चित्तौड़गढ़. अफीम डोडा नष्टीकरण का मामला राज्य सरकार के गले पड़ता दिखाई दे रहा है. भारतीय जनता पार्टी के बेगूं विधायक डॉ. सुरेश धाकड़ के बाद चित्तौड़गढ़ के निर्दलीय विधायक चंद्रभान सिंह आक्या भी किसानों के समर्थन में आ गए. उन्होंने गुरुवार को विधानसभा सत्र में बड़ी ही मुखरता से डोडा नष्टीकरण के आदेश के खिलाफ अपनी बात रखी. इसके बदले किसानों को उचित मुआवजा प्रदान करने का प्रस्ताव रखा.
बरसों बाद आबकारी विभाग को डोडा याद आया : विधानसभा सत्र के दूसरे दिन विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने विधायक चंद्रभान सिंह आक्या को अपनी बात रखने का मौका दिया. चित्तौड़गढ़ विधायक ने गत महीने आबकारी आयुक्त की ओर से 2016 के बाद से अब तक का डोडा नष्ट करने संबंधी आदेश का हवाला देते हुए कहा कि इस आदेश को लेकर किसान परेशान हैं. डोडा बारिश की नमी के कारण स्वतः ही खराब हो जाता है. ऐसे में 5 से 6 साल तक डोडा सुरक्षित रखना नामुमकिन है. किसानों ने डोडा खेतों में डालकर नष्ट कर दिया और अब बरसों बाद आबकारी विभाग को डोडा याद आ रहा है.
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प्रति किलो 500 रुपए तक का मुआवजा : चंद्रभान सिंह आक्या ने कहा कि पहले राज्य सरकार की ओर से ठेकेदार के जरिए 125 रुपए से लेकर 200 रुपए प्रति किलो तक डोडा खरीदा जाता था. सरकार की ओर से उसे खत्म कर दिया गया. नतीजतन, किसानों ने खाद के रूप में उसे अपने खेतों में डालकर नष्ट कर दिया. अब इतने वर्षों बाद विभाग की ओर से यह बेतुका फरमान जारी किया गया. इसके खिलाफ किसानों में विरोध के स्वर पनप रहे हैं. उन्होंने इस आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए डोडा नष्टीकरण के बदले किसानों को प्रति किलो 500 रुपए तक का मुआवजा का प्रस्ताव पेश करते हुए सरकार से किसानों की इस चिंता को खत्म करने का आग्रह किया.
बता दें कि प्रदेश में चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, भीलवाड़ा, कोटा, झालावाड़ और बारां में अफीम की खेती की जाती है. इसके लिए नारकोटिक्स ब्यूरो की ओर से किसानों को लाइसेंस प्रदान किए जाते हैं. सबसे अधिक चित्तौड़गढ़ में अफीम की खेती की जाती है. गुरुवार को डूंगला में बड़े पैमाने पर किसानों ने डोडा नष्टीकरण के आदेश के प्रति अपना विरोध जताया था. जिले भर में इस आदेश के खिलाफ किसानों की ओर से प्रदर्शन किए जा रहे हैं.
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चित्तौड़गढ़ में डोडा चूरा का मूल्य दिलाने की मांग : मामले में गुरुवार को बड़ी संख्या में किसान कलेक्ट्रेट पहुंचे और उन्होंने डोडा चूरा का मूल्य दिलाने की मांग की. मूल्य नहीं दिलाने पर डोडा चूरा नष्ट करने से इनकार कर दिया है. बस्सी क्षेत्र के अफीम उत्पादक किसानों ने आज दिए ज्ञापन में बताया कि पिछले 5 वर्षों से किसानों के पास पड़ा डोडा चूरा सड़ चुका है. 2014 से पहले डोडा चूरा की 125 रुपए प्रतिकिलो कीमत दी जाती थी, लेकिन कालांतर में डोडा चूरा का मूल्य देना सरकार ने बंद कर दिया है. केन्द्र सरकार जहां सीपीएस पद्धति में डोडा चूरा की कीमत अदा कर रही है तो फिर लुआई-चिराई वाले किसानों के साथ यह अन्याय क्यों किया जा रहा है? क्षेत्र के किसानों ने प्रतिकिलो 1 हजार 600 रुपए डोडा चूरा की कीमत दिलाने की मांग की है. साथ ही मुआवजा नहीं देने पर विरोध की चेतावनी दी है.
डोडा चूरा नष्टीकरण को लेकर हुई राजनीति : डोडा चूरा अफीम किसानों के बीच शुरू से ही राजनीति का केन्द्र रहा है. 2014 के बाद नई अफीम नीति बनने के साथ ही डोडा चूरा को नशे के उपयोग के लिए प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन जहां एक ओर डोडा चूरा को नारकोटिक्स अधिनियम में शामिल किया गया है. वहीं, नष्टीकरण का काम आबकारी विभाग के जिम्मे रखा है. इसी से यह विवाद चला आ रहा है. पिछले कई सालों से हर साल डोडा चूरा नष्ट करने को लेकर आबकारी विभाग कार्यक्रम जारी करता है, लेकिन किसान डोडा चूरा नष्ट करने को तैयार नहीं हैं. किसान संघों का कहना है कि पिछले 5 सालों में अब डोडा चूरा पूरी तरह से सड़ चुका है, लेकिन सरकार मानने को राजी नहीं है. पिछली सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री उदयलाल आंजना ने भी डोडा चूरा नष्टीकरण की कार्रवाई का विरोध जताया था. इस वर्ष फिर नष्टीकरण को लेकर कार्यक्रम जारी किया गया, लेकिन इसका स्थाई समाधान नहीं निकल पाया है.