लाहौल-स्पीति: हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति में बौद्ध और हिंदू धर्म को मानने वाले लोग हर साल अपनी पुरानी परंपराओं का पालन करते हैं. भगवान शिव के कई प्राचीन मंदिर लाहौल घाटी में हैं. यहां के हिंदू धर्म के लोगों की भगवान शिव में अटूट आस्था है. भगवान शिव को यहां के लोग अपना आराध्य देवता मानते हैं.
भगवान शिव के दर्शन के लिए लाहौल घाटी के श्रद्धालुओं में इतना जुनून है कि वे 90 किलोमीटर चलकर कई दर्रों को पार कर हर साल चंबा जिला के मणिमहेश पहुंचते हैं. यहां पर श्रद्धालु मणिमहेश झील में स्नान कर भगवान शिव की पूजा करते हैं.
रास्ते में मिलते हैं बहुत कम पेड़
मणिमहेश पहुंचने के लिए जिला लाहौल-स्पिती के उदयपुर से होकर सबसे कठिन रूट जाता है. इस रूट में बड़े-बड़े पहाड़ों को पार करना पड़ता है. इस यात्रा में ऑक्सीजन की कमी से हर कदम पर जूझना पड़ता है. सफर के दौरान बहुत ही कम पेड़ मिलते हैं. सारी यात्रा सूखे पहाड़ों और ग्लेशियर से होकर करनी पड़ती है जहां हर मिनट में मौसम बदलता रहता है.
इस साल भी जिला लाहौल-स्पीति के उदयपुर से 350 श्रद्धालुओं का जत्था मणिमहेश यात्रा के लिए रवाना हो गया है. इसमें 50 से अधिक महिलाएं भी शामिल हैं जो करीब 6 दिनों तक पैदल चलकर मणिमहेश की यात्रा को पूरी करेंगे. दुर्गम रास्तों और कई ऊंचे ग्लेशियर को पार करते हुए ये सभी श्रद्धालु मणिमहेश झील में स्नान कर भगवान शिव की पूजा करेंगे. हर साल पोरी मेले के समापन के बाद श्रद्धालुओं का जत्था मणिमहेश की ओर रवाना होता है और झील में स्नान करने के बाद इसी रास्ते से यह जत्था वापस लौटता है.
बहुत कठिन है यात्रा
वैसे तो चंबा जिला के हड़सर से मणिमहेश की पैदल यात्रा शुरू होती है. यह आधिकारिक रूट है जो 13 किलोमीटर के करीब है. वहीं, लाहौल-स्पीति के लोग पैदल यात्रा कर दुर्गम रास्तों से होते हुए इसी यात्रा को करने के लिए एक तरफ का 90 किलोमीटर का सफर तय करते हैं. आने-जाने में इस यात्रा को पूरी करने के लिए श्रद्धालुओं को 180 किलोमीटर का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है. इस पूरी यात्रा में श्रद्धालु बहुत ही खतरनाक रास्तों को पार करते हैं और पहाड़ों में बनी गुफाओं में अपना डेरा डालते हैं.
श्रद्धालु अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर जाते हैं. श्रद्धालुओं के जत्थे का पहला रात्रि पड़ाव थिरोट के पास होता है. उसके बाद दूसरा पड़ाव रापे गांव के पास, तीसरा रात्रि पड़ाव खोलड़ु पधर से एक किलोमीटर आगे. चौथा पड़ाव केलिंग मंदिर, पांचवा पड़ाव अलियास और छठे दिन यह जत्था पवित्र झील मणिमहेश पहुंचेगा.
बता दें कि सितंबर महीने में जोबरंग-मणिमहेश-कुगती पास के रास्ते पर जाना काफी चुनौतीपूर्ण होता है. श्रद्धालुओं को इस रूट पर 16,800 फिट ऊंचे कुगती जोत को पार कर मणिमहेश झील की ओर जाना पड़ता है. इन पहाड़ियों में मौसम खराब होते ही श्रद्धालुओं की दिक्कतें भी बढ़ जाती हैं लेकिन श्रद्धालु भगवान शिव का ध्यान करते हुए हर साल इस यात्रा को सफलतापूर्वक पूरा करते हैं.
26 अगस्त से शुरू होगी यात्रा
इस साल मणिमहेश की यात्रा आधिकारिक तौर पर 26 अगस्त से शुरू होगी जो 11 सितंबर तक चलेगी. चंबा जिला प्रशासन से इस यात्रा को लेकर सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. बता दें कि मणिमहेश यात्रा हिमाचल के चंबा जिले में होती है. यह यात्रा आधिकारिक तौर पर हड़सर नामक स्थान से पैदल शुरू होकर मणिमहेश पर्वत के नीचे स्थित डल झील तक पूर्ण होती है. इस यात्रा की दूरी करीब 13 किलोमीटर है. हर साल यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.