प्रयागराज : महाकुंभ के तीसरे और अंतिम अमृत स्नान पर हजारों की संख्या में नागा संन्यासी, साधु-संत, महामंडलेश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर अमृत स्नान के लिए संगम पहुंचे. दौड़ते-भागते और करतब दिखाते संतों का जत्था शोभायात्रा के रूप में जब घाट पर पहुंचा तो लोगों ने अपने-अपने तरीके से उनका स्वागत किया. कई भक्त जिस रास्ते से संत गुजरे थे, वहां की मिट्टी बंटोरते दिखे. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने इसके पीछे का कारण भी बताया.
मौनी अमावस्या पर भगदड़ के बाद सभी 13 अखाड़ों ने सादगी के साथ संगम में स्नान किया था. कोई खास शोभायात्रा भी नहीं निकाली गई थी. टुकड़ों में संत अमृत स्नान के लिए पहुंचे थे. प्रशासन की ओर से भीड़ नियंत्रण व्यवस्था को मजबूत बनाए जाने के बाद बसंत पंचमी के अमृत स्नान पर सभी अखाड़ों में उल्लास दिखा.
तड़के से ही सभी संत-संन्यासी रथ पर सवार होकर शाही अंदाज में संगम पर पहुंचे. संतों के जत्थे के गुजरने के बाद भक्त उनके चरण रज लेने के लिए आतुर दिखाई दिए. उन्होंने अखाड़ा मार्ग से मिट्टी उठाकर पोटली में बांधना शुरू कर दिया. तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और दक्षिण भारत से काफी संख्या में आए भक्तों ने संतों के पैरों की धूल को माथे से लगाया.
भक्तों ने बताया कि महाकुंभ में आने का सौभाग्य मिला है. एक साथ यहां हजारों संत पहुंचे हैं. ये संत हिमालय की कंदराओं में रहते हैं, कभी दिखाई नहीं देते हैं. ऐसे दुर्लभ संतों को एक साथ महाकुंभ में ही देखा जा सकता है. महाकुंभ खत्म होने पर ये संत यहां से चले जाएंगे, लेकिन हम उनके पैरों की धूल सहेज कर रखेंगे. चरण रज को मंदिर में रखेंगे. परिवार के लोगों को भी देंगे.
भक्तों ने बताया कि संतों ने कठिन तपस्या से सिद्धियां हासिल की हैं. वह आशीर्वाद हमें मिट्टी के रूप में अपने माथे पर लगाने का मौका मिल रहा है. यही वजह है कि हम इस मिट्टी को लेकर अपने घर जाएंगे. इसकी पूजा करेंगे.
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