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अथ श्री महाकुंभ कथा, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद की जुबानी; सुनिए- आखिर क्यों पड़ी समुद्र मंथन की जरूरत? - MAHA KUMBH MELA 2025

देवता और असुर समुद्र मंथन के लिए एक कैसे हुए? मंथन में किसने क्या भूमिका निभाई? अमृत के लिए दोनों में क्यों हुआ युद्ध?

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अथ श्री महाकुंभ कथा, शंकराचार्य की जुबानी. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 7, 2025, 5:24 PM IST

Updated : 24 hours ago

प्रयागराज: महाकुंभ 2025 शुरू होने में अब कुछ ही दिन शेष हैं. संगम तट की रेती पर दिव्य, भव्य और अलौकिक संसार जीवंत हो चुका है. 40 वर्ग किलोमीटर में बसा यह महानगर अपने आप में दुनिया जहान के रंग समेटे है. दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला तकरीबन 45 दिन चलेगा, बताया जा रहा है कि 40-45 करोड़ लोग महाकुंभ नहाने का पुण्य कमाएंगे.

विश्व के कुल 195 देशों में से 193 की तो इतनी आबादी भी नहीं है. अमेरिकी जैसे सुपर पावर की भी जनसंख्या 35 करोड़ के आसपास है. ऐसे सैकड़ों रिकॉर्ड सहेजे है हमारा कुंभ, तो हुआ न अद्भुत, अकल्पनीय. इसके शुरुआत की कथा-कहानी भी कम अविश्वसनीय नहीं है.

अथ श्री महाकुंभ कथा सुनाते शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज. (Video Credit; ETV Bharat)

वेद-पुराणों, पौराणिक कथाओं, ग्रंथों में कुंभ-महाकुंभ की शुरुआत को लेकर समुद्र मंथन का उल्लेख मिलता है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि आखिर समुद्र मंथन की जरूरत क्यों पड़ी? ये कैसे हुआ? इसमें क्या-क्या हुआ? इन्हीं सब सवालों के जवाब दे रहे हैं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज. Etv Bharat की खास पेशकश 'अथ श्री महाकुंभ कथा' में सुनिए समुद्र मंथन से लेकर बदलते दौर के कुंभ की कहानी.

आज पहले भाग में शंकराचार्य ने बताया कि जब धर्म का शासन होता है तो उत्तम वस्तुएं सभी के लिए उपलब्ध हो जाती हैं. जब अधर्म का शासन आता है तब उत्तम वस्तुएं धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती हैं. एक समय ऐसा आया जब दैविय संस्कृति पर असुरों का राज हो गया. दैविय और असुर शासन में सबसे बड़ा अंतर ये है कि असुरों के राज में सभी उत्तम चीजें छिप जाती हैं. पार्ट-1 की पूरी कहानी सुनने के लिए वीडियो पर क्लिक कीजिए.

पार्ट-2 में कल सुनिए- प्रयागराज कुंभ का क्या महत्व, इसे क्यों माना जाता है सर्वश्रेष्ठ?

प्रयागराज: महाकुंभ 2025 शुरू होने में अब कुछ ही दिन शेष हैं. संगम तट की रेती पर दिव्य, भव्य और अलौकिक संसार जीवंत हो चुका है. 40 वर्ग किलोमीटर में बसा यह महानगर अपने आप में दुनिया जहान के रंग समेटे है. दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला तकरीबन 45 दिन चलेगा, बताया जा रहा है कि 40-45 करोड़ लोग महाकुंभ नहाने का पुण्य कमाएंगे.

विश्व के कुल 195 देशों में से 193 की तो इतनी आबादी भी नहीं है. अमेरिकी जैसे सुपर पावर की भी जनसंख्या 35 करोड़ के आसपास है. ऐसे सैकड़ों रिकॉर्ड सहेजे है हमारा कुंभ, तो हुआ न अद्भुत, अकल्पनीय. इसके शुरुआत की कथा-कहानी भी कम अविश्वसनीय नहीं है.

अथ श्री महाकुंभ कथा सुनाते शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज. (Video Credit; ETV Bharat)

वेद-पुराणों, पौराणिक कथाओं, ग्रंथों में कुंभ-महाकुंभ की शुरुआत को लेकर समुद्र मंथन का उल्लेख मिलता है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि आखिर समुद्र मंथन की जरूरत क्यों पड़ी? ये कैसे हुआ? इसमें क्या-क्या हुआ? इन्हीं सब सवालों के जवाब दे रहे हैं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज. Etv Bharat की खास पेशकश 'अथ श्री महाकुंभ कथा' में सुनिए समुद्र मंथन से लेकर बदलते दौर के कुंभ की कहानी.

आज पहले भाग में शंकराचार्य ने बताया कि जब धर्म का शासन होता है तो उत्तम वस्तुएं सभी के लिए उपलब्ध हो जाती हैं. जब अधर्म का शासन आता है तब उत्तम वस्तुएं धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती हैं. एक समय ऐसा आया जब दैविय संस्कृति पर असुरों का राज हो गया. दैविय और असुर शासन में सबसे बड़ा अंतर ये है कि असुरों के राज में सभी उत्तम चीजें छिप जाती हैं. पार्ट-1 की पूरी कहानी सुनने के लिए वीडियो पर क्लिक कीजिए.

पार्ट-2 में कल सुनिए- प्रयागराज कुंभ का क्या महत्व, इसे क्यों माना जाता है सर्वश्रेष्ठ?

Last Updated : 24 hours ago
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