प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज में एक महीने से ज्यादा समय तक माघ मेले का आयोजन हर साल होता है. इसी महीने में मौनी अमावस्या का स्नान पर्व पड़ता है और यही वो सबसे मुख्य और बड़ा स्नान पर्व है, जिस दिन संगम में आस्था की डुबकी लगाने के लिए देश विदेश से लाखों श्रद्धालु संगम तट पर पहुंचते हैं.
साधु संतों के मुताबिक मौन सबसे बड़ा व्रत होता है और मौनी आमवस्या के दिन मौन रहकर जो भी भक्त तीर्थराज प्रयागराज में संगम में स्नान करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. वहीं ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन सूर्य के साथ ही चंद्रमा का भी मकर राशि में प्रवेश होता है. इस कारण दोनों की ऊर्जा का संचार होता है. यही कारण है कि मौनी अमावस्या के दिन सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है.
संगम नगरी में मौनी अमावस्या का स्नान: संगम नगरी प्रयागराज में 9 फरवरी शुक्रवार को मौनी अमावस्या के स्नान पर्व पर सबसे ज्यादा स्नानार्थियों की भीड़ जुटेगी. मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन जो भी भक्त श्रद्धालु मौन रहकर संगम में स्नान करने जाते हैं. उनकी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. घर परिवार में सुख शांति समृद्धि का वास होता है. साथ ही आरोग्यता की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि पूरे माघ मेला के दौरान सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और फलदायक स्नान पर्व मौनी अमावस्या का ही होता है.
मौन व्रत होता है सबसे बड़ा व्रत है: माघ मेले में आये हुए जूना अखाड़े से जुड़े संत माधवानंद महाराज का कहना है कि मौन व्रत सबसे बड़ा व्रत है. मौन रहकर किया जाने वाला व्रत और जप तप अत्यधिक फलदायी होता है. यही वजह है कि मौनी अमावस्या के दिन संगम नगरी प्रयागराज में कल्पवास करने वाले तमाम साधु संत और श्रद्धालु संगम में स्नान करने तक मौन व्रत का पालन करते हैं. उन्होंने बताया की मौन रहने से शरीर को शक्ति मिलने के साथ ही शरीर में ऊर्जा का संचार होता है. प्राचीन काल से ही मौन रहकर साधना करने की परंपरा चली आ रही है और इस प्राचीन परंपरा का आज भी बहुत से लोग पालन करते हैं. मौनी अमावस्या के दिन लोग मौन रहकर संगम में स्नान करने जाते हैं.
सूर्य के साथ ही चंद्रमा भी मकर राशि में करते हैं वास: ज्योतिषाचार्य आशुतोष वार्ष्णेय ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, लेकिन मौनी अमावस्या के दिन सूर्य के साथ चंद्रमा भी मकर राशि में प्रवेश कर जाते हैं. ऐसे में मौनी अमावस्या के दिन संगम में स्नान करने पर सूर्य के साथ ही चंद्रमा की ऊर्जा और शक्ति भी स्नान करने वालों को मिलती है. मकर संक्रांति पर सिर्फ सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. मौनी अमावस्या पर चंद्रमा का भी मकर राशि में वास होने की वजह से दो प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है.
माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है: माधवानंद महाराज का का कहना है कि मौनी अमावस्या माघ मेले का सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण स्नान पर्व है. माघ महीने में तीर्थराज में सभी तीर्थों का वास होता है. इसके साथ ही इस पवित्र माघ महीने में मौनी अमावस्या के पुण्य काल में सभी देवी देवता भी तीर्थराज प्रयाग में आते हैं. यही कारण है कि मौनी अमावस्या के दिन गंगा यमुना सरस्वती की पावन त्रिवेणी में स्नान करने से श्रद्धालुओं की सभी कामनाओं की पूर्ति होती है. प्रयागराज सभी तीर्थों का राजा है. इसका वर्णन पुराणों के साथ ही शास्त्रों में मिलता है. रामायण में भी इससे जुड़ी चौपाई है जो इस प्रकार है.
वाणी पर संयम रखने का नियम: माघ मकर गति रवि जब होई तीरथपति आवहि सबकोइ देव दनुज किन्नर नर श्रेणी सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी. माधवानंद महाराज ने कहा कि मौन रहने से मन वाणी और व्यवहार पर नियंत्रण होता है. सदियों से मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर स्नान करने की परंपरा चली आ रही है.