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कांग्रेस और बसपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियां पहुंचीं बुरे दौर में, खिसकते जनाधार के पीछे हैं कई कारण, पढ़िए डिटेल - Lok Sabha election 2024

कांग्रेस और बसपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियां अपने बुरे दौर में पहुंच चुकी हैं. दोनों ही पार्टियों के जनाधार यूपी में गिरते जा रहे हैं. इसके पीछे कई कारण हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 12, 2024, 11:46 AM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसी राष्ट्रीय पार्टियां वर्ष 2009 के बाद लगातार हाशिए पर जा रहीं हैं तो वहीं अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी जैसे दलों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. आखिर क्या है इसका कारण? क्यों राष्ट्रीय दल हाशिए पर खिसक रहे हैं और क्षेत्रीय दलों को तरजीह मिल रही है? 2009 के बाद हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव परिणामों के पूरे आंकड़ों के साथ पढ़िए ईटीवी भारत की ये खबर.

बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश में विभिन्न दलों के साथ ही अपना गठबंधन करके देख चुकी हैं. लेकिन, उम्मीद के मुताबिक लाभ दोनों ही पार्टियों को नहीं मिला है. हालांकि 2014 में एक भी सीट न जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी ने 2019 में लोकसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया तो 10 सीटें जीतने में कामयाब जरूर हुई. लेकिन, इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया.

इसका नतीजा यह हुआ कि 403 विधानसभा सीटों पर लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी सिर्फ एक ही उम्मीदवार जिता पाने में सफल हो पाई. बसपा का यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा. कांग्रेस पार्टी की भी स्थिति कमोबेश बहुजन समाज पार्टी की ही तरह है. उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ने के बजाय लगातार घटता ही जा रहा है. बात चाहे विधानसभा की हो या फिर लोकसभा की, कांग्रेस पार्टी को गठबंधन भी संजीवनी नहीं दे पा रहा है.



चुनाव में गिरता गया मायावती का जनाधार : बसपा अध्यक्ष मायावती ने दावा किया था कि साल 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी 2007 से भी ज्यादा सीट जीतेगी. हालांकि, उनका यह दावा परिणाम आने के साथ हवा हो गया. 1993 में पहली बार 67 सीटें जीतकर बीएसपी ने चौंका दिया था. इसके बाद 17वीं विधानसभा चुनाव में (2017) पार्टी केवल 19 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. कार्यकाल के अंतिम समय में महज तीन विधायक रह गए थे. 75% विधायकों ने बसपा से दूरी बना ली थी. जनाधार खो चुकी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई.

बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोट बैंक की बड़ी हिस्सेदारी पार्टी को बड़ी सफलता दिला चुकी है. हालांकि, बीते कुछ चुनावों से लगातार पार्टी का ग्राफ गिरता रहा है. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 24.67 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 19 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब 27.42 फीसदी वोट मिले थे और उसके 20 सांसद बने थे.

यह बसपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन था. 2014 के चुनाव में बसपा को 19.77 फीसदी वोट ही मिले और उसका कोई भी प्रत्याशी संसद की दहलीज तक नहीं पहुंच सका था. इस झटके से उबरने के लिए साल 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ लड़ने का बसपा का फैसला बेहतर साबित हुआ. पार्टी के सांसदों की संख्या जीरो से दहाई का अंक 10 तक पहुंच गया. अब 2024 का चुनाव बसपा ने फिर अकेले लड़ने का फैसला लिया है.

लोकसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन :2004 में 19 सीटें (34.67% वोट), 2009 में 20 सीटें (27.42% वोट), साल 2014 में खाता नहीं खुला (19.77% वोट), साल 2019 में 10 सीटें(22.43% वोट).

इसे भी पढ़े-आगरा में आकाश आनंद का आह्वान, कहा- नीला पटका पहने बहरूपियों से रहें सावधान, शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा पर पूछें सवाल - BSP Rally In Agra

कमाल नहीं कर पा रहा कांग्रेस का पंजा : साल 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके लड़ा था. सात साल बाद एक बार फिर लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने सपा के साथ ही गठबंधन किया है. 17 सीटों पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी मैदान में हैं. कांग्रेस की यूपी में खराब हालत 1985 से ही जारी है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तब से 50 सीटें भी नहीं जीत पाई है. कांग्रेस 1985 के बाद से अब तक 50 का आंकड़ा नहीं पार कर पाई. इस चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दिख रहा है. 1991 में कांग्रेस को 46 और 1996 में 33 सीटें ही हासिल हो पाई थीं. कांग्रेस को वर्ष 2012 में 28, वर्ष 2007 में 22, वर्ष 2002 में 25 सीटें मिली थीं.

ये है लोकसभा में कांग्रेस का परफॉर्मेंस : पिछले तीन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात की जाए तो साल 2009 में कांग्रेस 69 सीटों पर चुनाव लड़ी और 21 सीटें जीतने में सफल हुई. इस चुनाव में सपा 75 पर लड़कर 23 और बसपा 69 पर लड़ी और 20 सीटें जीतीं थी. 2014 में कांग्रेस 67 पर लड़कर सिर्फ दो सीट जीती. सपा 75 में पांच और बसपा 80 पर लड़ी और एक भी सीट नहीं जीत पाई. 2019 में सपा- बसपा का गठबंधन था. कांग्रेस 67 पर लड़ी और सिर्फ रायबरेली सीट ही जीत पाई. सपा 37 सीट पर पर लड़ी और पांच सीटें जीती, जबकि बसपा 38 पर लड़ी और 10 जीतने में सफल हुई.

पिछले तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का यह रहा मत प्रतिशत

साल 2009 18.25 प्रतिशत
साल 2014 7.5 प्रतिशत
साल 2019 6.36 प्रतिशत


बड़े दलों से बड़े होते जा रहे छोटे दल : अब अगर उत्तर प्रदेश के छोटे दलों की बात की जाए तो वह भी बड़ी पार्टियों से दिन प्रतिदिन बड़े होते जा रहे हैं. अपना दल (सोनेलाल पटेल) पार्टी के केंद्र में मंत्री हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में भी मंत्री हैं. पार्टी के दर्जन भर विधायक हैं, विधान परिषद सदस्य हैं. दो सांसद हैं और पार्टी लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी तरह राष्ट्रीय लोकदल की बात की जाए तो वर्तमान में पार्टी के नौ विधायक हैं. एक राज्यसभा सांसद हैं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री है. एक विधान परिषद सदस्य भी है.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की बात की जाए तो पार्टी के 6 विधायक हैं. एक विधान परिषद सदस्य हैं. योगी सरकार में पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कैबिनेट मंत्री हैं. इस बार यह पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में एक लोकसभा सीट पर चुनाव भी लड़ रही है. इसी तरह निषाद पार्टी के भी लोकप्रियता बढ़ रही है. पार्टी के मुखिया उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. इन सभी पार्टियों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव में जाने का फैसला लिया है. सभी पार्टियों को उम्मीद है कि इस बार सभी प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल होंगे और सांसद बनेंगे.

खिसकते जनाधार के पीछे हैं कई कारण : राजनीतिक जानकार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बसपा के खिसकते जनाधार के पीछे कई कारण मानते हैं. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन का कहना है कि इन पार्टियों के पैरों तले से जमीन यूं ही नहीं खिसकी. इसके पीछे इनकी अपनी गलतियां ज्यादा हैं. जनता की तो कोई गलती नहीं. जनता से जो भी पार्टियां लगातार अपना कनेक्ट जारी रखेगी उसे चुनाव में फायदा तो मिलना ही है. इन दोनों पार्टियों के लगातार खिसकते जनाधार के पीछे सबसे बड़ा कारण यही माना जा सकता है कि बड़े नेता चुनाव के पहले ही जनता के बीच जाते हैं.

इससे पहले जमीन पर भी कदम रखने से परहेज करते हैं. जनता से नेताओं की दूरी जनता को अखरती है. यही वजह है कि जनता भी इन दलों से दूरी बना रही है. सिर्फ सोशल मीडिया से चुनाव नहीं जीते जा सकते. धरातल पर भी उतरना जरूरी होता है. इन दोनों पार्टियों के नेता सोशल मीडिया से ही अपनी जीत हासिल करना चाहते हैं, जो संभव नहीं है. सोशल मीडिया प्रचार का माध्यम हो सकता है लेकिन, जब तक जनता के बीच खुद नहीं जाएंगे तब तक कोई फायदा नहीं हो सकता.

यह भी पढ़े-बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी बोले- कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली में ढूंढने से प्रत्याशी नहीं मिल रहे - Bhupendra Chaudhary In Hapur

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी जैसी राष्ट्रीय पार्टियां वर्ष 2009 के बाद लगातार हाशिए पर जा रहीं हैं तो वहीं अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी जैसे दलों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. आखिर क्या है इसका कारण? क्यों राष्ट्रीय दल हाशिए पर खिसक रहे हैं और क्षेत्रीय दलों को तरजीह मिल रही है? 2009 के बाद हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव परिणामों के पूरे आंकड़ों के साथ पढ़िए ईटीवी भारत की ये खबर.

बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा सीटों के लिहाज से उत्तर प्रदेश में विभिन्न दलों के साथ ही अपना गठबंधन करके देख चुकी हैं. लेकिन, उम्मीद के मुताबिक लाभ दोनों ही पार्टियों को नहीं मिला है. हालांकि 2014 में एक भी सीट न जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी ने 2019 में लोकसभा चुनाव में जब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया तो 10 सीटें जीतने में कामयाब जरूर हुई. लेकिन, इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा ने सपा से गठबंधन तोड़ लिया.

इसका नतीजा यह हुआ कि 403 विधानसभा सीटों पर लड़ने वाली बहुजन समाज पार्टी सिर्फ एक ही उम्मीदवार जिता पाने में सफल हो पाई. बसपा का यह सबसे खराब प्रदर्शन रहा. कांग्रेस पार्टी की भी स्थिति कमोबेश बहुजन समाज पार्टी की ही तरह है. उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार बढ़ने के बजाय लगातार घटता ही जा रहा है. बात चाहे विधानसभा की हो या फिर लोकसभा की, कांग्रेस पार्टी को गठबंधन भी संजीवनी नहीं दे पा रहा है.



चुनाव में गिरता गया मायावती का जनाधार : बसपा अध्यक्ष मायावती ने दावा किया था कि साल 2022 के विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी 2007 से भी ज्यादा सीट जीतेगी. हालांकि, उनका यह दावा परिणाम आने के साथ हवा हो गया. 1993 में पहली बार 67 सीटें जीतकर बीएसपी ने चौंका दिया था. इसके बाद 17वीं विधानसभा चुनाव में (2017) पार्टी केवल 19 सीटों पर सिमट कर रह गई थी. कार्यकाल के अंतिम समय में महज तीन विधायक रह गए थे. 75% विधायकों ने बसपा से दूरी बना ली थी. जनाधार खो चुकी पार्टी को 2022 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल हुई.

बसपा की सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोट बैंक की बड़ी हिस्सेदारी पार्टी को बड़ी सफलता दिला चुकी है. हालांकि, बीते कुछ चुनावों से लगातार पार्टी का ग्राफ गिरता रहा है. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को 24.67 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 19 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को करीब 27.42 फीसदी वोट मिले थे और उसके 20 सांसद बने थे.

यह बसपा का सबसे अच्छा प्रदर्शन था. 2014 के चुनाव में बसपा को 19.77 फीसदी वोट ही मिले और उसका कोई भी प्रत्याशी संसद की दहलीज तक नहीं पहुंच सका था. इस झटके से उबरने के लिए साल 2019 का लोकसभा चुनाव समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ लड़ने का बसपा का फैसला बेहतर साबित हुआ. पार्टी के सांसदों की संख्या जीरो से दहाई का अंक 10 तक पहुंच गया. अब 2024 का चुनाव बसपा ने फिर अकेले लड़ने का फैसला लिया है.

लोकसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन :2004 में 19 सीटें (34.67% वोट), 2009 में 20 सीटें (27.42% वोट), साल 2014 में खाता नहीं खुला (19.77% वोट), साल 2019 में 10 सीटें(22.43% वोट).

इसे भी पढ़े-आगरा में आकाश आनंद का आह्वान, कहा- नीला पटका पहने बहरूपियों से रहें सावधान, शिक्षा, रोजगार और सुरक्षा पर पूछें सवाल - BSP Rally In Agra

कमाल नहीं कर पा रहा कांग्रेस का पंजा : साल 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करके लड़ा था. सात साल बाद एक बार फिर लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने सपा के साथ ही गठबंधन किया है. 17 सीटों पर कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी मैदान में हैं. कांग्रेस की यूपी में खराब हालत 1985 से ही जारी है. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस तब से 50 सीटें भी नहीं जीत पाई है. कांग्रेस 1985 के बाद से अब तक 50 का आंकड़ा नहीं पार कर पाई. इस चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन दिख रहा है. 1991 में कांग्रेस को 46 और 1996 में 33 सीटें ही हासिल हो पाई थीं. कांग्रेस को वर्ष 2012 में 28, वर्ष 2007 में 22, वर्ष 2002 में 25 सीटें मिली थीं.

ये है लोकसभा में कांग्रेस का परफॉर्मेंस : पिछले तीन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात की जाए तो साल 2009 में कांग्रेस 69 सीटों पर चुनाव लड़ी और 21 सीटें जीतने में सफल हुई. इस चुनाव में सपा 75 पर लड़कर 23 और बसपा 69 पर लड़ी और 20 सीटें जीतीं थी. 2014 में कांग्रेस 67 पर लड़कर सिर्फ दो सीट जीती. सपा 75 में पांच और बसपा 80 पर लड़ी और एक भी सीट नहीं जीत पाई. 2019 में सपा- बसपा का गठबंधन था. कांग्रेस 67 पर लड़ी और सिर्फ रायबरेली सीट ही जीत पाई. सपा 37 सीट पर पर लड़ी और पांच सीटें जीती, जबकि बसपा 38 पर लड़ी और 10 जीतने में सफल हुई.

पिछले तीन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का यह रहा मत प्रतिशत

साल 2009 18.25 प्रतिशत
साल 2014 7.5 प्रतिशत
साल 2019 6.36 प्रतिशत


बड़े दलों से बड़े होते जा रहे छोटे दल : अब अगर उत्तर प्रदेश के छोटे दलों की बात की जाए तो वह भी बड़ी पार्टियों से दिन प्रतिदिन बड़े होते जा रहे हैं. अपना दल (सोनेलाल पटेल) पार्टी के केंद्र में मंत्री हैं. उत्तर प्रदेश सरकार में भी मंत्री हैं. पार्टी के दर्जन भर विधायक हैं, विधान परिषद सदस्य हैं. दो सांसद हैं और पार्टी लगातार बढ़ती ही जा रही है. इसी तरह राष्ट्रीय लोकदल की बात की जाए तो वर्तमान में पार्टी के नौ विधायक हैं. एक राज्यसभा सांसद हैं. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में एक कैबिनेट मंत्री है. एक विधान परिषद सदस्य भी है.

सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की बात की जाए तो पार्टी के 6 विधायक हैं. एक विधान परिषद सदस्य हैं. योगी सरकार में पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर कैबिनेट मंत्री हैं. इस बार यह पार्टी भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में एक लोकसभा सीट पर चुनाव भी लड़ रही है. इसी तरह निषाद पार्टी के भी लोकप्रियता बढ़ रही है. पार्टी के मुखिया उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. इन सभी पार्टियों ने इस बार के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव में जाने का फैसला लिया है. सभी पार्टियों को उम्मीद है कि इस बार सभी प्रत्याशी चुनाव जीतने में सफल होंगे और सांसद बनेंगे.

खिसकते जनाधार के पीछे हैं कई कारण : राजनीतिक जानकार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बसपा के खिसकते जनाधार के पीछे कई कारण मानते हैं. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन का कहना है कि इन पार्टियों के पैरों तले से जमीन यूं ही नहीं खिसकी. इसके पीछे इनकी अपनी गलतियां ज्यादा हैं. जनता की तो कोई गलती नहीं. जनता से जो भी पार्टियां लगातार अपना कनेक्ट जारी रखेगी उसे चुनाव में फायदा तो मिलना ही है. इन दोनों पार्टियों के लगातार खिसकते जनाधार के पीछे सबसे बड़ा कारण यही माना जा सकता है कि बड़े नेता चुनाव के पहले ही जनता के बीच जाते हैं.

इससे पहले जमीन पर भी कदम रखने से परहेज करते हैं. जनता से नेताओं की दूरी जनता को अखरती है. यही वजह है कि जनता भी इन दलों से दूरी बना रही है. सिर्फ सोशल मीडिया से चुनाव नहीं जीते जा सकते. धरातल पर भी उतरना जरूरी होता है. इन दोनों पार्टियों के नेता सोशल मीडिया से ही अपनी जीत हासिल करना चाहते हैं, जो संभव नहीं है. सोशल मीडिया प्रचार का माध्यम हो सकता है लेकिन, जब तक जनता के बीच खुद नहीं जाएंगे तब तक कोई फायदा नहीं हो सकता.

यह भी पढ़े-बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी बोले- कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली में ढूंढने से प्रत्याशी नहीं मिल रहे - Bhupendra Chaudhary In Hapur

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