प्रयागराज : महाकुंभ में झूंसी के हवेलियां में सहस्त्र चंडी महायज्ञ का आयोजन किया गया. 111 आचार्यों ने दुर्गा सप्तशती के 1001 पाठ किए. झूंसी के संगम किनारे स्थित तपोवन में 18 जनवरी से आयोजित इस सहस्र चंडी महायज्ञ के बाद हवन कराया गया. इसमें देशभर से आए गणमान्य व्यक्तियों व श्रद्धालुओं ने आहुति डाली. इसके बाद भंडारा कराया गया. इसमें करीब 10 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया.
ज्योतिषाचार्य एचके (हरिकृष्ण) शुक्ला के नेतृत्व में 111 आचार्यों ने रविवार काे दुर्गा सप्तशती के पाठ होने के बाद हवन करवाया. हवन सप्तशती के 13 अध्यायों से विधि-विधान के साथ कराया गया. हवन में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने आहुति डाली. विशेष रूप से तैयार की गई हवन सामग्री से वहां का वातावरण भक्तिमय और भावमय बना रहा रहा.
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि भारत को विश्वगुरु बनाने और देश की तरक्की के लिए मां गंगा के पावन तट पर पिछले 23 सालों से लगातार मकर संक्रांति के अवसर पर सहस्र चंडी महायज्ञ का आयोजन किया जाता है. इस बार 14 जनवरी को महाकुंभ का पहला अमृत स्नान होने के कारण यह तिथि बदलनी पड़ी.
ज्योतिषाचार्य एचके शुक्ला ने बताया कि अमृत स्नान के 2 दिन पहले और 2 दिन बाद महाकुंभ क्षेत्र को नो ट्रैफिक जोन घोषित किया गया था. लिहाजा इस बार सहस्र चंडी महायज्ञ 18 जनवरी को आयोजित किया गया. 19 जनवरी को हवन पूजन के साथ इसका समापन किया गया.
ज्योतिषाचार्य व आचार्य हरिकृष्ण शुक्ला ने बताया कि मां भगवती की कृपा से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि पिछले 23 सालों से मां भगवती की शरण में हैं. उनकी कृपा मेरे साथ ही साथ भक्तों पर भी होती है. जिस तरह से आसुरी शक्तियां सनातन धर्म के खिलाफ लगातार कुचक्र कर रही हैं, ऐसे में मां भगवती की आराधना और सहस्त्र चंडी महायज्ञ ही उनसे सनातन धर्म की रक्षा करेगा.
आचार्य ने बताया कि यह काम हमारे ऋषि-मुनि करते रहे हैं, यही कारण है कि आसुरी शक्तियां उनकी यज्ञ में विघ्न डालने की कोशिश करती थी. आज भी इस तरह के यज्ञ करने में बहुत सारे व्यवधान आते हैं , लेकिन भगवती की कृपा से 23 सालों से विश्व कल्याण और देश की तरक्की के लिए यह महायज्ञ कराया जा रहा है.
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