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13 साल की उम्र में छोड़ा घर और बदला धर्म, किन्नर शबनम से भवानी बनने की दिलचस्प कहानी - प्रयागराज कल्पवास किन्नर अखाड़ा

किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां इस साल भी संगम की रेती पर कल्पवास के लिए पहुंची हैं. संत समाज में शामिल होने से पहले धर्म गुरू का पहले नाम हाजी शबनम था.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 1, 2024, 9:12 PM IST

Updated : Feb 1, 2024, 10:17 PM IST

किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां इस साल भी संगम की रेती पर कल्पवास के लिए पहुंची हैं.

प्रयागराज : हर वर्ष त्रिवेणी की रेती पर लगने वाले माघ मेले में एक ऐसी शख्सियत भी पहुंचती है, जिनकी संत समाज में विशेष स्थान हासिल करने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. ये हैं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां. आपको जानकर हैरत होगी कि भवानी मां का पहले नाम हाजी शबनम था. उन्होंने हज भी किया है. इसके साथ ही राजनीति में भी सक्रिय रहीं और आम आदमी पार्टी से चुनाव भी लड़ा. आइए जानते हैं प्रयागराज में कल्पवास कर रहीं धर्म गुरू भवानी मां की दिलचस्प कहानी.

13 साल की उम्र में छोड़ दिया घर

धर्म गुरू भवानी मां ने ईटीवी भारत से अपनी जीवन यात्रा साझा की. बताती हैं, वह मूलरूप से बुलन्दशहर की रहने वाली है, लेकिन जन्म दिल्ली में हुआ. पिता डिफेंस मिनिस्ट्री में काम करते थे. जब 10 वर्ष की हुईं तो पता चला कि वे किन्नर हैं. धीरे-धीरे ये बातें समाज में फैलने लगीं. लोग सड़क चलते परेशान करने लगे. इसके बाद 13 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया. लेकिन जहां भी जातीं शोषण का शिकार होना पड़ता. इतना ही नहीं, रेड लाइट एरिया में भी भी काफी दिनों तक मांगकर पेट भरा. कहती हैं, तब मैंने मन बना लिया कि किन्नर समुदाय में शामिल हो जाऊं तो थोड़ी राहत मिलेगी.

इस्लाम कबूल किया और हज पर गईं

भवानी बताती हैं, मेरी पहली गुरु हाजी नूरी बनीं. उन्होंने मुझे इस्लाम धर्म कबूल करवाया. इसके बाद मैं शबनम बेगम बन गई. 2012 में मैं हज के लिए गई. वहां से लौटने पर शबनम हाजी कहलाने लगी. फिर मुस्लिम धर्म छोड़ना पड़ा. कहती हैं, किन्नर समाज के नाते लोगों के घर बधाइयां लेने जाने में विरोध होता था. इस कारण से काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अपने समाज के हित को देखते हुए एक बार फिर हिंदू धर्म में लौटना ही उचित समझा.

किन्नर अखाड़ा बनाया, मिली महामंडलेश्वर की उपाधि

धर्म गुरू भवानी मां बताती हैं, उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर को मान्यता दे दी. मुझे लगा कि अब अपने समाज को आगे बढ़ने का कार्य करना चाहिए. फिर 2015 में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ मिलकर किन्नर अखाड़े की स्थापना की और अखिल भारतीय हिंदू महासभा किन्नर अखाड़े की धर्म गुरु बन गई. 2017 में मुझे महामंडलेश्वर की उपाधि मिली, तब से हिंदू धर्म को शिखर पर लाने की पूरी कोशिश है.

लोकसभा चुनाव भी लड़ा

बताती हैं कि इलाहाबाद लोकसभा सीट से अपने समाज को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आम आदमी पार्टी के बैनर से लोकसभा चुनाव भी लड़ा. जिसमें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से हार का सामना करना पड़ा. तब से राजनीति से दूर होकर अपने समाज और सनातन धर्म को बढ़ाने में लगी हैं. बताती हैं कि विगत कई वर्षों से कल्पवास करती हैं. अब पूरे नियम धर्म का पालन करके पूरे एक माह तक संगम की रेती पर रहती हैं.

यह भी पढ़ें : Magh Month 2024: प्रयागराज में विश्व शांति राष्ट्रहित के लिए किन्नर कर रहे हैं कल्पवास

यह भी पढ़ें : कड़ाके की ठंड के बावजूद पौष पूर्णिमा पर स्नान करने के लिए उमड़ी लोगों की भीड़, कल्पवास की शुरुआत

किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां इस साल भी संगम की रेती पर कल्पवास के लिए पहुंची हैं.

प्रयागराज : हर वर्ष त्रिवेणी की रेती पर लगने वाले माघ मेले में एक ऐसी शख्सियत भी पहुंचती है, जिनकी संत समाज में विशेष स्थान हासिल करने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. ये हैं किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां. आपको जानकर हैरत होगी कि भवानी मां का पहले नाम हाजी शबनम था. उन्होंने हज भी किया है. इसके साथ ही राजनीति में भी सक्रिय रहीं और आम आदमी पार्टी से चुनाव भी लड़ा. आइए जानते हैं प्रयागराज में कल्पवास कर रहीं धर्म गुरू भवानी मां की दिलचस्प कहानी.

13 साल की उम्र में छोड़ दिया घर

धर्म गुरू भवानी मां ने ईटीवी भारत से अपनी जीवन यात्रा साझा की. बताती हैं, वह मूलरूप से बुलन्दशहर की रहने वाली है, लेकिन जन्म दिल्ली में हुआ. पिता डिफेंस मिनिस्ट्री में काम करते थे. जब 10 वर्ष की हुईं तो पता चला कि वे किन्नर हैं. धीरे-धीरे ये बातें समाज में फैलने लगीं. लोग सड़क चलते परेशान करने लगे. इसके बाद 13 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया. लेकिन जहां भी जातीं शोषण का शिकार होना पड़ता. इतना ही नहीं, रेड लाइट एरिया में भी भी काफी दिनों तक मांगकर पेट भरा. कहती हैं, तब मैंने मन बना लिया कि किन्नर समुदाय में शामिल हो जाऊं तो थोड़ी राहत मिलेगी.

इस्लाम कबूल किया और हज पर गईं

भवानी बताती हैं, मेरी पहली गुरु हाजी नूरी बनीं. उन्होंने मुझे इस्लाम धर्म कबूल करवाया. इसके बाद मैं शबनम बेगम बन गई. 2012 में मैं हज के लिए गई. वहां से लौटने पर शबनम हाजी कहलाने लगी. फिर मुस्लिम धर्म छोड़ना पड़ा. कहती हैं, किन्नर समाज के नाते लोगों के घर बधाइयां लेने जाने में विरोध होता था. इस कारण से काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. अपने समाज के हित को देखते हुए एक बार फिर हिंदू धर्म में लौटना ही उचित समझा.

किन्नर अखाड़ा बनाया, मिली महामंडलेश्वर की उपाधि

धर्म गुरू भवानी मां बताती हैं, उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर को मान्यता दे दी. मुझे लगा कि अब अपने समाज को आगे बढ़ने का कार्य करना चाहिए. फिर 2015 में लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ मिलकर किन्नर अखाड़े की स्थापना की और अखिल भारतीय हिंदू महासभा किन्नर अखाड़े की धर्म गुरु बन गई. 2017 में मुझे महामंडलेश्वर की उपाधि मिली, तब से हिंदू धर्म को शिखर पर लाने की पूरी कोशिश है.

लोकसभा चुनाव भी लड़ा

बताती हैं कि इलाहाबाद लोकसभा सीट से अपने समाज को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आम आदमी पार्टी के बैनर से लोकसभा चुनाव भी लड़ा. जिसमें भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से हार का सामना करना पड़ा. तब से राजनीति से दूर होकर अपने समाज और सनातन धर्म को बढ़ाने में लगी हैं. बताती हैं कि विगत कई वर्षों से कल्पवास करती हैं. अब पूरे नियम धर्म का पालन करके पूरे एक माह तक संगम की रेती पर रहती हैं.

यह भी पढ़ें : Magh Month 2024: प्रयागराज में विश्व शांति राष्ट्रहित के लिए किन्नर कर रहे हैं कल्पवास

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Last Updated : Feb 1, 2024, 10:17 PM IST
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