खरगोन (फिरोज जहां/आदित्य शर्मा): जिले के नर्मदा तट स्थित महेश्वर की 17 वर्षीय मोनालिसा पिता जयसिंह घोंसले इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. मूलतः मोती-रूद्राक्ष की माला बेचने वाले परिवार से जुड़ी मोनालिसा करीब एक पखवाड़े पहले परिवार के साथ प्रयागराज महाकुंभ में पहुंची थीं. उसकी आंखों को सबसे अलग बताते हुए कुछ लोगों ने रील बनाई. कुछ ही दिनों में वह इतनी वायरल हो गई कि सोशल मीडिया पर रील बनाने वाले उसे ढूंढने लगे. ऐसे में लोगों से परेशान होकर वह महेश्वर लौट रही हैं.
कितनी पढ़ी-लिखी हैं मोनालिसा
परिवार सदस्यों के अनुसार, मोनालिसा अशिक्षित हैं. वह परिवार के सदस्यों के साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों में लगने वाले बड़े मेलों में माला बेचने जाती है. उसका सामान्य ज्ञान अच्छा है. वह अंग्रेजी के कुछ शब्द भी बोल लेती है. मोनालिसा जब 4 साल की थी जब से उसको पढ़ाई के लिए स्कूल में डाला था. लेकिन घर की परेशानियों को देखते हुए उसका स्कूल जाना सम्भव नहीं हो सका. वहीं उसके साथ माला बेचने वाला उसके काका का बेटा 8वीं तक पढ़ा हुआ है.
महेश्वरी साड़ी की ब्रांड एंबेसडर बनेगी मोनालिसा?
मोनालिसा महेश्वरी साड़ी की ब्रांड एंबेसडर बन सकती है. दरअसल, उसे पूर्व में महेश्वरी साड़ी और एक ब्यूटी पार्लर के प्रमोशन के लिए ऑफर मिला था. लेकिन परिवार ने इसकी अनुमति नहीं दी. लेकिन अब देखना है कि फ्यूचर में मोनालिसा इस ऑफर को स्वीकारती हैं या नहीं. इससे पहले महाकुंभ में मोनालिसा से किसी ने सवाल किया कि, अगर उन्हें बॉलीवुड से काम करने का ऑफर आता है तो क्या वह करना चाहेंगी. इस पर मोनालिसा ने जवाब दिया कि वह बिल्कुल एक्टिंग करना चाहेंगी.
30 साल से महेश्वर में रह रहा है परिवार
परिवार वालों ने जानकारी देते हुए बताया कि, ''हम करीब 30 से 40 साल से खरगोन जिले के महेश्वर में ही निवास कर रहे हैं. करीब 150 घर हमारे लोगों के हैं और आवास की सुविधा भी 2-3 लोगों को मिली है. पहले हम मोती रुद्राक्ष सहित मालाएं बेचने अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर गुजारा करते थे. कभी 15 दिन तो कभी 25 दिन एक शहर में रहते थे.
परिवार वालों ने लगाई थी सरकार से गुहार
परिवार वालों ने जानकारी देते हुए बताया था कि, ''मोनालिसा को घर लाना हमारे लिए बड़ी चुनौती थी. मोनालिसा को हम घर लाना चाहते थे लेकिन कैसे लायें. अगर हम बस से लाते हैं तो भी भीड़ पीछे पड़ जायेगी और अगर ट्रेन से लाते हैं तो भी भीड़ का सामना करना पढ़ेगा. हमने मोनालिसा को घर लाने के लिए मोहन यादव सरकार से मदद की गुहार लगाई थी. ताकि उसे सुरक्षित महेश्वर लाया जा सके.
मोनालिसा को संतों के तम्बुओं में छुपाकर रखा
परिवार वालों ने जानकारी देते हुए बताया कि, मोनालिसा के इतने फैमस होने के बाद परेशानियां भी बढ़ गयी हैं. हर कोई मोनालिसा के पीछे भागता है. कोई वीडियो बना रहा है तो कोई सेल्फी ले रहा है. जिससे मोनालिसा और परिवार वाले परेशान हो गए थे. लोगों से बचाने के लिए अलग अलग जगह पर संतों के तंबू में छुपाकर रखना पड़ता था.
मोनालिसा का नाम उसके पापा ने रखा
परिवार वालों ने बताया कि, मोनालिसा का नाम उसके पापा ने ही रखा था. नामकरण के समय उसका नाम 'म' से रखना बताया गया था. जिसके कारण उसका नाम मोनालिसा रखा गया. वहीं, यह नाम इसलिए भी रखा गया क्योंकि मोनालिसा का अर्थ सुंदर और आकर्षक भी होता है. वैसे ही मोनालिसा सुंदर है.
मोनालिसा माला बचते वक्त जमीन पर गिरते गिरते बची
परिवार वालों ने जानकारी देते हुए बताया कि, मोनालिसा जब परिवार वालों के साथ बाहर निकली और माला बेचने कुंभ में घूम रही थी, तभी अचानक भीड़ उसके पास आ गई. जिससे मोनालिसा जमीन पर गिरते गिरते बाल बाल बची. गनीमत रही कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ. बता दें कि, मोनालिसा के साथ कुछ लोग फोटो खिंचवाने और जबरदस्ती बातचीत करने की कोशिश करने लगे थे. तो कुछ लोगों ने मोनालिसा को महाकुंभ से उठा लेने की भी धमकी दी थी. जिससे परिवार परेशान हो गया था.
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महेश्वर में 50 से 60 पारदी समुदाय के परिवार मौजूद
जानकारी के मुताबकि, मोनालिसा पारदी समुदाय से आती हैं. यह समाज राजस्थान का मूल निवासी है. काम के सिलसिले में समाज के लोगों ने पलायन कर लिया है. करीब 50 से 60 परिवार मध्य प्रदेश के महेश्वर में निवास कर रहे हैं. मोनालिसा के परिवार ने बताया कि, हमारे करीब 50 से 60 परिवार के लोग प्रयागराज में गए हैं. महाकुंभ मेले में हमारी बहुत अच्छी बिक्री हो जाती है. इसलिए जब भी कुंभ लगता है, परिवार के लोग वहां चले जाते हैं.''
महेश्वरी साड़ियां क्यों है मशहूर, कहां बनती हैं
महेश्वरी साड़ी का इतिहास करीब 250 साल पुराना है. खरगोन के महेश्वर और चंदेरी में महेश्वरी साड़ी बनाई जाती है. होलकर राजवंश की शासक देवी अहिल्याबाई होलकर ने 1767 में महेश्वर में कुटीर उद्योग स्थापित करवाया था. इसका मकसद महिलाओं को आजीविका और रोजगार प्रदान करना था. तब से यहां यह साड़ियां बनाई जा रही हैं. क्षेत्र में कारखाना होने के कारण इसका नाम महेश्वरी साड़ी पड़ गया. महेश्वरी साड़ी की दुनिया भर में भारी मांग है.