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देहरादून में मौजूद वेटलैंड से हो रहा मीथेन गैस का उत्सर्जन, रिस्पना नदी सबसे खतरनाक! - methane gas emission from wetlands - METHANE GAS EMISSION FROM WETLANDS

Methane Gas Emission From Wetlands देहरादून में मौजूद वेटलैंड्स से मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. इसके अलावा वाडिया संस्थान रिस्पना नदी और टिहरी जलाशय से निकलने वाली मीथेन गैस का अध्ययन कर रहा है.

Methane Gas Emission From Wetlands
देहरादून में मौजूद वेटलैंड से हो रहा मीथेन गैस का उत्सर्जन (PHOTO- ETV BHARAT GRAPHICS)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Jun 20, 2024, 4:23 PM IST

देहरादून में मौजूद वेटलैंड से हो रहा मीथेन गैस का उत्सर्जन का अध्ययन कर रहा वाडिया इंस्टीट्यूट (VIDEO-ETV BHRAT)

देहरादूनः उत्तराखंड में एक तरफ सूख रहे प्राकृतिक स्रोत एक गंभीर समस्या बन रही है. दूसरी तरफ देहरादून शहर के आसपास मौजूद वेटलैंड से मिथेन गैस का रिसाव हो रहा है. जो भविष्य के लिहाज से और अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. क्योंकि मिथेन गैस, कार्बन डाईऑक्साइड से करीब 20 गुना अधिक नुकसानदायक है. शहर के आसपास मौजूद न सिर्फ वेटलैंड से मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. बल्कि देहरादून की रिस्पना नदी से भी बड़ी मात्रा में मीथेन गैस के उत्सर्जन की बात वैज्ञानिक कह रहे हैं. ऐसे में वैज्ञानिक शहरों के आसपास मौजूद वेटलैंड, रिस्पना नदी के साथ ही टिहरी झील का भी अध्ययन कर रहे हैं. ताकि इनसे निकल रही मीथेन गैस की मात्रा को जाना जा सके.

शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास मौजूद दलदली भूमि या फिर पानी वाले जमीन को वेटलैंड (आर्द्रभूमि) कहा जाता है. देहरादून शहर के आसपास पहले काफी वेटलैंड हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई ये वेटलैंड भी लुप्त होती चली गई. देहरादून शहर के पास आसन कंजर्वेशन रिजर्व एक मात्र ऐसा वेटलैंड है जो बेहतर स्थिति में है. आसन वेटलैंड को रामसर वेटलैंड की श्रेणी में रखा गया है. इसके अलावा देश के अन्य जगहों पर मौजूद 114 वेटलैंड को भी रामसर वेटलैंड की श्रेणी में रखा गया है.

वेटलैंड के फायदे और नुकसान: देहरादून के शहर के समीप अभी भी कई वेटलैंड मौजूद है. लेकिन नकरौंदा वेटलैंड की स्थिति न सिर्फ काफी दयनीय है. बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी काफी खतरनाक बन गया है. क्योंकि नकरौंदा में लगातार बढ़ रही गंदगी से मिथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. जो ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा, वेटलैंड जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण अंग होने के साथ ही इसे पृथ्वी की किडनी और सुपर बायोलॉजिकल मार्केट भी कहा जाता है जो वेटलैंड विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र है. वेटलैंड, बाढ़ नियंत्रण, जल चक्र और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने में भी काफी सहायक होता है. कुल मिलाकर, पृथ्वी पर जीवन बचाए रखने के लिए वेटलैंड का होना बेहद आवश्यक है.

वर्तमान में बढ़ा कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट पीपीएम: वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का मतलब है कि वैश्विक तापमान बढ़ रहा है. प्री इंडस्ट्रियल एरा 1980 से पहले ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति कुछ और थी. लेकिन मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट (Concentration Gradient) 420 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) है. जबकि साल 2002 में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट 365 पीपीएम था. हालांकि, ये स्थिति ग्लोबल स्तर पर है. लेकिन लोकल स्तर पर ये और भी ज्यादा कम की जा सकती है. लेकिन ये उस क्षेत्र के डेमोग्राफी, जियोलॉजी और उपलब्ध रिसोर्सेज पर निर्भर करता है.

बढ़ती भीड़ पर अध्ययन की जरूरत: उत्तराखंड चारधाम यात्रा में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसे में बढ़ती भीड़ पर भी अध्ययन करने की जरूरत है. ताकि इनकी जानकारी मिल सके कि बढ़ती भीड़ का असर कहीं उस क्षेत्र में तो नहीं पड़ रहा है. उत्तराखंड में मौजूद नेचुरल जल स्रोत, वेटलैंड्स पर वाडिया इंस्टीट्यूट अध्ययन करता है. वर्तमान समय में इंस्टीट्यूट की ओर से किए जा रहे अध्ययन में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि जो वेटलैंड्स मौजूद हैं. क्या वो भी ग्लोबल वार्मिंग और इंसानों का शिकार हो रहे हैं. अध्ययन में पता चला कि प्रदेश में शहरों के आसपास स्थिति वेटलैंड्स में मौजूद पानी अब सिर्फ एग्रीकल्चर इस्तेमाल के लिए ही इस्तेमाल हो सकते है.

वेटलैंड बन सकता है नकरौंदा: देहरादून स्थित आसन वेटलैंड का रिजर्वायर काफी अधिक बढ़ा है. लिहाजा, इस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन नकरौंदा वेटलैंड में नाइट्रेट कंसंट्रेशन एक तय सीमा से ज्यादा है. जिसकी मुख्य वजह इंसान ही है. लिहाजा, नकरौंदा वेटलैंड पर इंसानों का असर काफी अधिक है. ऐसे में यही स्थिति रही तो आने वाले समय में नकरौंदा, वेटलैंड की जगह में तब्दील हो जाएगा. लिहाजा, ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही कहा कि वेटलैंड में ऑर्गेनिक पदार्थ इकट्ठा होने से मीथेन गैस बनती है. लिहाजा, सूर्य के प्रभाव में आने से मीथेन गैस का उत्सर्जन होने लगता है. मीथेन गैस, कार्बन डाइऑक्साइड से करीब 20 गुना अधिक नुकसानदायक है.

टिहरी जलाशय से निकल रही मीथेन गैस: ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट वेटलैंड्स में मीथेन उत्सर्जन को लेकर भी अध्ययन कर रहा है. ताकि इसकी जानकारी मिल सके कि किस मात्रा में इन वेटलैंड्स से मीथेन का उत्सर्जन हो रहा है. यह अध्ययन लगातार जारी है. इसके अलावा हर साल आपदा आने के चलते ऑर्गेनिक पदार्थ टिहरी रिजर्वायर में एकत्र हो जाते हैं. ऐसे में ऑर्गेनिक पदार्थों के सड़ने से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है. हालांकि, टिहरी रिजर्वायर में यह भी देखा गया है कि बबल निकलता रहता है. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट टिहरी रिजर्वायर से निकल रहे मीथेन गैस की मात्रा को लेकर भी अध्ययन करने का प्लान तैयार कर रहा है.

रिस्पना नदी से निकल रही मीथेन गैंस: इसके अलावा देहरादून स्थित रिस्पना नदी, नाले में तब्दील हो गई है. यही नहीं, रिस्पना नदी में ह्यूमन वेस्ट के साथ ही ऑर्गेनिक वेस्ट भी आसानी से देखा जा सकता है. जिसके चलते रिस्पना नदी से मिथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. रिस्पना से किस मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है, इसके लिए अध्ययन किया जाएगा. समीर तिवारी ने बताया कि देहरादून का तापमान लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में इन सभी अध्ययनों से इसकी जानकारी मिल सकेगी कि, क्या वास्तव में वेटलैंड और रिस्पना नदी से निकलने वाले मीथेन गैस का भी कोई इंपैक्ट है या नहीं.

ये भी पढ़ेंः कभी देहरादून की जीवन रेखा रही रिस्पना नदी प्रदूषण और अतिक्रमण से बनी नाला, दिखावा साबित हुए सरकारी अभियान

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देहरादून में मौजूद वेटलैंड से हो रहा मीथेन गैस का उत्सर्जन का अध्ययन कर रहा वाडिया इंस्टीट्यूट (VIDEO-ETV BHRAT)

देहरादूनः उत्तराखंड में एक तरफ सूख रहे प्राकृतिक स्रोत एक गंभीर समस्या बन रही है. दूसरी तरफ देहरादून शहर के आसपास मौजूद वेटलैंड से मिथेन गैस का रिसाव हो रहा है. जो भविष्य के लिहाज से और अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. क्योंकि मिथेन गैस, कार्बन डाईऑक्साइड से करीब 20 गुना अधिक नुकसानदायक है. शहर के आसपास मौजूद न सिर्फ वेटलैंड से मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. बल्कि देहरादून की रिस्पना नदी से भी बड़ी मात्रा में मीथेन गैस के उत्सर्जन की बात वैज्ञानिक कह रहे हैं. ऐसे में वैज्ञानिक शहरों के आसपास मौजूद वेटलैंड, रिस्पना नदी के साथ ही टिहरी झील का भी अध्ययन कर रहे हैं. ताकि इनसे निकल रही मीथेन गैस की मात्रा को जाना जा सके.

शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों के आसपास मौजूद दलदली भूमि या फिर पानी वाले जमीन को वेटलैंड (आर्द्रभूमि) कहा जाता है. देहरादून शहर के आसपास पहले काफी वेटलैंड हुआ करते थे. लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे आबादी बढ़ती गई ये वेटलैंड भी लुप्त होती चली गई. देहरादून शहर के पास आसन कंजर्वेशन रिजर्व एक मात्र ऐसा वेटलैंड है जो बेहतर स्थिति में है. आसन वेटलैंड को रामसर वेटलैंड की श्रेणी में रखा गया है. इसके अलावा देश के अन्य जगहों पर मौजूद 114 वेटलैंड को भी रामसर वेटलैंड की श्रेणी में रखा गया है.

वेटलैंड के फायदे और नुकसान: देहरादून के शहर के समीप अभी भी कई वेटलैंड मौजूद है. लेकिन नकरौंदा वेटलैंड की स्थिति न सिर्फ काफी दयनीय है. बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी काफी खतरनाक बन गया है. क्योंकि नकरौंदा में लगातार बढ़ रही गंदगी से मिथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. जो ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसके अलावा, वेटलैंड जैव विविधता का एक महत्वपूर्ण अंग होने के साथ ही इसे पृथ्वी की किडनी और सुपर बायोलॉजिकल मार्केट भी कहा जाता है जो वेटलैंड विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र है. वेटलैंड, बाढ़ नियंत्रण, जल चक्र और जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने में भी काफी सहायक होता है. कुल मिलाकर, पृथ्वी पर जीवन बचाए रखने के लिए वेटलैंड का होना बेहद आवश्यक है.

वर्तमान में बढ़ा कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट पीपीएम: वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का मतलब है कि वैश्विक तापमान बढ़ रहा है. प्री इंडस्ट्रियल एरा 1980 से पहले ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति कुछ और थी. लेकिन मौजूदा समय में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट (Concentration Gradient) 420 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) है. जबकि साल 2002 में वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड का कंसंट्रेशन ग्रेडिएंट 365 पीपीएम था. हालांकि, ये स्थिति ग्लोबल स्तर पर है. लेकिन लोकल स्तर पर ये और भी ज्यादा कम की जा सकती है. लेकिन ये उस क्षेत्र के डेमोग्राफी, जियोलॉजी और उपलब्ध रिसोर्सेज पर निर्भर करता है.

बढ़ती भीड़ पर अध्ययन की जरूरत: उत्तराखंड चारधाम यात्रा में हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. ऐसे में बढ़ती भीड़ पर भी अध्ययन करने की जरूरत है. ताकि इनकी जानकारी मिल सके कि बढ़ती भीड़ का असर कहीं उस क्षेत्र में तो नहीं पड़ रहा है. उत्तराखंड में मौजूद नेचुरल जल स्रोत, वेटलैंड्स पर वाडिया इंस्टीट्यूट अध्ययन करता है. वर्तमान समय में इंस्टीट्यूट की ओर से किए जा रहे अध्ययन में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि जो वेटलैंड्स मौजूद हैं. क्या वो भी ग्लोबल वार्मिंग और इंसानों का शिकार हो रहे हैं. अध्ययन में पता चला कि प्रदेश में शहरों के आसपास स्थिति वेटलैंड्स में मौजूद पानी अब सिर्फ एग्रीकल्चर इस्तेमाल के लिए ही इस्तेमाल हो सकते है.

वेटलैंड बन सकता है नकरौंदा: देहरादून स्थित आसन वेटलैंड का रिजर्वायर काफी अधिक बढ़ा है. लिहाजा, इस पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन नकरौंदा वेटलैंड में नाइट्रेट कंसंट्रेशन एक तय सीमा से ज्यादा है. जिसकी मुख्य वजह इंसान ही है. लिहाजा, नकरौंदा वेटलैंड पर इंसानों का असर काफी अधिक है. ऐसे में यही स्थिति रही तो आने वाले समय में नकरौंदा, वेटलैंड की जगह में तब्दील हो जाएगा. लिहाजा, ध्यान देने की जरूरत है. साथ ही कहा कि वेटलैंड में ऑर्गेनिक पदार्थ इकट्ठा होने से मीथेन गैस बनती है. लिहाजा, सूर्य के प्रभाव में आने से मीथेन गैस का उत्सर्जन होने लगता है. मीथेन गैस, कार्बन डाइऑक्साइड से करीब 20 गुना अधिक नुकसानदायक है.

टिहरी जलाशय से निकल रही मीथेन गैस: ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट वेटलैंड्स में मीथेन उत्सर्जन को लेकर भी अध्ययन कर रहा है. ताकि इसकी जानकारी मिल सके कि किस मात्रा में इन वेटलैंड्स से मीथेन का उत्सर्जन हो रहा है. यह अध्ययन लगातार जारी है. इसके अलावा हर साल आपदा आने के चलते ऑर्गेनिक पदार्थ टिहरी रिजर्वायर में एकत्र हो जाते हैं. ऐसे में ऑर्गेनिक पदार्थों के सड़ने से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है. हालांकि, टिहरी रिजर्वायर में यह भी देखा गया है कि बबल निकलता रहता है. ऐसे में वाडिया इंस्टीट्यूट टिहरी रिजर्वायर से निकल रहे मीथेन गैस की मात्रा को लेकर भी अध्ययन करने का प्लान तैयार कर रहा है.

रिस्पना नदी से निकल रही मीथेन गैंस: इसके अलावा देहरादून स्थित रिस्पना नदी, नाले में तब्दील हो गई है. यही नहीं, रिस्पना नदी में ह्यूमन वेस्ट के साथ ही ऑर्गेनिक वेस्ट भी आसानी से देखा जा सकता है. जिसके चलते रिस्पना नदी से मिथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है. रिस्पना से किस मात्रा में मीथेन गैस का उत्सर्जन हो रहा है, इसके लिए अध्ययन किया जाएगा. समीर तिवारी ने बताया कि देहरादून का तापमान लगातार बढ़ रहा है. ऐसे में इन सभी अध्ययनों से इसकी जानकारी मिल सकेगी कि, क्या वास्तव में वेटलैंड और रिस्पना नदी से निकलने वाले मीथेन गैस का भी कोई इंपैक्ट है या नहीं.

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