महासमुंद: लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. पूरे देश में 7 चरणों में मतदान होना है. छत्तीसगढ़ में तीन चरणों में मतदान संपन्न कराया जाएगा. बात अगर छत्तीसगढ़ की करें तो छत्तीसगढ़ में कुल 11 लोकसभा सीटें हैं. इन सीटों में महासमुंद लोकसभा सीट हाईप्रोफाइल सीट है. इस सीट पर दूसरे चरण में यानी कि 26 अप्रैल को मतदान होना है. इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस में टक्कर देखने को मिल रहा है.महासमुंद लोकसभा सीट पर बीजेपी ने एक ओबीसी वर्ग की महिला रूप कुमारी चौधरी को मैदान में उतार है. वहीं, कांग्रेस पार्टी ने ओबीसी वर्ग से ही छत्तीसगढ़ के पूर्व मंत्री और दिग्गज नेता ताम्रध्वज साहू को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया है. हालांकि ये सीट ओबीसी बाहुल्य क्षेत्र है. ऐसे में इस सीट पर कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी.
एक नजर महासमुंद सीट पर: महासमुंद लोकसभा क्षेत्र में 3 जिले शामिल है, जिसमें धमतरी, गरियाबंद और महासमुंद है. महासमुंद लोकसभा के आठ विधानसभा क्षेत्रों में से चार विधानसभा क्षेत्र सरायपाली, खल्लारी, धमतरी और बिन्द्रानवागढ़ पर कांग्रेस का कब्जा है. वहीं, चार विधानसभा क्षेत्रों में महासमुंद, बसना, राजिम और कुरूद पर बीजेपी का कब्जा है.इन तीनो जिलों में कुल मतदाताओं की संख्या 17 लाख 90 हजार मतदाता है. इसमें 8 लाख 60 हजार पुरुष मतदाता और 8 लाख 90 हजार महिला मतदाता शामिल हैं.
आखिर क्यों हाईप्रोफाइल सीट है महासमुंद: छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से महासमुंद लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीट है, क्योंकि इस सीट पर कई दिग्गजों का कब्जा रहा है. यहां साल 1952 से अब तक कुल 19 चुनाव हुए हैं, जिसमें महासमुंद लोकसभा सीट पर 12 बार कांग्रेस का कब्जा रहा है. कांग्रेस के कद्दावर नेता विद्याचरण शुक्ल सात बार महासमुंद से चुनाव जीतकर केंद्र में वरिष्ठ मंत्री रहे हैं. साथ ही अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे श्यामाचरण शुक्ल भी एक बार महासमुंद से चुनाव जीत चुके हैं. इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ के पहले सीएम अजीत जोगी साल 2004 के लोकसभा चुनाव में महासमुंद लोकसभा सीट से जीत हासिल किए थे. अजीत जोगी के बाद साल 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने महासमुंद की सीट पर कब्जा किया है.
महासमुंद लोकसभा सीट का जातीगत समीकरण: महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां 51 फीसद मतदाता अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं. इनमें साहू, कुर्मी, अघरिया, यादव और कोलता समाज की बहुलता है. अनुसूचित जनजाति के वोटर लगभग 20 फीसद हैं. अनुसूचित जाति के वोटर लगभग 11 फीसद हैं. अनारक्षित वर्ग के लगभग 12 फीसद मतदाता हैं. इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि महासमुंद लोकसभा सीट अन्य पिछड़ा वर्ग बाहुल क्षेत्र है.
अब बीजेपी का सीट पर कब्जा:महासमुंद लोकसभा सीट कभी कांग्रेसियों का गढ़ कहा जाता था, लेकिन पिछले तीन बार से भाजपा ने इस पर कब्जा कर रखा है. इस बार 2024 के चुनाव मे भारतीय जनता पार्टी ने ओबीसी वर्ग की महिला पर भरोसा जताया है.महासमुंद लोकसभा क्षेत्र में साहू समाज की बहुलता के चलते भाजपा ने अब तक साहू प्रत्याशियों को ही मैदान में उतार कर साहू कार्ड खेलते हुए जीत हासिल की है. इस चुनाव में भाजपा ने साहू कार्ड को पीछे छोड़ते हुए ओबीसी वर्ग की महिला पर भरोसा जताया है.भाजपा की पहली महिला प्रत्याशी के रूप मे रूपकुमारी चौधरी को मैदान पर उतारा गया है. वहीं, कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और दिग्गज नेता ताम्रध्वज साहू को बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए चुनावी रणभूमि में उतारा है.
जानिए क्या है इस सीट के मुद्दे और समस्या: इस क्षेत्र में महिला थाना न होने से महिलाओं को काफी हद तक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. किसानों के लिए सिंचाई की व्यवस्था नहीं है, हालांकि सीकासेर जलासय शुरू होने के संकेत मिले हैं. लेकिन अब तक महासमुंद में यह शुरू ही नहीं हुआ है.आत्मनिर्भर बनाने के लिए रोजगार मूलक शिक्षा नहीं है. यहां के अधिकांश युवक बेरोजगार है.100 बिस्तरों के जिला अस्पताल को अब मेडिकल कॉलेज बनाया गया है, लेकिन यहां पूरी सुविधाओं का आभाव है. बड़े मामले रायपुर रेफर कर दिए जाते हैं.यातायात सुविधाओं का आभाव है. ट्रेन है, लेकिन स्टापेज को लेकर काफी नाराजगी यहां के लोगों में देखने को मिलता है. रायपुर से धमतरी और राजिम विधानसभा जाने के लिए सिर्फ बस या खुद के साधन का ही उपयोग करना पड़ता है. बड़े उद्योग नहीं होने से रोजगार नहीं है, जिससे लोग पलायन कर जाते है.यहां ज्यादातर बाहर से आए हुए लोगों को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे यहां के लोग काम की तलाश में बाहर जाने को मजबूर हो जाते है. महासमुंद उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ है. बड़े इंस्टिट्यूट में शिक्षा लेने के लिए बच्चे ज्यादातर बाहरी बड़े नगरों का रुख करते हैं. साथ ही स्कूलों में शिक्षको की कमी है. बच्चे और पालक आए दिन यहां अपनी मांगो को लेकर तालाबंदी करते रहते है.इंजिनियरिंग कॉलेज नहीं होने से इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है.