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पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता मुरलीकांत पेटकर ने कहा ; दिव्यांगों को सहानुभूति नहीं, बराबरी का मौका दें - Murlikant Petkar

दिव्यांग खिलाड़ियों को अगर मौका मिले तो वह देश का नाम जरूर रोशन करेंगे. सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों के दिव्यांगों को भी तैयार करना और मौका देना चाहिए. यह बातें पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर (Murlikant Petkar) ने शुक्रवार को डॉ. शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय में कहीं.

डॉ. शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय के दीक्षांत में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के साथ पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर
डॉ. शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय के दीक्षांत में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के साथ पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर व अन्य. (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 14, 2024, 1:52 PM IST

पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर से ईटीवी भारत की खास बातचीत. (Video Credit : ETV Bharat)

लखनऊ : "चंदू चैंपियन" हाल ही में आई बॉलीवुड की फिल्म देश के उस सुपर हीरो के जीवन पर आधारित है. जिसने सभी चुनौतियों और बाधाओं को पार करते हुए अपने सपने को न केवल पूरा किया, बल्कि देश का नाम ओलंपिक जैसे खेलों में पहली बार गर्व से ऊंचा किया. पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर देश के उन्हीं चुनिंदा हीरोज में से हैं. जिन्होंने देश की सेवा से लेकर देश के नाम रोशन करने में अपने की सारी शक्ति लगा दी. 84 साल के जीवन के दौरान उन्होंने जो कुछ देश को दिया और हासिल किया उससे जुड़े अनुभव ईटीवी भारत से साझा किए. पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर शुक्रवार को लखनऊ स्थित डॉक्टर शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के 11 दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे. पढ़ें विस्तृत खबर...


पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर ने कहा कि हमारे देश में आज भी कुछ लोग हैंडिकैप्ड को तुच्छ भावना से देखते हैं. हालांकि इस सोच में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है. लोगों की सोच काफी बदली है. अव्वल तो दिव्यांगों को खैरात में कुछ नहीं चाहिए. बस हमें उनकी भावनाएं समझनी होंगी और मौका देकर समाज की मुख्य धारा में शामिल करना होगा.

पेटकर ने कहा कि शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय में सामान्य और दिव्यांग छात्र एक साथ पढ़ते हैं. यहां पर सभी छात्रों को एक समान सुविधाएं दी जा रही हैं. ऐसे संस्थान और विश्वविद्यालय की जरूरत देश भर में है. हमारे समय में सरकारें दिव्यांग लोगों के लिए काम नहीं करती थीं, पर आज सरकार दिव्यांगों को बढ़ावा देने और उन्हें खेल जैसे क्षेत्र में लाने के लिए बेहतर सुविधाएं मुहैया करा रही हैं. सरकार को शहरी के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के दिव्यांगों को भी मौका देने के लिए आगे आना चाहिए.

पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर बताया कि 1965 की लड़ाई के दौरान मुझे नौ गोलियां लगी थीं. जिसमें से एक गोली आज भी मेरी शरीर में फंसी हुई है. जिसके कारण मेरे शरीर के नीचे का पूरा अंग काम नहीं करता है. इसके बाद भी मैंने चुनौती स्वीकार की और खुद को दोबारा से खेल के लिए तैयार किया. इलाज के दौरान डॉक्टरों ने मुझे स्विमिंग करने की सलाह दी थी. इसके बाद में मुंबई में विजय मर्चेंट स्पोर्ट्स अकैडमी गया. जहां पर स्विमिंग की व्यवस्था थी और वहीं से मैं स्विमिंग सीखी और पैरालंपिक में जाने का निर्णय लिया. मैं 1968 से 1982 तक लगातार चैंपियन रहा. मैं देश का पहला ऐसा हैंडीकैप खिलाड़ी था जिसने पैरालंपिक में भारत के लिए किसी इंडिविजुअल इवेंट में पहला गोल्ड जीता था.

यह भी पढ़ें : आनंदीबेन पटेल बोलीं-मुरली कांत राजाराम पेटकर को देखकर चुनौतियों से लड़ने की मिलती है सीख - Convocation Ceremony

यह भी पढ़ें : Exclusive : मुरलीकांत पेटकर बोले, 'विनेश फोगाट खुद अयोग्य ठहराए जाने के लिए जिम्मेदार हैं' - Murlikant Petkar Interview

पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर से ईटीवी भारत की खास बातचीत. (Video Credit : ETV Bharat)

लखनऊ : "चंदू चैंपियन" हाल ही में आई बॉलीवुड की फिल्म देश के उस सुपर हीरो के जीवन पर आधारित है. जिसने सभी चुनौतियों और बाधाओं को पार करते हुए अपने सपने को न केवल पूरा किया, बल्कि देश का नाम ओलंपिक जैसे खेलों में पहली बार गर्व से ऊंचा किया. पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर देश के उन्हीं चुनिंदा हीरोज में से हैं. जिन्होंने देश की सेवा से लेकर देश के नाम रोशन करने में अपने की सारी शक्ति लगा दी. 84 साल के जीवन के दौरान उन्होंने जो कुछ देश को दिया और हासिल किया उससे जुड़े अनुभव ईटीवी भारत से साझा किए. पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर शुक्रवार को लखनऊ स्थित डॉक्टर शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के 11 दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे. पढ़ें विस्तृत खबर...


पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर ने कहा कि हमारे देश में आज भी कुछ लोग हैंडिकैप्ड को तुच्छ भावना से देखते हैं. हालांकि इस सोच में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है. लोगों की सोच काफी बदली है. अव्वल तो दिव्यांगों को खैरात में कुछ नहीं चाहिए. बस हमें उनकी भावनाएं समझनी होंगी और मौका देकर समाज की मुख्य धारा में शामिल करना होगा.

पेटकर ने कहा कि शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय में सामान्य और दिव्यांग छात्र एक साथ पढ़ते हैं. यहां पर सभी छात्रों को एक समान सुविधाएं दी जा रही हैं. ऐसे संस्थान और विश्वविद्यालय की जरूरत देश भर में है. हमारे समय में सरकारें दिव्यांग लोगों के लिए काम नहीं करती थीं, पर आज सरकार दिव्यांगों को बढ़ावा देने और उन्हें खेल जैसे क्षेत्र में लाने के लिए बेहतर सुविधाएं मुहैया करा रही हैं. सरकार को शहरी के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के दिव्यांगों को भी मौका देने के लिए आगे आना चाहिए.

पद्मश्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर बताया कि 1965 की लड़ाई के दौरान मुझे नौ गोलियां लगी थीं. जिसमें से एक गोली आज भी मेरी शरीर में फंसी हुई है. जिसके कारण मेरे शरीर के नीचे का पूरा अंग काम नहीं करता है. इसके बाद भी मैंने चुनौती स्वीकार की और खुद को दोबारा से खेल के लिए तैयार किया. इलाज के दौरान डॉक्टरों ने मुझे स्विमिंग करने की सलाह दी थी. इसके बाद में मुंबई में विजय मर्चेंट स्पोर्ट्स अकैडमी गया. जहां पर स्विमिंग की व्यवस्था थी और वहीं से मैं स्विमिंग सीखी और पैरालंपिक में जाने का निर्णय लिया. मैं 1968 से 1982 तक लगातार चैंपियन रहा. मैं देश का पहला ऐसा हैंडीकैप खिलाड़ी था जिसने पैरालंपिक में भारत के लिए किसी इंडिविजुअल इवेंट में पहला गोल्ड जीता था.

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