माता मंगला गौरी व्रत: सावन माह में जहां भक्त जहां भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं. वहीं, सावन माह के हर मंगलवार में माता पार्वती की पूजा अर्चना का भी विधान है. सावन माह में आने वाले हर मंगलवार को माता पार्वती की मंगला गौरी के रूप में पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता है कि मंगला गौरी की पूजा से भगवान शिव और माता पार्वती भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं.
सावन माह में मंगलवार के दिन भक्त मंगला गौरी व्रत का संकल्प लें और स्नान करने के बाद भगवान सूर्य देव को जल अर्पित करें. इसके बाद अपने पूजा घर में साफ सफाई कर भगवान शिव और मां पार्वती की प्रतिमा विराजमान करें. अब माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के बाद माता पार्वती का 16 श्रृंगार करें और देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें. ऐसे में भक्त माता पार्वती के किसी मंत्र का भी जाप कर सकते हैं और अंत में माता को खीर फल और मिठाई का भोग लगाकर अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें.
घर में बनी रहती है सुख शांति
आचार्य दीप कुमार का कहना है कि माता पार्वती के विभिन्न मंत्रो के जाप से भक्त को मनवांछित फल मिलता है और जो जातक विवाह के लिए इस व्रत का आयोजन करता है. उसका विवाह भी जल्द होता है. आचार्य दीप कुमार का कहना है कि सावन माह में पहला मंगला गौरी का व्रत 23 जुलाई, दूसरा व्रत 30 जुलाई, तीसरा व्रत 6 अगस्त और चौथ व्रत 13 अगस्त को रखा जाएगा. सुहागन महिलाएं भी अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भी इस व्रत को रखती हैं और इस व्रत के रखने से घर में सुख शांति भी बनी रहती है. वहीं, संतान सुख के लिए भी इस व्रत को किया जाता है. इसके अलावा अगर किसी कन्या के विवाह में बाधाएं आ रही हैं या फिर कुंडली में मांगलिक दोष है, तो वो भी इस व्रत को रख सकती हैं.
क्या है मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धर्मपाल नाम का एक धनी सेठ और उसकी एक बीवी थी, सेठ धर्मपाल की पत्नी काफी रूपवान थी. उनके जीवन में धन-धान्य, संपन्नता की कोई कमी नहीं थी किंतु उनकी कोई संतान न होने से धर्मपाल और उसकी पत्नी हमेशा दुखी रहते थे.बहुत वर्षों के बाद भगवान की पूजा-अनुष्ठान करने के बाद ईश्वर की कृपा से धर्मपाल और उसकी पत्नी को एक संतान की प्राप्ति हुई किंतु उसकी संतान को अल्पायु का श्राप था. इस श्राप के का कारण उसकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में ही हो जाती.
धर्मपाल की बहू को मिला अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद
ईश्वर की कृपा से धर्मपाल की संतान का विवाह 16 वर्ष से पहले ही हो गया. जिस कन्या से धर्मपाल के बेटे का विवाह हुआ था, वह कन्या सावन के महीने में मां गौरी की पूजा-आराधना करती थी. वह मंगला गौरी का व्रत रखकर मां गौरी की पूजा करती थी जिस कारण माता पार्वती ने उस कन्या को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था. माता पार्वती के आशीर्वाद से वह कन्या अखंड सौभाग्यवती हुई और उसका पति 100 वर्षों तक जीवित रहा. तब से ही मंगला गौरी व्रत की महिमा है और सभी विवाहित-अविवाहित स्त्रियां-कन्याएं माता पार्वती की प्रसन्नता के लिए इस व्रत को विधि विधान से रखती है.