लोहरदगा: चुनाव है तो नेता विकास के दावे भी कर रहे हैं. जनता भी नेताओं के रिपोर्ट कार्ड पर नजर रख रही है. गांव में विकास की हकीकत को समझना भी जरूरी है. गांव के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं. नक्सलवाद ने उन्हें किस तरह प्रभावित किया है? विकास की मौजूदा स्थिति क्या है और समस्याओं को लेकर क्या स्थिति है? यह जानना भी जरूरी है. लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड में सुदूर पहाड़ की तलहटी में बसा हेसवे गांव ऐसा ही एक गांव है जो आज भी कई समस्याओं से जूझ रहा है.
पलायन इलाके की सबसे गंभीर समस्या
दो दशक पहले यह गांव नक्सलवाद की भयानक आग में जल रहा था. गांव के युवा नेता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. जिसके बाद लोग गांव से पलायन करने को मजबूर हो गए थे. ज्यादातर परिवार गांव में नहीं रहते थे, क्योंकि कहीं नक्सली उनके घर पहुंचकर कुछ मांग न लें.
नक्सली कभी गांव के किसी बच्चे को अपने दस्ते में शामिल करने को कहते तो कभी किसी गरीब के घर जाकर पूरे दस्ते के लिए खाना बनाने को कहते. गरीबी और लाचारी के बीच डर उनके लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा था. फिलहाल नक्सलवाद खत्म हो गया है, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक पलायन अभी भी जारी है.
आधी आबादी रहती है बाहर
ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक जाने वाली सड़क बेहद खराब हालत में है. इतना ही नहीं गांव में अस्पताल की बिल्डिंग बनी है, लेकिन वहां कोई डॉक्टर नहीं जाता. पानी की समस्या भी गंभीर है. गांव की 500 की आबादी में से आधी आबादी रोजगार की तलाश में तमिलनाडु, केरल, बेंगलुरु आदि जगहों पर पलायन कर चुकी है. लोगों के पास कोई काम नहीं है. गांव में युवा नजर नहीं आते. जो बचे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. सिंचाई के साधन नहीं होने से खेती नहीं हो पाती.
उन्होंने बताया कि गांव में आज भी कई समस्याएं हैं, जिनका समाधान नहीं हो पाया है. कोई नेता उनकी समस्याएं सुनने नहीं आता. प्रशासनिक अधिकारी भी कभी क्षेत्र का दौरा नहीं करते. ग्रामीण अपनी समस्याओं से खुद ही जूझ रहे हैं. जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर इस गांव की हालत बेहद खराब है. ग्रामीणों के चेहरों पर खौफ तो गायब हो गया है, लेकिन बेबसी अभी भी साफ झलक रही है.