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इस बार बाघ पर सवार होकर आएगी मकर संक्रांति, अश्व होगा उपसवारी, ये है धार्मिक महत्व - MAKAR SANKRANTI 2025

मकर संक्रांति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा. जिसका पुण्य काल संपूर्ण दिन तक रहेगा. इस बार संक्रांति व्याघ्र पर सवार होकर आएगी.

Makar Sankranti 2025
मकर संक्रांति 2025 (ETV Bharat Bikaner)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 17 hours ago

बीकानेर: मकर संक्रांति पर्व इस बार 14 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन प्रातः 8:56 पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा. जिसका पुण्य काल इस समय से संपूर्ण दिन तक रहेगा. इस बार संक्रांति व्याघ्र पर सवार होकर आएगी. संक्रांति का उपवाहन अश्व रहेगा.

राशि विचरण से संक्रांति: पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि सूर्य 12 स्वरूप धारण करके 12 महीना में 12 राशियों में संक्रमण करते रहते हैं. उनके संक्रमण से संक्रांति होती है. अर्थात सूर्य के संक्रमण को संक्रांति कहते हैं. जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, उसे मकर संक्रांति कहते हैं. ग्रहों के राजा सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है.

पढ़ें: मकर संक्रांति 2025 कब है 14 या 15 जनवरी, जानें, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि - MAKAR SANKRANTI 2025 DATE

उन्होंने बताया कि यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है. इस दिन सूर्य की उपासना भी की जाती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य की आराधना करने से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. ज्योतिष मान्यता अनुसार इस दिन सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है जो उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है. उत्तरायण का अर्थ है सूर्य की यात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर शुरू होना. इसी दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने प्रारंभ हो जाते हैं.

पढ़ें: जयपुर में अगले साल मकर संक्रांति और शीतला अष्टमी की रहेगी छुट्टी, कलेक्टर ने जारी किए आदेश - LOCAL HOLIDAY IN JAIPUR

उत्तरायण होते सूर्य से मिलता है महत्वपूर्ण संदेश: मकर संक्रांति के दिन से ही खरमास मलमास का समापन हो जाता है और शादी विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है. उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति, गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायण, केरल में पोंगल और गढ़वाल में खिचड़ी संक्रांति के नाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य और शनि की विशेष आराधना करनी चाहिए.

पढ़ें: 73 साल बाद बदल गई सूर्य की चाल, इसीलिए इस बार 14 के बजाय 15 जनवरी को मकर संक्रांति - Sankranti Celebration in Rajasthan

सूर्य-शनि की विशेष आराधना: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और शनि का पिता-पुत्र का संबंध होता है. सूर्य इस दिन अपने पुत्र की राशि मकर में प्रवेश करते हैं. अतः इस दिन किसी भी जातक को साढ़ेसाती या कुंडली में सूर्य ग्रहण या शनि ग्रह से परेशानी चल रही हो, तो इस दिन सूर्य-शनि का पूजन करके श्वेतर्क और लाल रंग के पुष्पों से पूजा अर्चना करनी चाहिए.

दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति: मकर संक्रांति के दिन हरिद्वार, काशी, कुरुक्षेत्र, अयोध्या जैसे तीर्थ स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नान और दान का विशेष महत्व है. इस दिन इन स्थानों पर दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में अधिक बढ़ जाता है. मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है. तिल, गुड़, खिचड़ी, धान का खास महत्व है. पद्म पुराण के अनुसार मकर संक्रांति महापर्व है. इस दिन दान देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

आत्मज्ञान दान: मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शंकर ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था. इसी मकर संक्रांति के दिन से देवताओं के दिनों की गणना प्रारंभ होती है. जब सूर्य दक्षिणायन में रहते हैं तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है.

बीकानेर: मकर संक्रांति पर्व इस बार 14 जनवरी को मनाया जाएगा. इस दिन प्रातः 8:56 पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा. जिसका पुण्य काल इस समय से संपूर्ण दिन तक रहेगा. इस बार संक्रांति व्याघ्र पर सवार होकर आएगी. संक्रांति का उपवाहन अश्व रहेगा.

राशि विचरण से संक्रांति: पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि सूर्य 12 स्वरूप धारण करके 12 महीना में 12 राशियों में संक्रमण करते रहते हैं. उनके संक्रमण से संक्रांति होती है. अर्थात सूर्य के संक्रमण को संक्रांति कहते हैं. जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, उसे मकर संक्रांति कहते हैं. ग्रहों के राजा सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है.

पढ़ें: मकर संक्रांति 2025 कब है 14 या 15 जनवरी, जानें, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि - MAKAR SANKRANTI 2025 DATE

उन्होंने बताया कि यह हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है. इस दिन सूर्य की उपासना भी की जाती है. मकर संक्रांति के दिन सूर्य की आराधना करने से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. ज्योतिष मान्यता अनुसार इस दिन सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है जो उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है. उत्तरायण का अर्थ है सूर्य की यात्रा दक्षिण से उत्तर की ओर शुरू होना. इसी दिन से रातें छोटी और दिन बड़े होने प्रारंभ हो जाते हैं.

पढ़ें: जयपुर में अगले साल मकर संक्रांति और शीतला अष्टमी की रहेगी छुट्टी, कलेक्टर ने जारी किए आदेश - LOCAL HOLIDAY IN JAIPUR

उत्तरायण होते सूर्य से मिलता है महत्वपूर्ण संदेश: मकर संक्रांति के दिन से ही खरमास मलमास का समापन हो जाता है और शादी विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है. उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति, गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहड़ी, उत्तराखंड में उत्तरायण, केरल में पोंगल और गढ़वाल में खिचड़ी संक्रांति के नाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य और शनि की विशेष आराधना करनी चाहिए.

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सूर्य-शनि की विशेष आराधना: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य और शनि का पिता-पुत्र का संबंध होता है. सूर्य इस दिन अपने पुत्र की राशि मकर में प्रवेश करते हैं. अतः इस दिन किसी भी जातक को साढ़ेसाती या कुंडली में सूर्य ग्रहण या शनि ग्रह से परेशानी चल रही हो, तो इस दिन सूर्य-शनि का पूजन करके श्वेतर्क और लाल रंग के पुष्पों से पूजा अर्चना करनी चाहिए.

दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति: मकर संक्रांति के दिन हरिद्वार, काशी, कुरुक्षेत्र, अयोध्या जैसे तीर्थ स्थानों पर पवित्र नदियों में स्नान और दान का विशेष महत्व है. इस दिन इन स्थानों पर दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में अधिक बढ़ जाता है. मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है. तिल, गुड़, खिचड़ी, धान का खास महत्व है. पद्म पुराण के अनुसार मकर संक्रांति महापर्व है. इस दिन दान देने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

आत्मज्ञान दान: मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शंकर ने भगवान विष्णु को आत्मज्ञान का दान दिया था. इसी मकर संक्रांति के दिन से देवताओं के दिनों की गणना प्रारंभ होती है. जब सूर्य दक्षिणायन में रहते हैं तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है.

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