ETV Bharat / state

यूपी के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार; जानें विकराल स्थिति पर विशेषज्ञों की राय - ENVIRONMENTAL POLLUTION IN UP

यूपी के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक हो चुका है. पर्यावरण में घुले रसायन स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में बिगड़ता पर्यावरण संतुलन.
उत्तर प्रदेश में बिगड़ता पर्यावरण संतुलन. (Photo Credit : ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 21, 2025, 3:18 PM IST

Updated : Jan 21, 2025, 5:03 PM IST

लखनऊ : यूपी में बढ़ती जनसंख्या, कृषि गतिविधियों और औद्योगिकीकरण से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. समय रहते अगर इन विषयों पर गंभीरता से काम नहीं किया गया, तो समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरण असंतुलन से यूपी के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार पहुंच गया है. यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए काफी घातक है. पर्यावरण में घुल रहे खतरनाक रसायनों से मानव के साथ जीव जंतुओं के जीवन को भी खतरा है. माना जा रहा है कि भविष्य में लोग खुली हवा में ठीक से सांस नहीं ले पाएंगे. पीने के लिए शुद्ध पानी की किल्लत हो जाएगी.

जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता व शिक्षा अभियान जरूरी: भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) के निदेशक डॉ. भास्कर नारायण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अधिक काम करने की आवश्यकता है. इसमें सबसे अहम रोल आम नागरिकों का है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रभावों पर व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके बावजूद कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है. इस विषय पर आम लोगों को अधिक जागरूक करने की जरूरत है.

उत्तर प्रदेश में बिगड़ता पर्यावरण संतुलन. देखें ईटीवी भारत की खास खबर (Video Credit : ETV Bharat)


जलवायु परिवर्तन पर पाठ्यक्रम : डॉ. भास्कर नारायण ने कहा कि स्कूलों-कॉलेजों में पर्यावरण विज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर विशेष पाठ्यक्रम पहले से ही हैं. इन पर अधिक जोर देने की जरूरत है. इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए. अभिभावकों को बच्चों को समझाने की आवश्यकता है. इसके अलावा अगर अभिभावक अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ और अच्छा रखेंगे. पेड़ पौधे लगाएंगे, तो बच्चे भी वही चीज सीखेंगे.


स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और वायु गुणवत्ता सुधार : डॉ. भास्कर नारायण के अनुसार वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए आईआईटीआर हर वर्ष अपनी रिपोर्ट तैयार करती है. रिपोर्ट में सालभर के प्रदूषण का आंकड़ा और इसके कारक, निवारण का ब्यौरा रहता है. उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में वायु प्रदूषण की समस्या विकराल है. प्रदेश सरकार इसे लेकर गंभीर है, लेकिन क्रियान्वयन में शिथिलता हावी है.

प्रदूषण से बचान के लिए करना होगा यह काम.
प्रदूषण से बचान के लिए करना होगा यह काम. (Photo Credit : ETV Bharat)


स्मार्ट सिटी मिशन : डॉ. भास्कर नारायण ने मुताबिक स्मार्ट सिटी मिशन के तहत प्रदेश के प्रमुख शहरों में इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत है. इसमें इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम, ग्रीन बिल्डिंग्स और सौर ऊर्जा जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना शामिल है. फिलहाल प्रदेश के सभी जिलों के शहरों में ग्रीन स्पेस बढ़ाने के लिए पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. सड़क के बीच डिवाइडर में भी पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. बहुत सारे ऐसे पेड़ पौधे हैं जो वातावरण में मौजूद प्रदूषण को सोख लेते हैं. ऐसे प्लांट भी लगाए जा रहे हैं. सरकार की पहल अच्छी है. बस इनकी निगरानी करने की जरूरत है. यह नगर निगम विभाग व स्मार्ट सिटी के उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी है.

भूजल दोहन बचाव के लिए सरकार को भेजे गए सुझाव:

  • प्रदेश को 'भूजल सुरक्षित राज्य' बनाने के लिए उथले एक्यूफर्स से हो रहे अंधाधुंध भूजल दोहन पर चरणबद्ध और प्रभावी ढंग से रोक लगाई जाए. इसके लिए अतिशीघ्र एक्यूफर आधारित पृथक निष्कर्षण नीति (Extraction Policy) लाई जाए और इस नीति के माध्यम से वर्तमान व भावी मांग की पूर्ति के लिए भूजल दोहन की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए गहरे एक्यूफर्स की क्षमता का वैज्ञानिक अध्ययन करके भूजल आपूर्ति की सतत व समुचित संभावना आंकलित की जाए.
  • भूजल रिचार्ज, रीयूज, रीसाइकिल व जल कुशल विधाओं की पृथक (Isolated ) रूप से लागू योजना कार्यों की वर्तमान व्यवस्था के बजाय इन कार्यों के एकीकृत ढंग से क्रियानवयन के लिए "बहाली व संकटग्रस्त एक्यूफर्स की पुनर्स्थापना" (Restoration of Depleted Aquifers) की पद्धति प्राथमिकता पर अपनाए जाने के लिए प्रदेश स्तर पर नीतिगत निर्णय लेकर लागू किया जाए. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 1990 में विद्यमान भूजल स्थिति व भूजल स्तर को बेंचमार्क माना जाए.
  • छोटी व बड़ी नदियों के दोनों तटों पर 1 किलोमीटर के दायरे में भूजल दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए. नदियों के फ्लड प्लेन की मैपिंग करके सरंक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाए.
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन में भूजल दोहन कम प्रतिवेदित (Under Reported) है. वास्तविक स्थिति ज्ञात करने के लिए कृषि व औद्यानिक क्षेत्र में फसल जल उपयोग के आधार पर दोहन की गणना तथा पेयजल, औद्योगिक, व्यवसायिक, अवस्थापना, खनन, मत्स्य क्षेत्रों में दोहन का वास्तविक क्षेत्रीय आकलन किया जाए.


जल प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन उपाय: भूजल विशेषज्ञ आरएस ने बताया कि यूपी में जल संकट की समस्या बढ़ रही है. खासकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संरक्षण, जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की गई है. हर चीज को लेकर के कानून बने हैं, लेकिन पालन में कोताही बरती जाती है. भविष्य में जल संकट और भी बिकराल होगा. इस बात की गंभीरता को हर किसी को समझने की जरूरत है. प्रदेश सरकार ने नियम भी बनाया है कि कोई भी व्यक्ति बोरवेल कराने से पहले अनुमति जरूर ले.

नदियों और जलाशयों की सफाई : भूजल विशेषज्ञ ने कहा कि प्रदेश की प्रमुख नदियां गंगा, यमुना और गोमती आदि में प्रदूषण की समस्या गंभीर है. इन नदियों की सफाई और जल पुनर्नवीनीकरण के लिए सरकार की ओर से विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके अलावा जलाशयों के पुनर्निर्माण और संरक्षण की दिशा में कार्य किए जा जा रहे हैं.


मौसम आधारित कृषि उपजों पर नीति : भूजल विशेषज्ञ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को मौसम के बदलाव का सामना करना पड़ रहा है. इसके लिए राज्य में किसानों को जलवायु अनुकूल कृषि उपजों, बोआई के समय और सूखा-रोधी किस्मों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) में किसानों के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते हैं. इसमें किसानों को खेती के तरीकों की जानकारी दी जाती है. इसके अलावा पेड़ पौधे फलों की विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण और उत्पादन की तकनीकि साझा की जाती है.


जैव विविधता और वन्य जीव संरक्षण : राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अजीत शासनी ने बताया कि वन्यजीव व जैव विविधता का संरक्षण के लिए भी सरकार गंभीर है. प्रदेश में विभिन्न प्रकार की वन्यजीव प्रजातियां और जैव विविधता का खजाना है, जिसे संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है. राज्य में वन्यजीव अभयारण्यों और संरक्षित क्षेत्रों को मजबूत किए जाने के लिए प्रदेश सरकार कदम उठा रही है. खासकर हम प्रदेश सरकार को यह अवगत कराते हैं कि कौन-कौन सी प्रजातियां समाप्त हो रही हैं. जंगलों की अधाधुंध कटाई और वनों की घेराबंदी से वन्य जीवन पर किस तरह का प्रभाव पड़ रहा है.


कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण : डॉ. अजीत शासनी का कहना है कि कचरा प्रबंधन योजनाएं बनाई गई हैं. राज्य में कचरे के उचित प्रबंधन के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इसे अलग-अलग वर्गों में बांटकर (जैविक, अजैविक, रीसायकल योग्य) दोबारा चक्रित किया जा रहा है. सरकारी और निजी साझेदारी से कचरे के निस्तारण और पुनर्चक्रण में सुधार हो रहा है. बहुत सारी सामाजिक संस्थाएं और बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इसमें लगी हैं.


प्लास्टिक मुक्त प्रदेश : भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक के.सी. खुल्बे ने कहा कि सरकार के प्लास्टिक मुक्त प्रदेश के संकल्प के बाद जागरूक लोग घर से झोला लेकर निकलते हैं. प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए कानून भी हैं. हालांकि अभी आम लोगों में उतनी समझ नहीं आई है.



जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतियां : वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार प्रदेश सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए स्थिरता और पर्यावरण के अनुकूल नीतियां बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं. नियमों का पालन ठीक तरीके से नहीं हो पाने के कारण ही स्थितियां बिगड़ रही हैं. लोगों को नियमों को अपनी दिनचर्या में शामिल करने होंगे तभी बदलाव देखने को मिलेगा.


जलवायु परिवर्तन पर शोध और विकास : वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए शोध कार्य और विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार शोध हो रहे हैं. आईआईटीआर की ओर से हर वर्ष रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाती है. जल प्रदूषण वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन यह एक बड़ा विषय है. हर वैज्ञानिक अपने-अपने क्षेत्र में काम कर रहा है. वैज्ञानिक संस्थान प्रदूषण को रोकने के लिए सुझाव तैयार कर सरकार को देते हैं. इसके बाद सरकार अमल में लाने के लिए योजनाएं बनाती है. जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसके लिए यूपी में एक मजबूत आपातकालीन और आपदा प्रबंधन प्रणाली स्थापित है.


होती हैं कैंसर जैसी बीमारियां: केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर्स आपके अंदर जाएंगे तो आपके फेफड़ों के अंदर की जो क्षमता है वह प्रभावित होगी और कैंसर जैसी बीमारियां होंगी. भारतीय राज्यों के परिपेक्ष में देखा जाए तो 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 1.67 मिलियन मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण है. इसके पीछे जो कारण सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) का ऑडिशन था. कंडे-उपले, लकड़ी जलाने के अलावा वाहनों का उत्सर्जन भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है. इससे 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था को 36.8 बिलियन डॉलर की हानि हुई. यह भारतीय जीडीपी का 1.36% है . यूनाइटेड नेशन के द्वारा एसडीजी गोल लांच किए गए हैं. इसके जरिए हम वायु प्रदूषण को कम कर सकते हैं.


शहर में दौड़ रहे लाखों वाहन : वनों के विनाश, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे हॉर्न से उत्पन्न होने वाली ध्वनियां प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं. प्रदेश में करीब 21 लाख 23 हजार 813 पुराने वाहन और करीब 2 लाख तीन हजार 584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14 हजार 223, नॉन ट्रांसपोर्ट वाहन 3 लाख 32 हजरा 67 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3 लाख 46 हजार 290 है.

यह भी पढ़ें : यूपी में वायु प्रदूषण; लखनऊ का AQI सबसे ज्यादा, जानें अपने जिले का हाल - AIR POLLUTION IN LUCKNOW

यह भी पढ़ें : सुबह-शाम धुंध के साथ फॉग की हुई शुरुआत, यूपी के कई जिलों का एक्यूआई 300 पार - UP News

लखनऊ : यूपी में बढ़ती जनसंख्या, कृषि गतिविधियों और औद्योगिकीकरण से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. समय रहते अगर इन विषयों पर गंभीरता से काम नहीं किया गया, तो समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक पर्यावरण असंतुलन से यूपी के कई शहरों का एयर क्वालिटी इंडेक्स 300 के पार पहुंच गया है. यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए काफी घातक है. पर्यावरण में घुल रहे खतरनाक रसायनों से मानव के साथ जीव जंतुओं के जीवन को भी खतरा है. माना जा रहा है कि भविष्य में लोग खुली हवा में ठीक से सांस नहीं ले पाएंगे. पीने के लिए शुद्ध पानी की किल्लत हो जाएगी.

जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता व शिक्षा अभियान जरूरी: भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आईआईटीआर) के निदेशक डॉ. भास्कर नारायण के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अधिक काम करने की आवश्यकता है. इसमें सबसे अहम रोल आम नागरिकों का है. जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पर्यावरणीय प्रभावों पर व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके बावजूद कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है. इस विषय पर आम लोगों को अधिक जागरूक करने की जरूरत है.

उत्तर प्रदेश में बिगड़ता पर्यावरण संतुलन. देखें ईटीवी भारत की खास खबर (Video Credit : ETV Bharat)


जलवायु परिवर्तन पर पाठ्यक्रम : डॉ. भास्कर नारायण ने कहा कि स्कूलों-कॉलेजों में पर्यावरण विज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर विशेष पाठ्यक्रम पहले से ही हैं. इन पर अधिक जोर देने की जरूरत है. इसकी शुरुआत घर से ही होनी चाहिए. अभिभावकों को बच्चों को समझाने की आवश्यकता है. इसके अलावा अगर अभिभावक अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ और अच्छा रखेंगे. पेड़ पौधे लगाएंगे, तो बच्चे भी वही चीज सीखेंगे.


स्वच्छता, प्रदूषण नियंत्रण और वायु गुणवत्ता सुधार : डॉ. भास्कर नारायण के अनुसार वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए आईआईटीआर हर वर्ष अपनी रिपोर्ट तैयार करती है. रिपोर्ट में सालभर के प्रदूषण का आंकड़ा और इसके कारक, निवारण का ब्यौरा रहता है. उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों लखनऊ, कानपुर, वाराणसी और गोरखपुर में वायु प्रदूषण की समस्या विकराल है. प्रदेश सरकार इसे लेकर गंभीर है, लेकिन क्रियान्वयन में शिथिलता हावी है.

प्रदूषण से बचान के लिए करना होगा यह काम.
प्रदूषण से बचान के लिए करना होगा यह काम. (Photo Credit : ETV Bharat)


स्मार्ट सिटी मिशन : डॉ. भास्कर नारायण ने मुताबिक स्मार्ट सिटी मिशन के तहत प्रदेश के प्रमुख शहरों में इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने की जरूरत है. इसमें इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम, ग्रीन बिल्डिंग्स और सौर ऊर्जा जैसी योजनाओं को बढ़ावा देना शामिल है. फिलहाल प्रदेश के सभी जिलों के शहरों में ग्रीन स्पेस बढ़ाने के लिए पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. सड़क के बीच डिवाइडर में भी पेड़ पौधे लगाए जा रहे हैं. बहुत सारे ऐसे पेड़ पौधे हैं जो वातावरण में मौजूद प्रदूषण को सोख लेते हैं. ऐसे प्लांट भी लगाए जा रहे हैं. सरकार की पहल अच्छी है. बस इनकी निगरानी करने की जरूरत है. यह नगर निगम विभाग व स्मार्ट सिटी के उच्च अधिकारियों की जिम्मेदारी है.

भूजल दोहन बचाव के लिए सरकार को भेजे गए सुझाव:

  • प्रदेश को 'भूजल सुरक्षित राज्य' बनाने के लिए उथले एक्यूफर्स से हो रहे अंधाधुंध भूजल दोहन पर चरणबद्ध और प्रभावी ढंग से रोक लगाई जाए. इसके लिए अतिशीघ्र एक्यूफर आधारित पृथक निष्कर्षण नीति (Extraction Policy) लाई जाए और इस नीति के माध्यम से वर्तमान व भावी मांग की पूर्ति के लिए भूजल दोहन की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए गहरे एक्यूफर्स की क्षमता का वैज्ञानिक अध्ययन करके भूजल आपूर्ति की सतत व समुचित संभावना आंकलित की जाए.
  • भूजल रिचार्ज, रीयूज, रीसाइकिल व जल कुशल विधाओं की पृथक (Isolated ) रूप से लागू योजना कार्यों की वर्तमान व्यवस्था के बजाय इन कार्यों के एकीकृत ढंग से क्रियानवयन के लिए "बहाली व संकटग्रस्त एक्यूफर्स की पुनर्स्थापना" (Restoration of Depleted Aquifers) की पद्धति प्राथमिकता पर अपनाए जाने के लिए प्रदेश स्तर पर नीतिगत निर्णय लेकर लागू किया जाए. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए वर्ष 1990 में विद्यमान भूजल स्थिति व भूजल स्तर को बेंचमार्क माना जाए.
  • छोटी व बड़ी नदियों के दोनों तटों पर 1 किलोमीटर के दायरे में भूजल दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए. नदियों के फ्लड प्लेन की मैपिंग करके सरंक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया जाए.
  • केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन में भूजल दोहन कम प्रतिवेदित (Under Reported) है. वास्तविक स्थिति ज्ञात करने के लिए कृषि व औद्यानिक क्षेत्र में फसल जल उपयोग के आधार पर दोहन की गणना तथा पेयजल, औद्योगिक, व्यवसायिक, अवस्थापना, खनन, मत्स्य क्षेत्रों में दोहन का वास्तविक क्षेत्रीय आकलन किया जाए.


जल प्रबंधन और जलवायु अनुकूलन उपाय: भूजल विशेषज्ञ आरएस ने बताया कि यूपी में जल संकट की समस्या बढ़ रही है. खासकर सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संरक्षण, जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन के लिए विभिन्न योजनाओं की शुरुआत की गई है. हर चीज को लेकर के कानून बने हैं, लेकिन पालन में कोताही बरती जाती है. भविष्य में जल संकट और भी बिकराल होगा. इस बात की गंभीरता को हर किसी को समझने की जरूरत है. प्रदेश सरकार ने नियम भी बनाया है कि कोई भी व्यक्ति बोरवेल कराने से पहले अनुमति जरूर ले.

नदियों और जलाशयों की सफाई : भूजल विशेषज्ञ ने कहा कि प्रदेश की प्रमुख नदियां गंगा, यमुना और गोमती आदि में प्रदूषण की समस्या गंभीर है. इन नदियों की सफाई और जल पुनर्नवीनीकरण के लिए सरकार की ओर से विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके अलावा जलाशयों के पुनर्निर्माण और संरक्षण की दिशा में कार्य किए जा जा रहे हैं.


मौसम आधारित कृषि उपजों पर नीति : भूजल विशेषज्ञ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों को मौसम के बदलाव का सामना करना पड़ रहा है. इसके लिए राज्य में किसानों को जलवायु अनुकूल कृषि उपजों, बोआई के समय और सूखा-रोधी किस्मों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है. राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) में किसानों के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते हैं. इसमें किसानों को खेती के तरीकों की जानकारी दी जाती है. इसके अलावा पेड़ पौधे फलों की विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण और उत्पादन की तकनीकि साझा की जाती है.


जैव विविधता और वन्य जीव संरक्षण : राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. अजीत शासनी ने बताया कि वन्यजीव व जैव विविधता का संरक्षण के लिए भी सरकार गंभीर है. प्रदेश में विभिन्न प्रकार की वन्यजीव प्रजातियां और जैव विविधता का खजाना है, जिसे संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है. राज्य में वन्यजीव अभयारण्यों और संरक्षित क्षेत्रों को मजबूत किए जाने के लिए प्रदेश सरकार कदम उठा रही है. खासकर हम प्रदेश सरकार को यह अवगत कराते हैं कि कौन-कौन सी प्रजातियां समाप्त हो रही हैं. जंगलों की अधाधुंध कटाई और वनों की घेराबंदी से वन्य जीवन पर किस तरह का प्रभाव पड़ रहा है.


कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण : डॉ. अजीत शासनी का कहना है कि कचरा प्रबंधन योजनाएं बनाई गई हैं. राज्य में कचरे के उचित प्रबंधन के लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इसे अलग-अलग वर्गों में बांटकर (जैविक, अजैविक, रीसायकल योग्य) दोबारा चक्रित किया जा रहा है. सरकारी और निजी साझेदारी से कचरे के निस्तारण और पुनर्चक्रण में सुधार हो रहा है. बहुत सारी सामाजिक संस्थाएं और बड़ी-बड़ी कंपनियां भी इसमें लगी हैं.


प्लास्टिक मुक्त प्रदेश : भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक के.सी. खुल्बे ने कहा कि सरकार के प्लास्टिक मुक्त प्रदेश के संकल्प के बाद जागरूक लोग घर से झोला लेकर निकलते हैं. प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए कानून भी हैं. हालांकि अभी आम लोगों में उतनी समझ नहीं आई है.



जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतियां : वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार प्रदेश सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए स्थिरता और पर्यावरण के अनुकूल नीतियां बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं. नियमों का पालन ठीक तरीके से नहीं हो पाने के कारण ही स्थितियां बिगड़ रही हैं. लोगों को नियमों को अपनी दिनचर्या में शामिल करने होंगे तभी बदलाव देखने को मिलेगा.


जलवायु परिवर्तन पर शोध और विकास : वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए शोध कार्य और विकास को बढ़ावा देने की दिशा में लगातार शोध हो रहे हैं. आईआईटीआर की ओर से हर वर्ष रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाती है. जल प्रदूषण वायु प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन यह एक बड़ा विषय है. हर वैज्ञानिक अपने-अपने क्षेत्र में काम कर रहा है. वैज्ञानिक संस्थान प्रदूषण को रोकने के लिए सुझाव तैयार कर सरकार को देते हैं. इसके बाद सरकार अमल में लाने के लिए योजनाएं बनाती है. जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाएं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं. इसके लिए यूपी में एक मजबूत आपातकालीन और आपदा प्रबंधन प्रणाली स्थापित है.


होती हैं कैंसर जैसी बीमारियां: केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर्स आपके अंदर जाएंगे तो आपके फेफड़ों के अंदर की जो क्षमता है वह प्रभावित होगी और कैंसर जैसी बीमारियां होंगी. भारतीय राज्यों के परिपेक्ष में देखा जाए तो 2019 के आंकड़ों के मुताबिक 1.67 मिलियन मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण है. इसके पीछे जो कारण सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) का ऑडिशन था. कंडे-उपले, लकड़ी जलाने के अलावा वाहनों का उत्सर्जन भी वायु प्रदूषण का बड़ा कारण है. इससे 2019 में भारतीय अर्थव्यवस्था को 36.8 बिलियन डॉलर की हानि हुई. यह भारतीय जीडीपी का 1.36% है . यूनाइटेड नेशन के द्वारा एसडीजी गोल लांच किए गए हैं. इसके जरिए हम वायु प्रदूषण को कम कर सकते हैं.


शहर में दौड़ रहे लाखों वाहन : वनों के विनाश, उद्योग, कल कारखाने, खनन के साथ-साथ परिवहन को भी वायु और ध्वनि प्रदूषण का कारक माना जा रहा है. शहर में दौड़ रहे वाहनों में लगे हॉर्न से उत्पन्न होने वाली ध्वनियां प्रदूषण में इजाफा कर रही हैं. प्रदेश में करीब 21 लाख 23 हजार 813 पुराने वाहन और करीब 2 लाख तीन हजार 584 ट्रांसपोर्ट वाहन हैं. लखनऊ में पंजीकृत वाहनों में ट्रांसपोर्ट वाहन करीब 14 हजार 223, नॉन ट्रांसपोर्ट वाहन 3 लाख 32 हजरा 67 हैं. इस प्रकार से राजधानी में कुल वाहनों की संख्या 3 लाख 46 हजार 290 है.

यह भी पढ़ें : यूपी में वायु प्रदूषण; लखनऊ का AQI सबसे ज्यादा, जानें अपने जिले का हाल - AIR POLLUTION IN LUCKNOW

यह भी पढ़ें : सुबह-शाम धुंध के साथ फॉग की हुई शुरुआत, यूपी के कई जिलों का एक्यूआई 300 पार - UP News

Last Updated : Jan 21, 2025, 5:03 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.