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हेसवे के दामन पर पलायन का धब्बा, कैसे होगा गांव का विकास - Migration in Lohardaga - MIGRATION IN LOHARDAGA

Hesve village of Lohardaga. लोहरदगा लोकसभा के विशुनपुर विधानसभा क्षेत्र में अभी भी कई समस्याएं हैं. हेसवे गांव के स्थानीय ग्रामीणों के लिए रोजगार एक ज्वलंत मुद्दा है. गांव का विकास भी एक बड़ी समस्या है. चुनाव को लेकर मतदाता इसको लेकर काफी गंभीर हैं. वे समस्याओं के समाधान और प्रत्याशियों की पहल को तौल रहे हैं. नक्सलवाद का खौफ तो गायब हो गया है, लेकिन रोजगार की समस्या अभी भी हावी है.

Migration fromLohardaga
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : May 10, 2024, 12:28 PM IST

हेसवे गांव में पलायन की समस्या (ईटीवी भारत)

लोहरदगा: चुनाव है तो नेता विकास के दावे भी कर रहे हैं. जनता भी नेताओं के रिपोर्ट कार्ड पर नजर रख रही है. गांव में विकास की हकीकत को समझना भी जरूरी है. गांव के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं. नक्सलवाद ने उन्हें किस तरह प्रभावित किया है? विकास की मौजूदा स्थिति क्या है और समस्याओं को लेकर क्या स्थिति है? यह जानना भी जरूरी है. लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड में सुदूर पहाड़ की तलहटी में बसा हेसवे गांव ऐसा ही एक गांव है जो आज भी कई समस्याओं से जूझ रहा है.

पलायन इलाके की सबसे गंभीर समस्या

दो दशक पहले यह गांव नक्सलवाद की भयानक आग में जल रहा था. गांव के युवा नेता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. जिसके बाद लोग गांव से पलायन करने को मजबूर हो गए थे. ज्यादातर परिवार गांव में नहीं रहते थे, क्योंकि कहीं नक्सली उनके घर पहुंचकर कुछ मांग न लें.

नक्सली कभी गांव के किसी बच्चे को अपने दस्ते में शामिल करने को कहते तो कभी किसी गरीब के घर जाकर पूरे दस्ते के लिए खाना बनाने को कहते. गरीबी और लाचारी के बीच डर उनके लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा था. फिलहाल नक्सलवाद खत्म हो गया है, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक पलायन अभी भी जारी है.

आधी आबादी रहती है बाहर

ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक जाने वाली सड़क बेहद खराब हालत में है. इतना ही नहीं गांव में अस्पताल की बिल्डिंग बनी है, लेकिन वहां कोई डॉक्टर नहीं जाता. पानी की समस्या भी गंभीर है. गांव की 500 की आबादी में से आधी आबादी रोजगार की तलाश में तमिलनाडु, केरल, बेंगलुरु आदि जगहों पर पलायन कर चुकी है. लोगों के पास कोई काम नहीं है. गांव में युवा नजर नहीं आते. जो बचे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. सिंचाई के साधन नहीं होने से खेती नहीं हो पाती.

उन्होंने बताया कि गांव में आज भी कई समस्याएं हैं, जिनका समाधान नहीं हो पाया है. कोई नेता उनकी समस्याएं सुनने नहीं आता. प्रशासनिक अधिकारी भी कभी क्षेत्र का दौरा नहीं करते. ग्रामीण अपनी समस्याओं से खुद ही जूझ रहे हैं. जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर इस गांव की हालत बेहद खराब है. ग्रामीणों के चेहरों पर खौफ तो गायब हो गया है, लेकिन बेबसी अभी भी साफ झलक रही है.

यह भी पढ़ें: पलामू में पलायन है बड़ा चुनावी मुद्दा! किनकी नीति से प्रभावित होंगे प्रवासी मजदूर ये है बड़ा सवाल - Lok Sabha election 2024

यह भी पढ़ें: प्रत्याशियों का इंतजार कर रहे दूरस्थ इलाकों के ग्रामीण, कई मुद्दों को लेकर खुश तो कई से हैं नाराज - Lok Sabha election 2024

यह भी पढ़ें: श्रम दिवस विशेष: सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक मजदूर करते हैं झारखंड से पलायन, जानिए वजह - Migration of workers from Jharkhand

हेसवे गांव में पलायन की समस्या (ईटीवी भारत)

लोहरदगा: चुनाव है तो नेता विकास के दावे भी कर रहे हैं. जनता भी नेताओं के रिपोर्ट कार्ड पर नजर रख रही है. गांव में विकास की हकीकत को समझना भी जरूरी है. गांव के लोग समस्याओं से जूझ रहे हैं. नक्सलवाद ने उन्हें किस तरह प्रभावित किया है? विकास की मौजूदा स्थिति क्या है और समस्याओं को लेकर क्या स्थिति है? यह जानना भी जरूरी है. लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड में सुदूर पहाड़ की तलहटी में बसा हेसवे गांव ऐसा ही एक गांव है जो आज भी कई समस्याओं से जूझ रहा है.

पलायन इलाके की सबसे गंभीर समस्या

दो दशक पहले यह गांव नक्सलवाद की भयानक आग में जल रहा था. गांव के युवा नेता की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी. जिसके बाद लोग गांव से पलायन करने को मजबूर हो गए थे. ज्यादातर परिवार गांव में नहीं रहते थे, क्योंकि कहीं नक्सली उनके घर पहुंचकर कुछ मांग न लें.

नक्सली कभी गांव के किसी बच्चे को अपने दस्ते में शामिल करने को कहते तो कभी किसी गरीब के घर जाकर पूरे दस्ते के लिए खाना बनाने को कहते. गरीबी और लाचारी के बीच डर उनके लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा था. फिलहाल नक्सलवाद खत्म हो गया है, लेकिन उससे भी ज्यादा खतरनाक पलायन अभी भी जारी है.

आधी आबादी रहती है बाहर

ग्रामीणों ने बताया कि गांव तक जाने वाली सड़क बेहद खराब हालत में है. इतना ही नहीं गांव में अस्पताल की बिल्डिंग बनी है, लेकिन वहां कोई डॉक्टर नहीं जाता. पानी की समस्या भी गंभीर है. गांव की 500 की आबादी में से आधी आबादी रोजगार की तलाश में तमिलनाडु, केरल, बेंगलुरु आदि जगहों पर पलायन कर चुकी है. लोगों के पास कोई काम नहीं है. गांव में युवा नजर नहीं आते. जो बचे हैं, उनके पास कोई काम नहीं है. सिंचाई के साधन नहीं होने से खेती नहीं हो पाती.

उन्होंने बताया कि गांव में आज भी कई समस्याएं हैं, जिनका समाधान नहीं हो पाया है. कोई नेता उनकी समस्याएं सुनने नहीं आता. प्रशासनिक अधिकारी भी कभी क्षेत्र का दौरा नहीं करते. ग्रामीण अपनी समस्याओं से खुद ही जूझ रहे हैं. जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर इस गांव की हालत बेहद खराब है. ग्रामीणों के चेहरों पर खौफ तो गायब हो गया है, लेकिन बेबसी अभी भी साफ झलक रही है.

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