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महाकुंभ 2025; निर्मल अखाड़ा के धर्म ध्वजा स्थापना प्रक्रिया सबसे अलग, जानिए क्या है परंपरा - MAHAKUMBH 2025

कुम्भ मेले की शुरुआत में अखाड़ों के शिविर में साधु-संतों की छावनी प्रवेश करने से पहले धर्मध्वजा स्थापित की जाती है.

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महाकुंभ 2025 में श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में धर्म ध्वजा स्थापना के स्थान का निरीक्षण करते महंत. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 4, 2025, 10:19 AM IST

प्रयागराज: महाकुम्भ 2025 मेला में आने वाले 13 अखाड़ों में 7 सन्यासी और 3-3 अखाड़े वैष्णव व उदासीन सम्प्रदाय के हैं. इन्हीं में से एक श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में धर्मध्वजा स्थापित करने की परंपरा दूसरे 12 अखाड़ों से बिल्कुल अलग है. 12 अखाड़ों में जहां मेला क्षेत्र के शिविर में धर्मध्वजा की स्थापना करने के बाद अखाड़े प्रवेश करते हैं. वहीं निर्मल अखाड़े में मेला क्षेत्र में बने शिविर में साधु संतों के छावनी प्रवेश करने के बाद धर्मध्वजा की स्थापना की जाती है.

कुम्भ मेले की शुरुआत में अखाड़ों के शिविर में साधु-संतों की छावनी प्रवेश करने से पहले धर्मध्वजा स्थापित की जाती है. इसी कड़ी में 13 में से 12 अखाड़ों की धर्म ध्वजा मेला क्षेत्र में बने उनके शिविर में स्थापित की जा चुकी है. इसके साथ ही अखाड़ों के छावनी प्रवेश करने का कार्यक्रम चल रहा है.

धर्म ध्वजा के स्थापना की परंपरा के बारे में बताते श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री. (Video Credit; ETV Bharat)

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री ने बताया कि अखाड़े में धर्मध्वजा की स्थापना से पहले संत-महंत, महामंडलेश्वर मेला क्षेत्र में बनी छावनी में प्रवेश कर लेते हैं. इसके बाद धर्म ध्वजा की स्थापना की जाती है. उनके अखाड़े में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. उनके अखाड़े में धर्मध्वजा की स्थापना के बाद उसके नीचे बैठकर पूजा पाठ और जप तप किया जाता है.

इसी के साथ सारे संत-महंत धर्म के प्रतीक धर्मध्वजा के नीचे बने मंदिर में ईष्टदेव की स्थापना कर उनकी आराधना करते हैं. धर्म ध्वजा के नीचे बैठकर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ और अन्य पूजा पाठ की जाती है. बाकि अखाड़ों में पहले धर्मध्वजा स्थापित की जाती है और बाद में अखाड़े मेला में प्रवेश करते हैं.

लेकिन, सिर्फ उनके अखाड़े में ही यह परंपरा है कि पहले अखाड़े के संत-महंत मेले की छावनी में प्रवेश करते हैं और उसके बाद धर्मध्वजा की स्थापना की जाती है. इसी कड़ी में 11 जनवरी को उनके अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा निकलेगी और साधु संत मेले में बनी छावनी में प्रवेश करेंगे. उसके एक दिन बाद 12 जनवरी को मेला छावनी में विधि विधान के साथ वैदिक मंत्रोच्चार के बीच धर्मध्वजा की स्थापना की जाएगी.

ये भी पढ़ेंः आखिर 144 साल बाद ही क्यों आता है महाकुंभ; जानिए कुंभ, अर्धकुंभ से कितना अलग

प्रयागराज: महाकुम्भ 2025 मेला में आने वाले 13 अखाड़ों में 7 सन्यासी और 3-3 अखाड़े वैष्णव व उदासीन सम्प्रदाय के हैं. इन्हीं में से एक श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल में धर्मध्वजा स्थापित करने की परंपरा दूसरे 12 अखाड़ों से बिल्कुल अलग है. 12 अखाड़ों में जहां मेला क्षेत्र के शिविर में धर्मध्वजा की स्थापना करने के बाद अखाड़े प्रवेश करते हैं. वहीं निर्मल अखाड़े में मेला क्षेत्र में बने शिविर में साधु संतों के छावनी प्रवेश करने के बाद धर्मध्वजा की स्थापना की जाती है.

कुम्भ मेले की शुरुआत में अखाड़ों के शिविर में साधु-संतों की छावनी प्रवेश करने से पहले धर्मध्वजा स्थापित की जाती है. इसी कड़ी में 13 में से 12 अखाड़ों की धर्म ध्वजा मेला क्षेत्र में बने उनके शिविर में स्थापित की जा चुकी है. इसके साथ ही अखाड़ों के छावनी प्रवेश करने का कार्यक्रम चल रहा है.

धर्म ध्वजा के स्थापना की परंपरा के बारे में बताते श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री. (Video Credit; ETV Bharat)

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री ने बताया कि अखाड़े में धर्मध्वजा की स्थापना से पहले संत-महंत, महामंडलेश्वर मेला क्षेत्र में बनी छावनी में प्रवेश कर लेते हैं. इसके बाद धर्म ध्वजा की स्थापना की जाती है. उनके अखाड़े में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. उनके अखाड़े में धर्मध्वजा की स्थापना के बाद उसके नीचे बैठकर पूजा पाठ और जप तप किया जाता है.

इसी के साथ सारे संत-महंत धर्म के प्रतीक धर्मध्वजा के नीचे बने मंदिर में ईष्टदेव की स्थापना कर उनकी आराधना करते हैं. धर्म ध्वजा के नीचे बैठकर गुरुग्रंथ साहिब का पाठ और अन्य पूजा पाठ की जाती है. बाकि अखाड़ों में पहले धर्मध्वजा स्थापित की जाती है और बाद में अखाड़े मेला में प्रवेश करते हैं.

लेकिन, सिर्फ उनके अखाड़े में ही यह परंपरा है कि पहले अखाड़े के संत-महंत मेले की छावनी में प्रवेश करते हैं और उसके बाद धर्मध्वजा की स्थापना की जाती है. इसी कड़ी में 11 जनवरी को उनके अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा निकलेगी और साधु संत मेले में बनी छावनी में प्रवेश करेंगे. उसके एक दिन बाद 12 जनवरी को मेला छावनी में विधि विधान के साथ वैदिक मंत्रोच्चार के बीच धर्मध्वजा की स्थापना की जाएगी.

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