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77 वर्षों से 92 बीघा जमीन पर सरकार का कब्जा, मीर बख्श ने मांगा ₹1000 करोड़ मुआवजा, मामले के समाधान के लिए रखी ये शर्त - NERCHOWK MEDICAL COLLEGE LAND CASE

Nerchowk Medical College land owner Mir Bakhsh demanded compensation: मंडी जिले के नेरचौक में पिछले 77 सालों से 92 बीघा निजी जमीन पर सरकार का कब्जा है. वहीं, इस जमीन पर मिनी सचिवालय, कृषि केंद्र, पशु औषधालय और मेडिकल कॉलेज का निर्माण किया गया है. ऐसे में इस जमीन के मालिक मीर बख्श ने एक हजार करोड़ से भी ज्यादा मुआवजा देने की मांग की है. वहीं, उन्होंने कहा कि वह मामले में निगोशिएशन करने को तैयार हैं, लेकिन सरकार जब उन्हें वार्ता के लिए बुलाएगी.

Mir Baksh Property Case
मीर बख्श ने मांगा ₹1000 करोड़ मुआवजा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 17, 2024, 8:55 AM IST

मंडी: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के नेरचौक में सरकार ने पिछले 77 वर्षों से 92 बीघा जमीन पर कब्जा करके रखा है. इस बात का खुलासा तब हुआ जब जमीन के असली मालिक मीर बख्श के हाईकोर्ट में केस जीतने के बाद अब जमीन के बदले मुआवजा अदा करने के लिए हाईकोर्ट में ही इजराय याचिका दायर की है. यह याचिका 12 जुलाई को दायर की गई गई. जमीन मालिक मीर बख्श के अनुसार वह इस फैसले के बाद नेगोशिएशन करने के लिए तैयार है, बशर्ते सरकार उसे वार्ता के लिए बुलाए. मीर बख्श ने अपनी 92 बीघा भूमि के बदले 1 हजार 61 करोड़ 57 लाख 11 हजार 431 रूपए मुआवजा की मांग की है. मीर बख्श ने कहा, वह इस मामले के समाधान के लिए तैयार हैं. लेकिन कम से कम सरकार वार्ता के लिए तो बुलाए और इस विषय पर नेगोशिएशन करे.

मीर बख्श ने मांगा ₹1000 करोड़ मुआवजा (ETV Bharat)

निजी जमीन पर हुआ मेडिकल कॉलेज सहित अन्य निर्माण: बता दें कि मीर बख्श के पूर्वजों की नेरचौक में 92 बीघा भूमि पर प्रदेश सरकार ने मिनी सचिवालय, कृषि केंद्र, पशु औषधालय और मेडिकल कॉलेज का निर्माण कर दिया है. इसको लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने मीर बख्श के पक्ष में फैसला सुनाया है. प्रदेश सरकार को जमीन के बदले उसी कीमत की जमीन किसी दूसरे स्थान पर देने का आदेश दिया है, लेकिन अभी तक जो जमीन उपलब्ध करवाई गई है उसे मीर बख्श ने नामंजूर कर दिया है.

जमीन मालिक ने 1 हजार करोड़ से अधिक का मुआवजा मांगा:मीर बख्श ने जमीन के बदले 1 हजार करोड़ से अधिक का मुआवजा मांगा है. लेकिन इसके साथ ही मीर बख्श ने सरकार को यह प्रस्ताव भी दिया है कि अगर सरकार इस विषय पर उन्हें वार्ता के लिए बुलाती है तो वह नेगोशिएशन करने के लिए तैयार हैं. इसके लिए मीर ने कोर्ट में लिखित में भी दे रखा है. मीर को इसी बात का मलाल भी है कि इस मामले को चलते हुए इतना लंबा समय बीत गया, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से वार्ता और नेगोशिएशन का कोई प्रयास नहीं किया गया.

'1956 से लड़ रहे हैं लड़ाई, न्याय तो मिला लेकिन सरकार का साथ नहीं': मीर बख्श ने बताया कि उनके पिता सुलतान मोहम्मद ने वर्ष 1956 में अपनी जमीन को वापिस हासिल करने की लड़ाई लड़ना शुरू किया था. लेकिन उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली और वर्ष 1983 को उनका देहांत हो गया. उसके बाद वर्ष 1992 से खुद मीर बख्श ने इस लड़ाई को लड़ा. मीर बख्श 2009 में हाईकोर्ट से इस केस को जीते जिसके बाद सरकार ने डबल बेंच और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन इसमें जीत मीर बख्श की ही हुई. मीर बख्श का कहना है कि कोर्ट से न्याय तो मिल गया, लेकिन सरकार का साथ आज दिन तक नहीं मिला और उसी के लिए अभी तक जंग जारी है.

'अपनी ही जमीन को नीलामी में खरीद कर की थी नई शुरुआत': मीर बख्श ने बताया कि जब देश का विभाजन हुआ तो नेरचौक के बहुत से मुसलमान पाकिस्तान चले गए. लेकिन इनका परिवार यही रह गया. सरकार ने यह सोचा कि यह परिवार भी पाकिस्तान चला गया है, जिसके चलते निष्क्रांत कानून के तहत इन सभी जमीनों पर सरकार का कब्जा हो गया. मीर बख्श के पिता दिल्ली तक अपनी जमीन वापिस लाने के लिए जाते रहे. लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद जब इनके पास अपनी जमीन ही नहीं बची तो निलामी में खुद अपनी ही जमीन को खरीदना पड़ा. मीर बख्श के पिता ने उस वक्त 500 रूपए में अपनी ही 9 बीघा जमीन को खरीदकर फिर से नई शुरूआत की.

अकेले मीर बख्श ही नहीं है मालिक और भी हैं हिस्सेदार: 92 बीघा जमीन के अकेले मीर बख्श ही मालिक नहीं है. इसमें उनके बड़े भाई की बेटी और तीन बहनें भी शामिल हैं. क्योंकि बड़े भाई का देहांत हो गया है, इसलिए अब उनकी बेटी के पास इस संपत्ति का मालिकाना हक है. मीर बख्श के तीन बेटे और एक बेटी है. परिवार खेती बाड़ी के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट का कारोबार भी करता है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में सरकार ने निजी जमीन पर बना दिया करोड़ों का अस्पताल, अब मालिक ने मांगा 1000 करोड़ का मुआवजा, जानें पूरा मामला

मंडी: हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के नेरचौक में सरकार ने पिछले 77 वर्षों से 92 बीघा जमीन पर कब्जा करके रखा है. इस बात का खुलासा तब हुआ जब जमीन के असली मालिक मीर बख्श के हाईकोर्ट में केस जीतने के बाद अब जमीन के बदले मुआवजा अदा करने के लिए हाईकोर्ट में ही इजराय याचिका दायर की है. यह याचिका 12 जुलाई को दायर की गई गई. जमीन मालिक मीर बख्श के अनुसार वह इस फैसले के बाद नेगोशिएशन करने के लिए तैयार है, बशर्ते सरकार उसे वार्ता के लिए बुलाए. मीर बख्श ने अपनी 92 बीघा भूमि के बदले 1 हजार 61 करोड़ 57 लाख 11 हजार 431 रूपए मुआवजा की मांग की है. मीर बख्श ने कहा, वह इस मामले के समाधान के लिए तैयार हैं. लेकिन कम से कम सरकार वार्ता के लिए तो बुलाए और इस विषय पर नेगोशिएशन करे.

मीर बख्श ने मांगा ₹1000 करोड़ मुआवजा (ETV Bharat)

निजी जमीन पर हुआ मेडिकल कॉलेज सहित अन्य निर्माण: बता दें कि मीर बख्श के पूर्वजों की नेरचौक में 92 बीघा भूमि पर प्रदेश सरकार ने मिनी सचिवालय, कृषि केंद्र, पशु औषधालय और मेडिकल कॉलेज का निर्माण कर दिया है. इसको लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने मीर बख्श के पक्ष में फैसला सुनाया है. प्रदेश सरकार को जमीन के बदले उसी कीमत की जमीन किसी दूसरे स्थान पर देने का आदेश दिया है, लेकिन अभी तक जो जमीन उपलब्ध करवाई गई है उसे मीर बख्श ने नामंजूर कर दिया है.

जमीन मालिक ने 1 हजार करोड़ से अधिक का मुआवजा मांगा:मीर बख्श ने जमीन के बदले 1 हजार करोड़ से अधिक का मुआवजा मांगा है. लेकिन इसके साथ ही मीर बख्श ने सरकार को यह प्रस्ताव भी दिया है कि अगर सरकार इस विषय पर उन्हें वार्ता के लिए बुलाती है तो वह नेगोशिएशन करने के लिए तैयार हैं. इसके लिए मीर ने कोर्ट में लिखित में भी दे रखा है. मीर को इसी बात का मलाल भी है कि इस मामले को चलते हुए इतना लंबा समय बीत गया, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से वार्ता और नेगोशिएशन का कोई प्रयास नहीं किया गया.

'1956 से लड़ रहे हैं लड़ाई, न्याय तो मिला लेकिन सरकार का साथ नहीं': मीर बख्श ने बताया कि उनके पिता सुलतान मोहम्मद ने वर्ष 1956 में अपनी जमीन को वापिस हासिल करने की लड़ाई लड़ना शुरू किया था. लेकिन उन्हें इसमें कामयाबी नहीं मिली और वर्ष 1983 को उनका देहांत हो गया. उसके बाद वर्ष 1992 से खुद मीर बख्श ने इस लड़ाई को लड़ा. मीर बख्श 2009 में हाईकोर्ट से इस केस को जीते जिसके बाद सरकार ने डबल बेंच और फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन इसमें जीत मीर बख्श की ही हुई. मीर बख्श का कहना है कि कोर्ट से न्याय तो मिल गया, लेकिन सरकार का साथ आज दिन तक नहीं मिला और उसी के लिए अभी तक जंग जारी है.

'अपनी ही जमीन को नीलामी में खरीद कर की थी नई शुरुआत': मीर बख्श ने बताया कि जब देश का विभाजन हुआ तो नेरचौक के बहुत से मुसलमान पाकिस्तान चले गए. लेकिन इनका परिवार यही रह गया. सरकार ने यह सोचा कि यह परिवार भी पाकिस्तान चला गया है, जिसके चलते निष्क्रांत कानून के तहत इन सभी जमीनों पर सरकार का कब्जा हो गया. मीर बख्श के पिता दिल्ली तक अपनी जमीन वापिस लाने के लिए जाते रहे. लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद जब इनके पास अपनी जमीन ही नहीं बची तो निलामी में खुद अपनी ही जमीन को खरीदना पड़ा. मीर बख्श के पिता ने उस वक्त 500 रूपए में अपनी ही 9 बीघा जमीन को खरीदकर फिर से नई शुरूआत की.

अकेले मीर बख्श ही नहीं है मालिक और भी हैं हिस्सेदार: 92 बीघा जमीन के अकेले मीर बख्श ही मालिक नहीं है. इसमें उनके बड़े भाई की बेटी और तीन बहनें भी शामिल हैं. क्योंकि बड़े भाई का देहांत हो गया है, इसलिए अब उनकी बेटी के पास इस संपत्ति का मालिकाना हक है. मीर बख्श के तीन बेटे और एक बेटी है. परिवार खेती बाड़ी के साथ-साथ ट्रांसपोर्ट का कारोबार भी करता है.

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