदा छत्तीसगढ़ और मौजूदा मध्य प्रदेश के हिस्सों को शामिल किया गया था और राजधानी नागपुर बनाया गया था. ऐसे में इसकी दावेदारी सबसे पहले थी. मगर राज्यों के पहले पुनर्गठन के समय ही इसने अपनी मुख्य पहचान खो दी और राजधानी का स्टेटस भी. नागपुर संधि से इसे महाराष्ट्र को सौंपा गया. लिहाजा नागपुर इस रेस से खुद ब खुद पहले ही बाहर हो चुका था. लिहाजा मध्य प्रदेश राज्य पुनर्गठन के वक्त रेस में सिर्फ 4 शहर बचे जो एमपी के हिस्से में आए.
राजधानी के थे 3 और बड़े दावेदार थे
मध्य प्रदेश की राजधानी बनने की होड़ में यूं तो कई जिले थे लेकिन उनमें 3 मुख्य थे- ग्वालियर, जबलपुर और इंदौर. मध्य प्रदेश जिन 4 राज्यों को मिलाकर बना था, उसमें से एक राज्य मध्य भारत भी था, जिसकी राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी. ग्वालियर शीतकालीन राजधानी थी जबकि इंदौर ग्रीष्मकालीन. इस वजह से इन दोनों शहरों का एमपी की राजधानी बनने का दावा ज्यादा मजबूत था. जिसमें से ग्वालियर ज्यादा आश्वस्त था. इसके अलावा जबलपुर को भी राजधानी बनाए जाने की चर्चा थी क्योंकि यह काफी संपन्न था और राज्य पुनर्गठन आयोग ने इसको राजधानी बनाने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन काफी राजनीतिक जोर आजमाइश के बात अंतत भोपाल को राजधानी चुना गया था. जानते हैं इन तीनों प्रबल दावेदारों का पेंच कहां आकर फंस गया और कैपिटल बनने से महरूम हो गए.
केन्द्र सरकार नहीं चाहती थी कि ग्वालियर राजधानी बने
ग्वालियर मध्य भारत की शीतकालीन राजधानी होने के नाते इस होड़ में सबसे आगे था. यहीं पर मोती महल में मध्य भारत की विधानसभा की कार्यवाही होती थी. इसके अलावा अधिकांश प्रशासनिक अधिकारियों व मंत्रियों के बंगले ग्वालियर में ही थे. दिल्ली से नजदीकी होने के कारण ग्वालियर को ही प्रदेश की राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया था. लेकिन ग्वालियर के सिंधिया और इंदौर के होल्कर राजपरिवारों के बीच राजधानी को लेकर विवाद बढ़ गया. इस वजह से इसकी दावेदारी कमजोर हो गई.
इसके अलावा ग्वालियर प्रदेश के छोर पर स्थित था, जिस वजह से राज्य के अन्य हिस्सों से यहां आने में काफी समय लगता था, जो इसके लिए कमजोर कड़ी साबित हुआ. इन सबके अलावा कहा जाता है कि, नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को जिस बंदूक से मारा था वो यहीं से खरीदी गई थी. सरदार वल्लभ भाई पटेल इस बात से काफी खफा थे. इन्ही सब वजहों से केन्द्र सरकार भी नहीं चाहती थी कि ग्वालियर मध्य प्रदेश की राजधानी बने. इसलिए राजधानी के लिए जरुरी योग्यता होने के बावजूद ग्वालियर कैपिटल बनने से रह गया था.
इंदौर को भी नहीं बनाई गई राजधानी
इंदौर भी मध्य भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने की वजह से रेस में था. लेकिन उसके सामने चुनौतियां भी कई थीं. इंदौर राज्य के छोर पर स्थित था और उस समय तक वहां रेल नेटवर्क का विस्तार नहीं हुआ था. सिंधिया और होल्कर परिवारों के बीच ग्वालियर और इंदौर को राजधानी बनाए जाने की लड़ाई भी बड़ा रोड़ा बनी थी.
माना जाता है कि जो बात सबसे ज्यादा इसके खिलाफ में गई वो थी कि, आजादी के बाद जब सरदार पटेल ने 562 रियासतों के भारत में विलय के लिए इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पेश किया, तब इस पर ग्वालियर ने हस्ताक्षर कर दिए, लेकिन इंदौर रियासत ने 6 महीने बाद यह काम किया. इसके चलते इंदौर का महत्व केंद्र सरकार की नजर में थोड़ा कम हो गया.
जबलपुर के सामने समाजवादी आंदोलन बना बाधा
साल 1956 में जब मध्य प्रदेश का गठन किया गया था तो राज्य पुनर्गठन आयोग ने जबलपुर को इसकी राजधानी बनाने का प्रस्ताव दिया था. इसके कई कारण थे, अंग्रेजों का गढ़ होने के नाते जबलपुर में कई बड़ी ऐतिहासिक इमारतें थी जो किसी भी राजधानी के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है. इसके अलावा यहां रेलवे की कनेक्टिविटी भी अच्छी थी और जबलपुर भारत के केन्द्र में भी स्थित है.
मजबूत दावे होने के बावजूद इसको राजधानी के रूप में नहीं चुना गया. इसके कई कारण सामने आए. कहा जाता है कि उस समय विंध्य क्षेत्र में समाजवादी आंदोलन चल रहा था और अगर जबलपुर को राजधानी बना दिया जाता तो यह आंदोलन और बढ़ जाता और विंध्य के साथ महाकौशल का क्षेत्र राजनीति का केंद्र बन जाता. इसके अलावा यह तर्क दिया गया कि, जबलपुर में ऐसी इमारतें नहीं है जिसका इस्तेमाल सरकारी दफ्तर, आवास बनाने में किया जा सके.
क्यों भोपाल के सिर सजा ताज?
इन सब उठापटक के बीच भारत के पूर्व राष्ट्रपति और भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री शंकर दयाल शर्मा ने पंडित नेहरू के सामने भोपाल को राजधानी बनाने का प्रस्ताव दिया. इसके पीछे उन्होंने तर्क दिया कि, भोपाल प्रदेश के बीचों बीच स्थित है. इसका मौसम भी अच्छा है, न ज्यादा गर्मी है न ज्यादा सर्दी. इसके अलावा ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां बाढ़ की भी समस्या नहीं है. इसके अलावा सबसे बड़ी बात यहां नवाबों की बड़ी-बड़ी इमारतें हैं जो प्रशासनिक दफ्तर, कार्यालय, आवास जैसी जरूरतों को पूरा कर देंगी. शहर में ढेर सारी जमीन खाली पड़ी है जिस पर डेवलपमेंट का कार्य किया जा सकता है. भोपाल को राजधानी बनाने के लिए नवाब भी जोर लगा रहे थे. अंत में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी घोषित की. उस वक्त भोपाल जिला नहीं था बाद में इसे जिले का दर्जा दिया गया.