बालोद : बालोद जिले के ग्राम पंचायत जगतरा के आश्रित ग्राम पाकुरभाट में नौनिहाल किराये के भवन में शिक्षा ले रहा है. आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन पिछले दो वर्षों से किराए के भवन में हो रहा है. जिस जगह पर आंगनबाड़ी भवन हो वो जर्जर हो चुका है.लेकिन उस भवन को बनवाने के लिए किसी ने भी जहमत नहीं उठाई.आंगनबाड़ी केंद्र जंगल में तब्दील हो चुका है. सरपंच का कहना है कि आंगनबाड़ी बनवाने के लिए लगातार प्रस्ताव भेजा गया है.लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस जवाब नहीं मिलता.आंगनबाड़ी ना होने से बच्चों समेत गर्भवती महिलाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
किराये के भवन में चल रही आंगनबाड़ी : बालोद जिले में कई गांव प्रधानमंत्री आदर्श गांव के रूप में चयनित हैं. जिस गांव की हम बात कर रहे हैं वहां पर अनुसूचित जाति वर्ग के लोग ज्यादातर संख्या में निवास करते हैं. ऐसे में यहां के लोग प्रशासन की इस उपेक्षा से काफी नाराज हैं. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता का कहना है 2 साल से वो यहां पर आंगनबाड़ी का संचालन कर रहे हैं.
''पिछला आंगनबाड़ी भवन जो है वो पूरी तरह जर्जर है. पानी टपकता है. वहां पर गर्भवती महिलाओं को चलने में भी काफी दिक्कतें होती थी. कई बार हादसा होते-होते बचा है.'' सुनीता, आंगनबाड़ी वर्कर
डिस्मेंटल का इंतजार : वहीं इस बारे में जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी धीरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि जानकारी मिली है कि वहां पर आंगनबाड़ी केंद्र किराए के भवन में संचालित है. हमारे विभाग के परियोजना अधिकारी ने भवन को लेकर प्रस्ताव एसडीएम के पास भेजा है.
''एसडीएम जैसे ही नए भवन को अप्रूव कर देंगे. पुराने भवन को डिस्मेंटल घोषित कर दिया जाएगा. फिर नए भवन की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी.''- धीरेंद्र प्रताप सिंह, महिला बाल विकास अधिकारी
वहीं सरपंच का आरोप है कि इतने दिनों में सारी प्रक्रियाओं को पूरा करने काफी समय क्यों लग रहा है जबकि यह प्रधानमंत्री का आदर्श गांव है. यहां तो प्रशासन को प्राथमिकता में लेकर सभी कार्य कराए जाने चाहिए.
आदर्श ग्राम' का सपना : 'आदर्श ग्राम' वो है जिसमें लोगों को बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं. ताकि समाज के सभी वर्गों की न्यूनतम ज़रूरतें पूरी हो सकें. इन गांवों में सभी बुनियादी सुविधाएं होने पर लोगों को जीवन यापन करने में आसानी होगी.इसके लिए अनुसूचित जाति वर्ग के बहुल्यता वाले गांव का चयन प्राथमिकता से किया गया है.लेकिन जो सुविधाएं इन गांवों में आनी चाहिए थी वो अब भी कोसों दूर हैं.
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