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श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा; रानी लक्ष्मीबाई ने इस अखाड़े में ली थी शरण, साधु-संतों ने अंग्रेजों को किया था परास्त

यह अखाड़ा सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश भर में फैली अपनी शाखाओं के जरिए उसका प्रचार प्रसार करने में जुटा हुआ है.

कहानी श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा की.
कहानी श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा की. (Photo Credit; ETV Bharat Archive)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

प्रयागराज: अखिल भारतीय पंच निर्मोही अनी अखाड़ा की स्थापना 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच की बतायी जाती है. क्योंकि, वैष्णव सम्प्रदाय वाले निर्वाणी अनी, निर्मोही अनी और दिगम्बर अनी तीनों अखाड़ों की स्थापना का समय एक समान ही बताया जाता है. हालांकि श्री पंच दिगम्बर अनी अखाड़ा की स्थापना का समय सन 1475 बताया गया है. लेकिन, कुछ किताबों में इस अखाड़े की स्थापना का समय सन 1750 बताया गया है.

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के साधुओं ने सनातन धर्म की रक्षा के साथ ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के अंतिम समय में अंग्रजों से बचाने में उनकी मदद भी की थी. फिलहाल यह अखाड़ा सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश भर में फैली अपनी शाखाओं के जरिए उसका प्रचार प्रसार करने में जुटा हुआ है.

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े का इतिहास बताते महंत रामजी दास महाराज. (Video Credit; ETV Bharat)

अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा के महंत रामजी दास महाराज ने बताया कि तीनों अनी अखाड़ों की स्थापना से लेकर सभी परंपराएं एक समान हैं. यही नहीं तीनों अखाड़े के ईष्टदेव भी हनुमान जी ही हैं. इस अखाड़े की अखाड़े की स्थापना भी 14वीं 15वीं शताब्दी के बीच की गई है और अखाड़े के ईष्ट देव हनुमान जी हैं.

उन्होंने बताया कि श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े का उद्देश्य सिर्फ सनातन धर्म और साधुओं की रक्षा करना है. इसका मुख्यालय पहले वृंदावन में था और वर्तमान में गुजरात में है. निर्मोही अनी अखाड़े के नौ उप अखाड़े हैं जिसमें श्री पंच रामानंद निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच झाड़िया निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच राधावल्लभी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच मालाधारी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच विष्णुस्वामी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच हरिहर व्यास निर्मोही अखाड़ा समेत कुल 9 उप अखाड़े हैं. इस अखाड़े की धर्म ध्वजा केसरिया रंग की होती है और उसके बीच में हनुमान जी का चित्र भी बना रहता है.

कैसे हुई अनी अखाड़ों की स्थापना: अनी अखाड़ों की स्थापना को लेकर श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा के श्रीमहन्त रामजी दास महाराज ने बताया कि अनी अखाड़ों की स्थापना सनातन धर्म की रक्षा साधुओं की रक्षा और अधर्म का विनाश करने के लिए किया गया है. यह कार्य बालानंदाचार्य ने उस समय किया था जब हमारे देश में धर्म के प्रतीक मठ मंदिरों और सनातन धर्मियों पर आक्रमण किया जा रहा था.

इन अखाड़ों के गठन के बाद उन्हें संतों की छावनी में रहकर शास्त्र के साथ अस्त्र शस्त्र चलाने की शिक्षा देकर उन्हें युद्ध कला में भी पारंगत किया गया. शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा देने के साथ ही एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला लेकर युद्ध लड़ने की कला सिखायी गयी. अखाड़ों की छावनियों रहकर शास्त्र के साथ शस्त्र की शिक्षा दीक्षा लेने वाले संतो ने जरूरत पड़ने पर जब सनातन धर्म की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी तो उन्हें जीत भी मिली है.

मोहम्मद गौरी जैसे मुस्लिम आक्रांता से भी अखाड़े के साधुओं से लड़ाई लड़ी है.इसी तरह से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी अंत समय में निर्मोही अनी अखाड़े में आकर शरण ली थी, जहां के साधुओं ने अंग्रेजों से उनकी रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें परास्त कर वापस भेज दिया.

अखाड़े का संचालन कैसे होता है: रामजी दास महाराज ने बताया कि लोकतांत्रिक तरीके से पंचायती व्यवस्था के तहत अखाड़े के संचालन होता है. इस अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत राजेन्द्र दास जी महाराज हैं, अध्यक्ष श्री महंत रामदास जी महाराज हैं. दो मंत्री हैं जिनमें महंत नरेंद्र दास छत्तीसगढ़ वाले और महंत महेश दास उज्जैन वाले हैं.

अखाड़े के संचालन से जुड़े सभी प्रकार के फैसले यही चार लोग मिलकर आपसी सहमति से तय करते हैं. जबकि इस अखाड़े में राष्ट्रीय अध्यक्ष और अध्यक्ष मंत्री जैसे पदों का चयन जब अखाड़े से जुड़े 9 उप अखाड़ों के श्री महंत भी मौजूद रहते हैं. उसी वक्त आपसी सहमति से राष्ट्रीय अध्यक्ष, अध्यक्ष और मंत्री पदों के लिए चयन करके पदाधिकारी चुन लिए जाते हैं. इसी तरह से अखाड़े के संचालन की यह व्यवस्था से चली आ रही है.

ये भी पढ़ेंः दिगंबर अनी अखाड़ा; साधु-संतों के एक हाथ में माला दूसरे में रहता भाला, कहलाते हैं बैरागी

प्रयागराज: अखिल भारतीय पंच निर्मोही अनी अखाड़ा की स्थापना 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच की बतायी जाती है. क्योंकि, वैष्णव सम्प्रदाय वाले निर्वाणी अनी, निर्मोही अनी और दिगम्बर अनी तीनों अखाड़ों की स्थापना का समय एक समान ही बताया जाता है. हालांकि श्री पंच दिगम्बर अनी अखाड़ा की स्थापना का समय सन 1475 बताया गया है. लेकिन, कुछ किताबों में इस अखाड़े की स्थापना का समय सन 1750 बताया गया है.

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के साधुओं ने सनातन धर्म की रक्षा के साथ ही झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के अंतिम समय में अंग्रजों से बचाने में उनकी मदद भी की थी. फिलहाल यह अखाड़ा सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश भर में फैली अपनी शाखाओं के जरिए उसका प्रचार प्रसार करने में जुटा हुआ है.

श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े का इतिहास बताते महंत रामजी दास महाराज. (Video Credit; ETV Bharat)

अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा के महंत रामजी दास महाराज ने बताया कि तीनों अनी अखाड़ों की स्थापना से लेकर सभी परंपराएं एक समान हैं. यही नहीं तीनों अखाड़े के ईष्टदेव भी हनुमान जी ही हैं. इस अखाड़े की अखाड़े की स्थापना भी 14वीं 15वीं शताब्दी के बीच की गई है और अखाड़े के ईष्ट देव हनुमान जी हैं.

उन्होंने बताया कि श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े का उद्देश्य सिर्फ सनातन धर्म और साधुओं की रक्षा करना है. इसका मुख्यालय पहले वृंदावन में था और वर्तमान में गुजरात में है. निर्मोही अनी अखाड़े के नौ उप अखाड़े हैं जिसमें श्री पंच रामानंद निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच झाड़िया निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच राधावल्लभी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच मालाधारी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच विष्णुस्वामी निर्मोही अखाड़ा, श्री पंच हरिहर व्यास निर्मोही अखाड़ा समेत कुल 9 उप अखाड़े हैं. इस अखाड़े की धर्म ध्वजा केसरिया रंग की होती है और उसके बीच में हनुमान जी का चित्र भी बना रहता है.

कैसे हुई अनी अखाड़ों की स्थापना: अनी अखाड़ों की स्थापना को लेकर श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा के श्रीमहन्त रामजी दास महाराज ने बताया कि अनी अखाड़ों की स्थापना सनातन धर्म की रक्षा साधुओं की रक्षा और अधर्म का विनाश करने के लिए किया गया है. यह कार्य बालानंदाचार्य ने उस समय किया था जब हमारे देश में धर्म के प्रतीक मठ मंदिरों और सनातन धर्मियों पर आक्रमण किया जा रहा था.

इन अखाड़ों के गठन के बाद उन्हें संतों की छावनी में रहकर शास्त्र के साथ अस्त्र शस्त्र चलाने की शिक्षा देकर उन्हें युद्ध कला में भी पारंगत किया गया. शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा देने के साथ ही एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला लेकर युद्ध लड़ने की कला सिखायी गयी. अखाड़ों की छावनियों रहकर शास्त्र के साथ शस्त्र की शिक्षा दीक्षा लेने वाले संतो ने जरूरत पड़ने पर जब सनातन धर्म की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी तो उन्हें जीत भी मिली है.

मोहम्मद गौरी जैसे मुस्लिम आक्रांता से भी अखाड़े के साधुओं से लड़ाई लड़ी है.इसी तरह से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी अंत समय में निर्मोही अनी अखाड़े में आकर शरण ली थी, जहां के साधुओं ने अंग्रेजों से उनकी रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें परास्त कर वापस भेज दिया.

अखाड़े का संचालन कैसे होता है: रामजी दास महाराज ने बताया कि लोकतांत्रिक तरीके से पंचायती व्यवस्था के तहत अखाड़े के संचालन होता है. इस अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत राजेन्द्र दास जी महाराज हैं, अध्यक्ष श्री महंत रामदास जी महाराज हैं. दो मंत्री हैं जिनमें महंत नरेंद्र दास छत्तीसगढ़ वाले और महंत महेश दास उज्जैन वाले हैं.

अखाड़े के संचालन से जुड़े सभी प्रकार के फैसले यही चार लोग मिलकर आपसी सहमति से तय करते हैं. जबकि इस अखाड़े में राष्ट्रीय अध्यक्ष और अध्यक्ष मंत्री जैसे पदों का चयन जब अखाड़े से जुड़े 9 उप अखाड़ों के श्री महंत भी मौजूद रहते हैं. उसी वक्त आपसी सहमति से राष्ट्रीय अध्यक्ष, अध्यक्ष और मंत्री पदों के लिए चयन करके पदाधिकारी चुन लिए जाते हैं. इसी तरह से अखाड़े के संचालन की यह व्यवस्था से चली आ रही है.

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