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मध्य प्रदेश में 50 हजार सरकारी जॉब, अप्लाई से पहले भर्ती का 13% और 87% का नया फार्मूला - Madhya Pradesh 50 Thousand Jobs

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 17, 2024, 1:27 PM IST

Updated : Sep 17, 2024, 1:46 PM IST

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में आरक्षण संबंधी सभी विवाद अब सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं. वहीं, जानकारों का कहना है कि सरकार यदि चाहे तो विवाद वाले 13% पदों को होल्ड करके बाकी पदों पर नियुक्तियां कर सकती है. वहीं, मोहन यादव सरकार ने भी प्रदेश में सरकारी विभागों में खाली पड़े 50 हजार से ज्यादा पदों पर नियुक्तियां करने का रोडमैप तैयार कर लिया है.

Mp govt job alert
सरकारी नौकरियों में भर्ती का ये है नया फार्मूला (ETV BHARAT)

भोपाल। मध्य प्रदेश में बीते लगभग 10 सालों से सरकारी विभागों में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इसकी वजह से कई सरकारी दफ्तरों में काम करने के लिए अधिकारी ही नहीं बचे हैं. अधिकारियों को एक साथ कई जिम्मेदारियां को सौंप दिया गया है, इसकी वजह से काम नहीं हो पा रहे हैं. राज्य सरकार के एक मंत्री का कहना है कि बहुत छोटे अधिकारियों को बहुत बड़े पदों का काम देना पड़ रहा है. इससे काम प्रभावित हो रहा है लेकिन जब सरकारी भर्तियों में आरक्षण के मामले का कोर्ट से फैसला नहीं हो जाता तब तक राज्य सरकार भर्ती नहीं कर सकती.

मध्य प्रदेश में मौजूदा समय में आरक्षण की स्थिति

मध्य प्रदेश में फिलहाल अनुसूचित जाति को 16% अनुसूचित जनजाति को 20% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण दिया गया है. अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाला आरक्षण विवाद की वजह बना है. अन्य पिछड़े वर्ग को पहले 14% आरक्षण दिया गया था. इस तरह कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में 50% आरक्षण था, जो सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस के फैसले के अनुसार ठीक था जिसमें यह कहा गया था कि किसी भी स्थिति में सरकार 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती.

आरक्षण को लेकर कहां और कैसे फंसा पेच

जब कमलनाथ सरकार बनी तो उन्होंने मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण दे दिया और इसको विधानसभा से भी अनुमति मिल गई. इस मामले के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ऐसी कई याचिकाएं आईं, जिसमें यह कहा गया कि आरक्षण 50% से अधिक हो गया है और यह सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार ठीक नहीं है. कुल मिलाकर 13% आरक्षण की वजह से 87% लोगों की नौकरियां रुकी हुई हैं. आरक्षण संबंधी कई मामलों में पैरवी कर रहे एडवोकेट रामेश्वर पटेल का कहना है "जब सरकार ने विधानसभा में आरक्षण 27 प्रतिशत पारित कर दिया तो इसे इसी तरह मानकर सरकारी नौकरियों की भर्तियां शुरू की जानी चाहिए." वहीं एडवोकेट राजेश चांद का कहना है "सरकार यदि चाहे तो जिस 13% पदों पर विवाद है उन्हें होल्ड करके बाकी 87% पदों पर नियुक्तियां कर सकता है."

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5 साल में ओवरएज हो गए कई बेरोजगार

बीते 5 सालों में कई बेरोजगार नौकरी की आशा लगाए बैठे रहे और अब उनकी नौकरी पाने की उम्र की सीमा खत्म हो गई और सरकार में बैठे हुए लोग एक व्यवहारिक सा फैसला नहीं ले पाए. इससे एक तरफ बेरोजगारों के हक मारे गए और दूसरी तरफ सरकारी विभाग कमजोर हो गए. इसका असर जनहित की योजनाओं पर पड़ा लेकिन इस इंपैक्ट का ऑडिट करने के लिए कोई सामने नहीं आएगा.

भोपाल। मध्य प्रदेश में बीते लगभग 10 सालों से सरकारी विभागों में अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो रही है. इसकी वजह से कई सरकारी दफ्तरों में काम करने के लिए अधिकारी ही नहीं बचे हैं. अधिकारियों को एक साथ कई जिम्मेदारियां को सौंप दिया गया है, इसकी वजह से काम नहीं हो पा रहे हैं. राज्य सरकार के एक मंत्री का कहना है कि बहुत छोटे अधिकारियों को बहुत बड़े पदों का काम देना पड़ रहा है. इससे काम प्रभावित हो रहा है लेकिन जब सरकारी भर्तियों में आरक्षण के मामले का कोर्ट से फैसला नहीं हो जाता तब तक राज्य सरकार भर्ती नहीं कर सकती.

मध्य प्रदेश में मौजूदा समय में आरक्षण की स्थिति

मध्य प्रदेश में फिलहाल अनुसूचित जाति को 16% अनुसूचित जनजाति को 20% और ईडब्ल्यूएस को 10% आरक्षण दिया गया है. अन्य पिछड़ा वर्ग को दिए जाने वाला आरक्षण विवाद की वजह बना है. अन्य पिछड़े वर्ग को पहले 14% आरक्षण दिया गया था. इस तरह कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में 50% आरक्षण था, जो सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी केस के फैसले के अनुसार ठीक था जिसमें यह कहा गया था कि किसी भी स्थिति में सरकार 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकती.

आरक्षण को लेकर कहां और कैसे फंसा पेच

जब कमलनाथ सरकार बनी तो उन्होंने मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण दे दिया और इसको विधानसभा से भी अनुमति मिल गई. इस मामले के बाद मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में ऐसी कई याचिकाएं आईं, जिसमें यह कहा गया कि आरक्षण 50% से अधिक हो गया है और यह सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार ठीक नहीं है. कुल मिलाकर 13% आरक्षण की वजह से 87% लोगों की नौकरियां रुकी हुई हैं. आरक्षण संबंधी कई मामलों में पैरवी कर रहे एडवोकेट रामेश्वर पटेल का कहना है "जब सरकार ने विधानसभा में आरक्षण 27 प्रतिशत पारित कर दिया तो इसे इसी तरह मानकर सरकारी नौकरियों की भर्तियां शुरू की जानी चाहिए." वहीं एडवोकेट राजेश चांद का कहना है "सरकार यदि चाहे तो जिस 13% पदों पर विवाद है उन्हें होल्ड करके बाकी 87% पदों पर नियुक्तियां कर सकता है."

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बीते 5 सालों में कई बेरोजगार नौकरी की आशा लगाए बैठे रहे और अब उनकी नौकरी पाने की उम्र की सीमा खत्म हो गई और सरकार में बैठे हुए लोग एक व्यवहारिक सा फैसला नहीं ले पाए. इससे एक तरफ बेरोजगारों के हक मारे गए और दूसरी तरफ सरकारी विभाग कमजोर हो गए. इसका असर जनहित की योजनाओं पर पड़ा लेकिन इस इंपैक्ट का ऑडिट करने के लिए कोई सामने नहीं आएगा.

Last Updated : Sep 17, 2024, 1:46 PM IST
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