छिंदवाड़ा: 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 155वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी. वैसे तो दुनिया भर में गांधीजी की अलग-अलग छाप है लेकिन मध्य प्रदेश के लिए गांधी जी बहुत अहम हैं. वे जहां भी गए वो जगह तारीख में दर्ज हो गई. ये दिन आज भी बापू की यादों को ताजा करते रहते हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है छिंदवाड़ा की जहां पर बापू को मिला बेशकीमती गिफ्ट आज भी मौजूद है.
गांधी तस्वीर वाली पानदान ट्रे की थी गिफ्ट
छुआछूत के विरोध में गांधी जी देश के कोने-कोने में जाकर इसे मिटाने के लिए मेहनत कर रहे थे, उसी दौरान वे दूसरी बार 29 नवंबर 1933 को छिंदवाड़ा पहुंचे थे. उस दौरान बुधवारी बाजार में बापू ने छितिया बाई नाम की एक महिला के बाड़े में एक जनसभा की थी. इस जनसभा के दौरान महात्मा गांधी को चाहने वाले अनजान व्यक्ति ने गांधी जी को उनकी तस्वीर उकेरी हुई एक चांदी की पानदान ट्रे गिफ्ट की थी. महात्मा गांधी के लिए चांदी, सोना और पैसे मायने नहीं रखते थे, उन्हें तो देश को आजादी दिलाना और छुआछूत को मिटाने का जूनून सवार था. उन्होंने सोचा कि इस पानदान ट्रे को रखने से बेहतर है कि इसे बेचकर कुछ पैसे मिल जाएंगे जो आंदोलन में काम आएंगे. इसके बाद उन्होंने छिंदवाड़ा के हिंदूवादी नेता गोविंद राम त्रिवेदी को 501 रुपये में इसे बेच दिया था. जिस परिवार ने उसे खरीदा था वो आज भी उसे बतौर स्मृति सहेज कर रखे हुए है.
नीलामी में चांदी की ट्रे की नहीं लगी सही बोली
गांधी जी के लिए इस पानदान ट्रे का कोई उपयोग नहीं था. उन्होंने छिंदवाड़ा के फव्वारा चौक में पानदान नीलाम करने के लिए रखा था ताकि उससे मिले पैसे को आंदोलन में लगा सकें. उस दौर में पानदान ट्रे की कीमत महज 11 रुपये लगी थी जो बहुत कम थी. गांधी जी ने पानदान ट्रे को नीलाम करने से मना कर दिया था.
सेठ जी ने 501 रुपये में खरीदी थी पानदान ट्रे
नीलामी में जब बापू का पानदान नहीं बिका तो किसी ने उन्हें उस समय आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति पंडित गोविंद राम त्रिवेदी के बारे में बताया कि पानदान की सही कीमत वे दे सकते हैं. इसके बाद बापू ने पंडित गोविंद राम त्रिवेदी से संपर्क किया. उस दौरान गोविंद राम त्रिवेदी ने 501 रुपये देकर पानदान ट्रे खरीद ली थी. गोविंदराम त्रिवेदी के पोते विनीत त्रिवेदी ने बताया कि "बापू से चांदी का पानदान खरीदने वाले पंडित गोविंद राम त्रिवेदी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनके परिवार ने इस धरोहर को संभाल कर रखा है. उनके दादा बापू से मिलकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हिंदू महासभा का दामन छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए. 1945 में गोविंद राम त्रिवेदी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. गोविंद राम त्रिवेदी के निधन के बाद उनके परिवार ने आज भी बतौर बापू की याद उस पानदान की धरोहर को सहेज कर रखा है."