गरियाबंद: किडनी पीड़ितों का गांव कहे जाने वाले गरियाबंद के सुपेबेड़ा से तो हर कोई वाकिफ है. पिछले 17 सालों में 120 किडनी के रोगियों की इस गांव में मौत हो चुकी है. 20 से अधिक लोग यहां बीमार है. इस बीच शासन-प्रशासन की ओर से राहत और बचाव कार्य जारी है. वहीं, दूसरी ओर कई ऐसी मांए हैं जो विधवा होने के बाद आर्थिक तंगी से जूझ रही है.
आर्थिक तंगी से जूझ रही ये महिलाएं: आज मदर्स डे के मौके पर ईटीवी भारत आपको सुपेबेड़ा गांव की ऐसी मांओं के बारे में बताने जा रहा है, जो कि आर्थिक तंगी के बावजूद हिम्मत नहीं हारीं और अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं. गांव की वैदेही और लक्ष्मी बाई. दोनों सुपेबेड़ा गांव की हैं. इनके जीवन में किडनी रोग काल बनकर आया. दोनों के पति शिक्षक थे. किडनी रोग से लक्ष्मी सोनवानी के पति क्षितीराम की मौत 2014 में हो गई. जबकि वैदेही क्षेत्रपाल के पति प्रदीप की मौत 2017 में किडनी की बीमारी से हुई.
महंगाई में गुजर बसर करना मुश्किल: इन दोनों ने बीमार पति के इलाज के लिए जेवर, जमीन सब कुछ बेच दिया. हाउस लोन लेकर कर इलाज किया. दोनों के 3-3 बच्चे हैं, जिनका भरण-पोषण ये खुद कर रही हैं. साल 2019 में राज्यपाल के दौरे के बाद इन्हें कलेक्टर दर पर प्रतिमाह 10 हजार पगार पर नौकरी मिल गई, लेकिन ये रुपए महंगाई के जमाने में गुजर बसर के लिए नाकाफी है. इन्हे आज भी बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मदद की आस है.
परिवार चलाने के लिए जद्दोजहद कर रही ये महिलाएं: इस गांव में और भी 50 से अधिक ऐसी विधवा महिलाएं हैं, जो घर चलाने के लिए संघर्ष कर रही हैं. सिलाई करके कुछ महिलाएं अपना घर चला रही हैं. तो कुछ महिलाएं मजदूरी के भरोसे हैं. इसी गांव की प्रेमशिला के पति और सास-ससुर की मौत 7 साल पहले एक-एक करके बिमारी से हुई थी. छोटी ननद और दो बच्चे के भरण पोषण का जिम्मा अब प्रेमशिला के कंधे पर है. घर की हालत बता रही है कि सिलाई मशीन के भरोसे किसी तरह भोजन का भर का इंतजाम वो कर पा रही है. ऐसी और भी कई महिलाएं हैं, जिनके पति किडनी की बीमारी से मर चुके हैं और वो अपना परिवार चलाने के लिए जद्दोजहद कर रही हैं. हालांकि वो हार नहीं मान रही हैं.