मुरैना। दुनिया भर के पर्यटकों को लुभाने वाले रायसेन के भीमबेटका शैलाश्रय और खजुराहो मंदिर से ज्यादा पुरानी और खूबसूरत धरोहर चंबल के पहाड़गढ़ और नरेश्वर में मौजूद है. पुरातत्व विभाग और आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने इन धरोहरों को संरक्षित तो किया, लेकिन पर्यटन विभाग की मेहरबानी इन जगहों पर अब तक नहीं हो सकी है. यही वजह है कि प्राचीन और खूबसूरत होने के बाद भी इन जगहों को पर्यटन के नक्शे पर जगह नहीं मिल पाई है, लेकिन 14 मार्च को यूनेस्को ने भारत की अस्थायी सूची में चंबल घाटी का 'लिखी छाज' स्थान का नाम जोड़ा है. यूनेस्को द्वारा 'लिखी छाज' का नाम जोड़ने पर चंबल घाटी के पुरातत्व प्रेमियों में खुशी की लहर है.
चिंताजनक स्थिति में चंबल की धरोहर लिखी छाज
मध्य प्रदेश के मुरैना जिला मुख्यालय से 65 किलोमीटर दक्षिण में पहाड़गढ़ विकासखंड की एक और पुरातात्विक विरासत लिखी छाज आज बहुत चिंताजनक स्थिति में है. इसमें भीम बेटका जैसे सैकड़ों भित्ति चित्र है, जो उतने ही पुराने है. जितने की भीम बेटका के लिखी हुई छाज. इसका पर्यटन और पुरातात्विक दृष्टि से प्रचार-प्रसार, उस तक पहुंच मार्ग और उन भित्ति चित्रों की सुरक्षा का कोई इंतजाम न होना एक बहुत चिंताजनक तथ्य है. अनेकों चित्रों पर असामाजिक तत्वों ने पेंट से अपने नाम लिख दिए हैं.
लिखी छाज धरोहर को विकास की दरकार
किसी इतिहास वेत्ता और पुरातत्व प्रेमी तक ये बात पहुंचे और उसका उचित प्रबंधन हो सके तो एक विरासत आगे की पीढ़ी को उपलब्ध हो सकेगी. अमूल्य धरोहर की पुरातत्व धरोहर प्रेमी भीम बेटका तक ऐसी ही प्रागैतिहासिक धरोहर के अवलोकन हेतु जाते हैं, लेकिन हमारे नजदीक स्थित इस धरोहर को संरक्षित करने कोई कदम नहीं उठाया जा रहा. केवल इस धरोहर के संरक्षण व व्यापक प्रचार, प्रसार व यहां यात्रियों के लिए सुविधाएं व पहुंच मार्ग निर्माण करवाकर पूरे पहाडगढ़ विकासखंड के विकास को नए आयाम दिए जा सकते हैं.
एमपी की 6 धरोहर यूनेस्को में शामिल
मध्य प्रदेश के 6 दर्शनीय स्थलों को यूनेस्को ने अपनी अस्थायी सूची में शामिल किया है. ये दर्शनीय स्थल चंबल का लिखी छाज, ग्वालियर किला, धमनार का ऐतिहासिक समूह, भोजेश्वर महादेव मंदिर, भोजपुर, खूनी भंडारा बुरहानपुर और रामनगर, मंडला का गोंड स्मारक है. इन स्थलों को 14 मार्च को यूनेस्को ने भारत की अस्थायी सूची में जोड़ा है. युनेस्को द्वारा लिखी छाज का नाम जोड़ने पर चम्बल घाटी के पुरातत्व प्रेमियों में खुशी की लहर है.
पुरासंपदा का भंडार, रोजगार का भी बन सकता है जरिया
पहाड़गढ़ क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य होने के साथ साथ पर्यटन के लिहाज से भी दर्शनीय स्थलों के लिये भी बाहुल्य है. यहां पुरासंपदा का भी भंडार है. दर्शनीय स्थलों में ईश्वरा महादेव, आमक्षिर, निरार माता, बहरारा माता, श्यामदेव बाबा मंदिर, लिखी छाज, देववन स्थान, पहाडगढ़ किला, हीरामन मंदिर, आदिवासी संस्कृति दर्शन और ना जाने कितने अनगिनत स्थान जंगलों की कंदराओं में है. अगर शासन इस ओर ध्यान दे तो पर्यटन के रूप में पहाड़गढं क्षेत्र विकसित होकर सैकड़ों युवकों के रोजगार का जरिया बन सकता है.
भीम बेटका से पुरानी यहां के शैल चित्र
पुरातत्वविदों ने भीम बेटका के शैलचित्रों की जांच रेडियो कार्बन विधि से की. इसमें सबसे पुरानी पेटिंग 12 हजार साल पहले की पाई गई, लेकिन लिखी छाज के इन चित्रों को खोजने वाले प्रोफेसर द्वारिकेश ने इसी विधि से यहां पाए गए शैल चित्रों की उम्र 25 हजार साल से ज्यादा पुरानी पाई थी. यानी भीम बेठका से करीब 10 हजार साल ज्यादा पुराने शैल चित्र लिखी छाज में पाए गए. जबकि यहां के शैलाश्रय 1 लाख साल पुराने थे. यानी भीम बेठका से पहले पहाड़गढ़ इलाके में रहने वालों ने चट्टानों पर चित्र उकेरने सीख लिए थे.
आदि मानव काल यानी महाभारत काल से भी कई हजार साल पहले के शैलाश्रय 80 के दशक में मुरैना जिले के पहाड़गढ़ इलाके के जंगलों में मिले थे. सूख चुकी एक नदी के किनारे के करीब 717 बीघा बपठारीय क्षेत्र में बिखरे शैल चित्र और शैल आश्रयों को चंबल में लिखी छाज के नाम से जाना जाता है.