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Magh Month 2024: प्रयागराज में विश्व शांति राष्ट्रहित के लिए किन्नर कर रहे हैं कल्पवास - prayagraj

Magh Month 2024: प्रयागराज में किन्नर समाज संगम की रेती पर कल्पवास (Kalpavas of Kinnar Akhara in Prayagraj) कर रहा है. मान्यता है कि कल्पवास माघ मास में एक माह तक संगम में रहकर पूजा-अर्चना और तप -जप करने से अक्षय मुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी टीना मां
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 30, 2024, 4:56 PM IST

किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी टीना मां

प्रयागराज: संगम की रेती पर 15 जनवरी को मकर संक्रांति के पहले स्नान पर्व के साथ ही देश के सबसे बड़े सालाना अध्यात्मिक मेले की शुरुआत हो चुकी है. संगम की रेती पर बने तम्बुओं में जहां हजारों साधु संत पूरे माघ के महीने में कठिन तप और साधना करते हैं. वहीं लाखों कल्पवासी भी पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व पर कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास शुरु कर चुके है. सनातन धर्म में माघ मेले में क्या है कल्पवास का महत्व, संगम की रेती पर कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास करना कितना फलदायी है और कल्पवास (Magh Month 2024) करने के नियम व्रत कितने सख्त हैं. इसके साथ ही संगम में एक माह तक कौन कल्पवास कर सकता है.

संगम की रेती पर हर साल माघ मेले का आयोजन होता है. सनातन परम्परा में माघ मास का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि माघ मास में सभी देवी देवता प्रयागराज में ही निवास करते हैं. इसके साथ माघ मास में पड़ने वाले मकर सक्रान्ति से ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने से शुभ दिन की शुरुआत होती है. मकर संक्रान्ति के मौके पर संगम में स्नान और दान का विशेष महत्व भी है.

यही वजह है कि माघ मेले में बड़ी संख्या में साधु संत भी आते हैं और ठंड के वावजूद एक माह तक संगम की रेती पर कठिन तप और साधना करते हैं. अगर बात करें किन्नर समाज (Kalpavas of Kinnar Akhara in Prayagraj) की, किन्नर समाज भी पौष पूर्णिया से संगम की रेती पर अपनी धुनि जमा कल्पवास कर रहा है.

मोक्ष की प्राप्ति होती है: किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी टीना मां के मुताबिक माघ मास की महिमा का वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है. ऐसी मान्यता है कि माघ मास में एक माह तक संगम में रहकर पूजा-अर्चना और तप -जप करने से अक्षय मुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

समाज कल्याण देश राष्ट्र हित के लिए कर रही कल्पवास: उन्होंने कहा कि यह समाज कल्याण देश राष्ट्र हित के लिए कल्पवास कर रही है जिससे भारत देश आगे बढ़ सके किन्नर समाज एक माह तक संगम की रेती पर बने तम्बुओं में रहते हैं. इस दौरान उनकी दिनचर्या नियमित और संयमित होती है.

ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान का विशेष महत्व: किन्नर अखाड़ा के लोग प्रति दिन ब्रह्म मूहूर्त में उठकर गंगा स्नान करते हैं. कल्पवासियों की तरह अपने तम्बुओं में आकर पूजा-अर्चना और भजन कीर्तन भी करते हैं. इसी के साथ माघ मेले में संतों का प्रवचन सुनने के साथ ही आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी शामिल होते हैं. एक माह तक जमीन पर सोने के साथ चूल्हे पर बना भोजन ग्रहण कर पूरी तरह से सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं. संगम की रेती कोई भी सनातनी कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास कर सकता है.

32 प्रकार के नियमों का पालन करना होता है अनिवार्य: कल्पवास करने के लिए कल्पवासियों को 32 प्रकार के नियमों का पालन करना होता है. लेकिन चार ऐसे सख्त नियम भी हैं जिसका पालन हर कल्पवासी को करना अनिवार्य है. स्नान करके ही गंगा में स्नान करें. दिन में एक बार आहार करें. ब्रह्मचर्य का पालन करें और जमीन पर सोने के साथ ही रात्रि जागरण कर प्रभु की आराधना करें. ऐसी मान्यता है कि कल्पवास करने से कायाकल्प हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

15 जनवरी से हुई माघ मेले की शुरुआत: संगम की रेती पर 15 जनवरी को मकर संक्रांति के पर्व से माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है. जबकि पौष पूर्णिमा के दूसरे स्नान पर्व के साथ ही लाखों श्रद्धालुओं का कल्पवास भी शुरु हो गया है. पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा के स्नान पर्व तक ऐसे ही कल्पवासियों की संगम की रेती पर नियमित और संयमित दिन चर्या चलती रहेगी. संगम में कल्पवास की परम्परा सदियों से चली आ रही है और आगे भी इसी तरह लोगों की आस्था जारी रहेगी.

ये भी पढ़ें- लोकसभा चुनाव 2024: 80 में से 10 सीटें सहयोगी दलों को दे सकती है भारतीय जनता पार्टी

किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी टीना मां

प्रयागराज: संगम की रेती पर 15 जनवरी को मकर संक्रांति के पहले स्नान पर्व के साथ ही देश के सबसे बड़े सालाना अध्यात्मिक मेले की शुरुआत हो चुकी है. संगम की रेती पर बने तम्बुओं में जहां हजारों साधु संत पूरे माघ के महीने में कठिन तप और साधना करते हैं. वहीं लाखों कल्पवासी भी पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व पर कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास शुरु कर चुके है. सनातन धर्म में माघ मेले में क्या है कल्पवास का महत्व, संगम की रेती पर कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास करना कितना फलदायी है और कल्पवास (Magh Month 2024) करने के नियम व्रत कितने सख्त हैं. इसके साथ ही संगम में एक माह तक कौन कल्पवास कर सकता है.

संगम की रेती पर हर साल माघ मेले का आयोजन होता है. सनातन परम्परा में माघ मास का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि माघ मास में सभी देवी देवता प्रयागराज में ही निवास करते हैं. इसके साथ माघ मास में पड़ने वाले मकर सक्रान्ति से ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने से शुभ दिन की शुरुआत होती है. मकर संक्रान्ति के मौके पर संगम में स्नान और दान का विशेष महत्व भी है.

यही वजह है कि माघ मेले में बड़ी संख्या में साधु संत भी आते हैं और ठंड के वावजूद एक माह तक संगम की रेती पर कठिन तप और साधना करते हैं. अगर बात करें किन्नर समाज (Kalpavas of Kinnar Akhara in Prayagraj) की, किन्नर समाज भी पौष पूर्णिया से संगम की रेती पर अपनी धुनि जमा कल्पवास कर रहा है.

मोक्ष की प्राप्ति होती है: किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी टीना मां के मुताबिक माघ मास की महिमा का वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है. ऐसी मान्यता है कि माघ मास में एक माह तक संगम में रहकर पूजा-अर्चना और तप -जप करने से अक्षय मुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

समाज कल्याण देश राष्ट्र हित के लिए कर रही कल्पवास: उन्होंने कहा कि यह समाज कल्याण देश राष्ट्र हित के लिए कल्पवास कर रही है जिससे भारत देश आगे बढ़ सके किन्नर समाज एक माह तक संगम की रेती पर बने तम्बुओं में रहते हैं. इस दौरान उनकी दिनचर्या नियमित और संयमित होती है.

ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान का विशेष महत्व: किन्नर अखाड़ा के लोग प्रति दिन ब्रह्म मूहूर्त में उठकर गंगा स्नान करते हैं. कल्पवासियों की तरह अपने तम्बुओं में आकर पूजा-अर्चना और भजन कीर्तन भी करते हैं. इसी के साथ माघ मेले में संतों का प्रवचन सुनने के साथ ही आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रमों में भी शामिल होते हैं. एक माह तक जमीन पर सोने के साथ चूल्हे पर बना भोजन ग्रहण कर पूरी तरह से सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं. संगम की रेती कोई भी सनातनी कल्पवास का संकल्प लेकर कल्पवास कर सकता है.

32 प्रकार के नियमों का पालन करना होता है अनिवार्य: कल्पवास करने के लिए कल्पवासियों को 32 प्रकार के नियमों का पालन करना होता है. लेकिन चार ऐसे सख्त नियम भी हैं जिसका पालन हर कल्पवासी को करना अनिवार्य है. स्नान करके ही गंगा में स्नान करें. दिन में एक बार आहार करें. ब्रह्मचर्य का पालन करें और जमीन पर सोने के साथ ही रात्रि जागरण कर प्रभु की आराधना करें. ऐसी मान्यता है कि कल्पवास करने से कायाकल्प हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

15 जनवरी से हुई माघ मेले की शुरुआत: संगम की रेती पर 15 जनवरी को मकर संक्रांति के पर्व से माघ मेले की शुरुआत हो चुकी है. जबकि पौष पूर्णिमा के दूसरे स्नान पर्व के साथ ही लाखों श्रद्धालुओं का कल्पवास भी शुरु हो गया है. पौष पूर्णिमा से लेकर माघी पूर्णिमा के स्नान पर्व तक ऐसे ही कल्पवासियों की संगम की रेती पर नियमित और संयमित दिन चर्या चलती रहेगी. संगम में कल्पवास की परम्परा सदियों से चली आ रही है और आगे भी इसी तरह लोगों की आस्था जारी रहेगी.

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