लखनऊ : जनरल नर्सिंग मिडवाइफरी (जीएनएम) कोर्स की मान्यता और सीटें बढ़वाने में नाकाम होने वाले कॉलेज संचालक अब शासन-सत्ता के गलियारे के चक्कर काट रहे हैं. वे मान्यता के लिए जमा की गई पांच लाख रुपये शुल्क की रसीद और इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आईएनसी) के प्रमाणपत्र के दम पर मान्यता की गुहार लगा रहे हैं.
प्रदेश में 87 नर्सिंग कॉलेजों ने जीएनएम कोर्स में सीटें बढ़ाने और 246 ने इस कोर्स को शुरू करने के लिए आवेदन किया था. कॉलेज संचालकों का कहना है कि उन्होंने मान्यता के लिए आवेदन के दौरान करीब पांच लाख रुपये फीस भी जमा की थी. जहां पहले से कोर्स चल रहा है, उन कॉलेजों को आईएनसी से प्रमाणपत्र भी मिला हुआ है. जबकि उत्तर प्रदेश स्टेट मेडिकल फैकल्टी की ओर से क्वालिटी कंट्रोल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) की टीम से कराई गई जांच में ज्यादातर कॉलेजों को कोर्स के लिए अयोग्य ठहराया गया है.
सीटें बढ़ाने के लिए सिर्फ 12 और नए कोर्स को शुरू करने के लिए नौ कॉलेजों को मान्यता दी गई है. अब कॉलेज संचालक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय से लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग के चक्कर काट रहे हैं. कॉलेज संचालकों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को पत्र लिखा है. इसमें नर्सिंग शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चलाए जा रहे अभियान का जिक्र करके हुए राहत की मांग की गई है.
पत्र में कहा गया है कि जहां पहले से कोर्स चल रहा है, उनमें से तमाम कॉलेजों को आईएनसी की मान्यता देर से मिली है. क्योंकि कॉलेज का निरीक्षण ही देर से हुआ है. ऐसे में उनकी कोई गलती नहीं है. इन सभी कॉलेजों को क्यूसीआई ने मानकविहीन घोषित कर दिया है. ऐसे में एक बार पुनर्मूल्यांकन कराया जाए. ताकि जिन कॉलेजों में व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं, वहां सीटें बढ़ाई जा सकें और पठन-पाठन सुचारू हो सकें. चिकित्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि इस मामले की जांच चल रही है. जो कॉलेज जीएनएम कोर्स कराने के लिए सक्षम है, वहीं पर यह कोर्स रहेगा.
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