प्रयागराज/महाकुंभनगर : तीर्थराज प्रयाग में पहुंचे साधु संतों के विविध रूप रंग श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहे हैं. अघोरी पंथ से ताल्लुक रखने वाले राजकुमार अघोरी बाबा ने भी महाकुंभ में प्रवास किया है. नरमुंडों की माला और कंकाल तंत्र के साथ ही त्रिशूल, कमंडल और चिमटा के साथ श्मशान की भस्म लपेटे बाबा राजकुमार अघोरी सुबह से रात तक श्रद्धालुओं को भस्म लगाकर आशीर्वाद देते हैं. प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को खिचड़ी का वितरण करते हैं.
ईटीवी भारत से बातचीत में अघोरी बाबा राजकुमार बताते हैं कि अघोर एक परंपरा है. हम अपनी परंपरा से जुड़कर भगवान शिव की साधना श्मशान में करते हैं. भस्म आरती की भस्म हम श्रद्धालुओं को दे रहे हैं. इसी का बना प्रसाद सबको वितरण कर रहे हैं. खिचड़ी का प्रसाद भी है. यही भिक्षा में मिलता है और यही प्रसाद हम खाते भी हैं और भक्तों को खिलाते भी हैं. बाल रूप से मैं अघोरी हूं. मेरी जन्म भूमि भी काशी है. मेरी तपोभूमि काशी है.
अघोरी बाबा राजकुमार के अनुसार महाकुंभ में मैं सभी संतों के दर्शन करने आया हूं. उनके दर्शन भी कर रहा हूं और अपने गुरु के नाम से मैं अपनी सेवाएं भी दे रहा हूं. एक तस्वीर के सवाल पर राजकुमार अघोरी बाबा बताते हैं कि यह तस्वीर होली खेले मसाने की है. यह साल में एक बार होता है. उस समय शृंगार किया जाता है और रंगभरी एकादशी के दिन काशी के श्मशान घाट में खाना-पीना और सोना होता है. इसी दिन श्मशान में रहकर अघोरी पूजा पाठ करते हैं. वहां पर प्रसाद पहले बाबा को चढ़ता है फिर हमारा शृंगार होता है.
प्रसाद के रूप में देते हैं प्रयाग राजा की भस्म : चिता भस्म के बारे में अघोरी बाबा का कहना है कि यह भस्म प्रयाग राजा की है. हम चिताओं से ही है भस्म यहां लाए हैं. काशी की श्मशान भस्म मेरे कमंडल में रहती है. अभी यहां पर जो 24 घंटे जल रही है यही भस्म प्रयाग राजा के श्मशान से लाए हैं. जब काशी में रहते हैं तो काशी के श्मशान की भस्म जलाते हैं. इसी भस्म को बाबा का प्रसाद रूप में सभी श्रद्धालुओं को दी जाती है. त्रिशूल भगवान शिव का है. कंकाल भी भगवान शिव का है. भैरव का कंकाल है. कमंडल मेरे गुरु के नाम का है. मेरे कमंडल में जल नहीं है. मेरे कमंडल में चिता भस्म है जिसका मैं अपने आप को लेपन करता हूं. 24 घंटे अपने शरीर पर लगाता हूं. ये राजा हरिश्चंद्र श्मशान की भस्म है जो भी भक्त इस भस्म को प्रसाद के रूप में मांगते हैं मैं उन्हें भी दे देता हूं.
औषधि के रूप में गांजे का प्रयोग : भगवान शिव का प्रसाद तो धतूरा और भांग होता है तो आप भी इसका सेवन करते हैं. इस पर अघोरी बाबा राजकुमार कहते हैं कि हम भांग-धतूरे का सेवन नहीं करते हैं. औषधि के रूप में गांजा का सेवन कर लेते हैं. मदिरा (अल्कोहल) का इस्तेमाल हम नहीं करते हैं. गांजा प्रसाद मेरे भजन करने की विधि है. इसलिए गांजे का सेवन करता हूं. कोई नशा के लिए वह नहीं होता है और हमको कोई नशा होता भी नहीं है.
भोलेनाथ के नाम पर नशा कभी मत करना : मदिरा (अल्कोहल) से हम दूर रहते हैं और हम युवाओं से भी कहते हैं कि भोलेनाथ के नाम पर नशा कभी मत करना. यह गलत बात है कि भक्ति के लिए आपको नशे का सेवन करना होता है. वह तो भजन करने की एक दवाई है, साधुओं के लिए. शिव के नाम से जो युवा और लगो नशा कर रहे हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. हमारे पास भी तमाम लोग आए कि बाबा जी हमें भी पिला दो भोले बाबा का प्रसाद है. हम उन सभी को मना करते हैं कि भोले बाबा कभी ऐसा नहीं कहते हैं कि नशा करके मेरी पूजा करें.
जहां तक घूमोगे फिर घूम कर वहीं आ जाओगे : महाकुंभ के आयोजन के बारे में राजकुमार अघोरी बाबा कहते हैं कि महाकुंभ तो बहुत अच्छा हो रहा है. यह भगवान की नगरी है. प्रयाग राजा की नगरी है. यहां पर बैठे-बैठे सभी का दर्शन हो रहा है. हनुमान जी के मेन गेट पर हम बैठे हैं. उनके दरबार पर बैठकर हमारी सेवा चल रही है. सब संत महात्माओं का दर्शन बैठे-बैठे हो जा रहा है, क्योंकि मेला घूमने से मेरा कोई मतलब ही नहीं है. घूमने का मतलब ही है कि जहां तक घूमोगे फिर घूम कर वहीं आ जाओगे.
मैं हमेशा श्मशान में रहता हूं : दर्शन और समर्पण सबसे बड़ी चीज है तो अपना दर्शन तो श्मशान में होता है. दर्शन तो हनुमान जी का हम यहीं से कर लेते हैं. भजन भी कर रहा हूं. श्मशान में बैठे-बैठे ही और अपने यही आसन पर बैठकर भजन भी कर लेता हूं. मेरी सेवा गुरु के नाम पर चलती रहती है. कीनाराम मेरे गुरु हैं उन्हीं के नाम का भजन करता हूं. मैं आश्रम में रहता ही नहीं हूं. मैं हमेशा श्मशान में रहता हूं. पहली बार हम महाकुंभ आए हैं. योगी जी महाराज ने बहुत अच्छी व्यवस्था की है. बचपन से हम काशी में ही रहे. कुछ दिन हम हिमालय में तपस्या करने चले गए. उसके बाद श्मशान चुन लिया. एक दो बार हम पहले भी इलाहाबाद में आ चुके हैं और मुझे सुनने में मिला कि यहां पर महाकुंभ का आयोजन होता है वह बहुत अच्छा होता है तो हमने भी अपने गुरु के नाम पर यहां पर धूनी रमाते हैं.