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लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो. मोनीषा बनर्जी को हाईकोर्ट से मिली राहत, लगाया स्टे - Prof Monisha Banerjee case

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 11, 2024, 6:08 PM IST

Updated : Sep 11, 2024, 8:23 PM IST

लखनऊ विश्वविद्यालय की कार्य परिषद में कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने जूलॉजी की प्रोफेसर मोनीषा बनर्जी पर लगे आरोपों की जांच के बाद उनके विभागाध्यक्ष, डीन, कोऑर्डिनेटर, डायरेक्टर इत्यादि बनने पर रोक लगा दी थी. इस पर हाईकोर्ट ने बुधवार को स्टे दे दिया है.

प्रो. मोनीषा बनर्जी को हाईकोर्ट से मिली राहत
प्रो. मोनीषा बनर्जी को हाईकोर्ट से मिली राहत (Photo Credit: Etv Bharat)

लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लखनऊ विश्वविद्यालय के जूलॉजी की प्रोफेसर मोनीषा बनर्जी पर लगी रोग पर बुधवार को स्टे दे दिया है. यही नहीं लखनऊ विश्वविद्यालय को इस पूरे प्रकरण में चार हफ्ते के अंदर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है.

दरअसल, 9 अगस्त 2024 को लखनऊ विश्वविद्यालय की कार्य परिषद में कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने जूलॉजी की प्रोफेसर मोनीषा बनर्जी पर लगे आरोपों की जांच के बाद उनके विभागाध्यक्ष, डीन, कोऑर्डिनेटर, डायरेक्टर इत्यादि बनने पर रोक लगा दी थी. इस पर हाईकोर्ट ने बुधवार को स्टे दे दिया है. साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय को इस पूरे प्रकरण में चार हफ्ते के अंदर अपना जवाब दाखिल करने लिए भी को कहा है.


दरअसल, अपने खिलाफ लखनऊ विश्वविद्यालयद्वारा किए गए दुष्प्रचार को लेकर मोनीषा बनर्जी ने न केवल लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की आम सभा (जीबीएम) बुलाने की लूटा से मांग की थी, बल्कि उसके लिए जरूरी 10 प्रतिशत शिक्षकों के हस्ताक्षर भी पूरे करके अध्यक्ष को सौंप दिया है.

कार्य परिषद में अपने खिलाफ हुए फैसले के तुरंत बाद ही प्रो. मोनीषा बनर्जी के तीखे 'रिएक्शन' पर लखनऊ विश्वविद्यालय ने एक सप्ताह तक कार्य परिषद की मिनिट्स ही जारी नहीं किये थे और कार्य परिषद में जो फैसले लिए गए थे, उसके हिसाब से मोनीषा बनर्जी को नोटिस भी नहीं दी गई.

लखनऊ विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जैसे ही मिनिट्स जारी हुए, उसी को आधार बनाकर मोनीषा बनर्जी हाईकोर्ट पहुंची थी. हाईकोर्ट ने इस पूरे प्रकरण की सुनवाई करने के बाद 30 अगस्त के अपने फैसले में यह स्पष्ट किया है कि विभागाध्यक्ष, डीन, कोऑर्डिनेटर, डायरेक्टर इत्यादि बनने पर जो रोक कुलपति/कार्य परिषद ने लगाई है, उस पर स्टे रहेगा. अगले 4 सप्ताह में लखनऊ विश्वविद्यालय को काउंटर एफिडेविट जमा करने के लिए समय दिया गया है.

इस पूरे प्रकरण को लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षकों को बताने के लिए ही पिछले कई दिनों से मोनीषा बनर्जी लूटा अध्यक्ष प्रो. आरबी सिंह मून से जीबीएम बुलाने के लिए पत्र दे रही है, लेकिन पदाधिकारी जीबीएम को टालने में लगे हुए हैं. सोमवार को लूटा के उपाध्यक्ष अरशद जाफरी ने भी अध्यक्ष आरबी सिंह मून को पत्र लिखकर जीबीएम बुलाने की मांग की है.

ये है पूरा मामला
यह मामला राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी की एमपी ग्रांट से दिये गये 50 लाख रुपये के सामान से जुड़ा है. आरोप है कि प्रो. मोनीषा को परेशान करने को लेकर पहले ओएनजीसी बिल्डिंग से सारा सामान उठाने का गलत आरोप लगाया था, जबकि जो भी सामान मनीषा लेकर गई थी उसका सारा इंडेंट बनाकर तत्कालीन रजिस्ट्रार से साइन करा कर लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंप दिया गया था. इसके बावजूद भी उन्हें बार-बार टारगेट किया जा रहा था और दबाव बनाने को लेकर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी. जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्य परिषद की बैठक में प्रो. मोनिषा के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे.

यह भी पढ़ें: लखनऊ विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक टैगोर लाइब्रेरी में ABVP कार्यकर्ताओं ने जड़े ताले, जानें वजह

यह भी पढ़ें: लखनऊ विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति के तहत स्नातक की पढ़ाई करेंगे विद्यार्थी, PG कोर्स को लेकर असमंजस



लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लखनऊ विश्वविद्यालय के जूलॉजी की प्रोफेसर मोनीषा बनर्जी पर लगी रोग पर बुधवार को स्टे दे दिया है. यही नहीं लखनऊ विश्वविद्यालय को इस पूरे प्रकरण में चार हफ्ते के अंदर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है.

दरअसल, 9 अगस्त 2024 को लखनऊ विश्वविद्यालय की कार्य परिषद में कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने जूलॉजी की प्रोफेसर मोनीषा बनर्जी पर लगे आरोपों की जांच के बाद उनके विभागाध्यक्ष, डीन, कोऑर्डिनेटर, डायरेक्टर इत्यादि बनने पर रोक लगा दी थी. इस पर हाईकोर्ट ने बुधवार को स्टे दे दिया है. साथ ही लखनऊ विश्वविद्यालय को इस पूरे प्रकरण में चार हफ्ते के अंदर अपना जवाब दाखिल करने लिए भी को कहा है.


दरअसल, अपने खिलाफ लखनऊ विश्वविद्यालयद्वारा किए गए दुष्प्रचार को लेकर मोनीषा बनर्जी ने न केवल लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की आम सभा (जीबीएम) बुलाने की लूटा से मांग की थी, बल्कि उसके लिए जरूरी 10 प्रतिशत शिक्षकों के हस्ताक्षर भी पूरे करके अध्यक्ष को सौंप दिया है.

कार्य परिषद में अपने खिलाफ हुए फैसले के तुरंत बाद ही प्रो. मोनीषा बनर्जी के तीखे 'रिएक्शन' पर लखनऊ विश्वविद्यालय ने एक सप्ताह तक कार्य परिषद की मिनिट्स ही जारी नहीं किये थे और कार्य परिषद में जो फैसले लिए गए थे, उसके हिसाब से मोनीषा बनर्जी को नोटिस भी नहीं दी गई.

लखनऊ विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर जैसे ही मिनिट्स जारी हुए, उसी को आधार बनाकर मोनीषा बनर्जी हाईकोर्ट पहुंची थी. हाईकोर्ट ने इस पूरे प्रकरण की सुनवाई करने के बाद 30 अगस्त के अपने फैसले में यह स्पष्ट किया है कि विभागाध्यक्ष, डीन, कोऑर्डिनेटर, डायरेक्टर इत्यादि बनने पर जो रोक कुलपति/कार्य परिषद ने लगाई है, उस पर स्टे रहेगा. अगले 4 सप्ताह में लखनऊ विश्वविद्यालय को काउंटर एफिडेविट जमा करने के लिए समय दिया गया है.

इस पूरे प्रकरण को लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षकों को बताने के लिए ही पिछले कई दिनों से मोनीषा बनर्जी लूटा अध्यक्ष प्रो. आरबी सिंह मून से जीबीएम बुलाने के लिए पत्र दे रही है, लेकिन पदाधिकारी जीबीएम को टालने में लगे हुए हैं. सोमवार को लूटा के उपाध्यक्ष अरशद जाफरी ने भी अध्यक्ष आरबी सिंह मून को पत्र लिखकर जीबीएम बुलाने की मांग की है.

ये है पूरा मामला
यह मामला राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी की एमपी ग्रांट से दिये गये 50 लाख रुपये के सामान से जुड़ा है. आरोप है कि प्रो. मोनीषा को परेशान करने को लेकर पहले ओएनजीसी बिल्डिंग से सारा सामान उठाने का गलत आरोप लगाया था, जबकि जो भी सामान मनीषा लेकर गई थी उसका सारा इंडेंट बनाकर तत्कालीन रजिस्ट्रार से साइन करा कर लखनऊ विश्वविद्यालय प्रशासन को सौंप दिया गया था. इसके बावजूद भी उन्हें बार-बार टारगेट किया जा रहा था और दबाव बनाने को लेकर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी. जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्य परिषद की बैठक में प्रो. मोनिषा के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे.

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Last Updated : Sep 11, 2024, 8:23 PM IST
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