मुरैना। भगवान श्री द्वारिकाधीश शनिवार तड़के मुरैना जिला मुख्यालय से 5 किलोमीटर दूर मुरैना गांव स्थित दाऊजी मंदिर में विराजमान हो गए. वहां यहां पर साढ़े 3 दिन के लिए विराजमान रहेंगे. जिनके दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में लोग आते हैं. मुरैना गांव स्थित प्राचीन दाऊजी मंदिर है. मान्यता है कि 300 साल पुराने इस मंदिर पर भगवान द्वारिकाधीश अपना धाम छोडकऱ गांव में मेहमानी करने आते हैं. इसके साथ ही शनिवार से लीला मेला आरंभ हो गया. इसमें तमाम प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं.
दीपावली पर्व पर श्री द्वारिकाधीश की पूजा मुरैना में
मुरैना गांव स्थित प्राचीन दाऊजी मंदिर के महंत श्रीनिवास स्वामी जी बताते हैं "भगवान द्वारिकाधीश साढ़े 3 दिन तक जब मुरैना गांव में रहते हैं तो गुजरात के द्वारिका में द्वारिकाधीश मंदिर के पट बंद रहते हैं, क्योंकि भगवान की पूजा-अर्चना मुरैना गांव में होती है." उल्लेखनीय है कि चार धाम के तीर्थ यात्रियों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है. कुछ यात्रियों ने यह भी बताया कि श्रीनाथजी में भी दीपावली पर कहा जाता है कि अभी भगवान की पूजा मुरैना में हो रही है.
मुरैना में ये है पौराणिक कथा
दाऊजी मंदिर के महंत श्रीनिवास स्वामी जी बताते हैं "765 साल पहले मुरैना गांव निवासी कृष्ण भक्त संत गोपराम स्वामी को भगवान ने स्वप्न में दर्शन दिए और अपने साथ ब्रह्मलोक ले जाने लगे. गोपराम बाबा ने भगवान द्वारिकाधीश से कहा कि लोग कैसे जानेंगे कि आप मुझे लेने मुरैना गांव आए थे. स्वप्न में ही भगवान श्रीकृष्ण ने संत गोपराम से वादा किया था कि मैं हर साल दीपावली की पड़वा से चौथ तक के लिए मुरैना गांव में मेहमानी करने आया करूंगा. उसी समय से लगातार द्वारकाधीश हर साल दीपावली की पड़वा से साढ़े 3 दिन की मेहमानी करने मुरैना गांव आते हैं."
हर साल स्वामी परिवार में होता है बेटे का जन्म
भगवान ने संत गोपराम स्वामी को यह भी वचन दिया था कि मेरी यहां दीवाली पर उपस्थिति यूं मानी जाए कि मेरे यहां आगमन से पहले दीपावली के त्यौहार के नजदीक (15 दिन पहले) इस गांव के स्वामी परिवारों में किसी न किसी के घर बेटे का जन्म अवश्य होगा. ऐसी मान्यता है कि हर वर्ष दीपावली से पूर्व स्वामी परिवार में बच्चे का जन्म होता है और इसका उत्सव पूरे गांव में मनाया जाता है.
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घुड़दौड़ का आयोजन आकर्षण का केंद्र
मुरैना गांव स्थित दाऊजी मंदिर पर आयोजित लीला मेला में घुड़दौड़ का भी आयोजन होता है. जिसमें चंबल संभाग के घुड़सवार भाग लेते है. दौड़ में अपने घोड़े और घोड़ी को दौड़ाते हैं. विजेता को नगर निगम द्वारा नगद राशि से पुरस्कृत किया जाता है. इस आयोजन को देखने के लिए आसपास के ग्रामीण हजारों की संख्या में एकत्रित होते हैं. इसके अलावा लीला मेले में कई समाजों की पंचायतें होती हैं.