मुरैना। मुरैना से बसपा प्रत्याशी रमेश गर्ग ने शुक्रवार को प्रेस वार्ता आयोजित की. इस दौरान रमेश गर्ग ने कहा कि ' भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को बनिया व्यापारी और बहुजन समाज के लोगों से बदबू आती है. अब कभी भी बुलाएंगे, तब भी मैं नहीं जाऊंगा. उन्होंने कहा कि वह अब सक्रिय राजनीति में आ गए हैं. चुनाव में जीत मिले या हार, वह व्यापारी, बहुजन समाज पार्टी एवं बहुजन समाज के लिए कार्य करते रहेंगे.'
मुरैना जिले का विकास करना मेरा सिद्धांत
रमेश गर्ग ने मीडिया से कहा कि वह सिद्धांत और ईमानदारी की राजनीति करेंगे. जिस तरह एक समय देश के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए एक सांसद की जरूरत थी. तब प्रमोद महाजन ने कहा कि 10 वोट खरीद लेंगे, लेकिन अटलजी ने सिद्धांत की राजनीति करते हुए कहा कि 'वह ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना पसंद नहीं करते.' रमेश गर्ग ने कहा कि 'मैं राजनीति में कमाई और धंधे के लिए नहीं आया हूं. मेरा मकसद सिद्धांत और ईमानदारी की राजनीति कर मुरैना जिले का विकास करना है. उन्होंने कहा कि मेरा परिवार डेढ़ सौ वर्ष से यहां निवास कर रहा है. मेरा जन्म भी मुरैना में हुआ है. इस नाते मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं क्षेत्र के विकास व उत्थान के लिए कुछ कार्य करूं, जिससे जनता को लाभ मिले और जिले का विकास हो.'
अपने मुनाफा का 50% विकास कार्यों में लगाऊंगा
बसपा प्रत्याशी ने कहा कि कुछ दशकों पूर्व डकैत प्रभावित क्षेत्र होने के कारण मुरैना जिले को भारत के मानचित्र पर जो इज्जत के साथ नाम लिया जाना चाहिए, वह मुरैना अभी बहुत दूर है. ग्वालियर और इंदौर विकास के मामले में कहां से कहां पहुंच गए, लेकिन हम कहां पर खड़े हैं. उन्होंने कहा कि वह चुनाव जीते या हारे, लेकिन मुरैना का एक बार ऐसा विकास करना है, जिससे भारत के मानचित्र पर मुरैना का नाम इज्जत से लिया जाए. मैं जो कहता हूं, वह करता हूं और करके दिखाऊंगा. उन्होंने यह भी घोषणा की है कि जब उनका व्यापार फिर से लाइन पर आ जाएगा, तो अपने व्यापार के मुनाफा का 50% रुपए मुरैना शिवपुरी लोकसभा क्षेत्र के विकास के लिए खर्च करूंगा.
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उन्होंने कहा कि चुनाव में जो नामांकन दाखिल किया था, उसमें उन्होंने अपने ऊपर 345 करोड़ रुपए का कर्ज बताया और इसके बाद भी मैंने चुनाव लड़ा. मेरे पास फंड नहीं था, पर समाज के लोगों ने फंड की कमी नहीं आने दी और पूरा सहयोग किया . इस चुनाव में 90% वैश्य समाज उनके साथ खड़ा रहा. इस बात को भी उन्होंने स्वीकार किया कि समाज में कुछ जयचंद हर जगह होते हैं, लेकिन मैं उनकी परवाह नहीं करता हूं.