लखनऊ : मथुरा संसदीय सीट पर फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. उनके खिलाफ गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस नेता मुकेश धनगर चुनौती पेश कर रहे हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी ने सुरेश सिंह पर दांव लगाया है.
जाट व सवर्ण वोटरों की अच्छी संख्या के कारण इस चुनाव का रुख पिछले चुनावों से अलग हो सकता है. 2019 के लोकसभा चुनावों में जाट मतदाताओं में अच्छी पकड़ रखने वाले राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जिसका सपा और बसपा से गठबंधन भी था, को हेमा मालिनी ने बुरी तरह से पराजित किया था.
चुनाव में 1952 के बाद से अब तक इस सीट पर किसी चुनाव में हुए कुल मतदान का दूसरा सबसे बड़ा वोट प्रतिशत हेमा मालिनी को हासिल हुआ था. अब 2024 में भाजपा के साथ रालोद भी है. ऐसे में समीकरण कुछ और नजर आएंगे. बता दें, मथुरा लोकसभा सीट पर दूसरे चरण यानी 26 अप्रैल को मतदान होना है. परिणाम 4 जून को घोषित किए जाएंगे.
16 अक्टूबर 1948 को तमिलनाडु के अम्मनकुड़ी में जन्मीं भाजपा उम्मीदवार हेमा मालिनी को यूं तो लोग उनके शानदार अभिनय और भरतनाट्यम नृत्य के लिए जानते हैं, लेकिन 16 नवंबर 2003 को जब उन्हें राज्यसभा सदस्य के तौर पर मनोनीत किया गया, तो उन्होंने जन सेवा का संकल्प लेकर राजनीतिक यात्रा भी आरंभ कर दी.
2009 में कार्यकाल खत्म होने के बाद वह 2014 के लोकसभा चुनाव में मथुरा से भाजपा उम्मीदवार बनीं और जीतकर संसद पहुंचीं. अपने जीवन के 75 वसंत पार कर चुकीं हेमा मालिनी आज भी फिट हैं और कई मौकों पर भरतनाट्यम नृत्य की प्रस्तुति भी देती हैं.
मशहूर फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र की पत्नी हेमा मालिनी को उनके अभिनय के लिए फिल्मफेयर का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार मिला है, जबकि सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से भी नवाजा है. वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार पैंतीस वर्षीय मुकेश धनगर जाट समाज से आते हैं.
वह वर्ष 2003 से कांग्रेस पार्टी में सक्रिय हैं और कांग्रेस कमेटी के सदस्य और पार्टी में प्रदेश महासचिव के पद पर भी काम कर रहे हैं. बहुजन समाज पार्टी की बात करें, तो पार्टी ने आईआरएस अधिकारी रहे 62 वर्ष के सुरेश सिंह को मैदान में उतारा है.
संघ से जुड़े रहे सुरेश सिंह ने 2004 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी और तभी से वह राजनीति में किस्मत आजमाने की कोशिश कर रहे हैं. 2014 और 2019 में भाजपा से टिकट न मिलने पर वह बसपा में आ गए.
पिछले चुनावों के विजेताओं का वोट प्रतिशत
- 2019 : 60.77%
- 2014 : 53.29%
- 2009 : 52.29%
- 2004 : 32.68%
- 1999 : 39.65%
- 1998 : 49.1%
- 1996 : 33.91%
- 1991 : 33.0%
- 1989 : 48.6%
- 1984 : 58.0%
- 1980 : 47.7%
- 1977 : 75.6%
- 1971 : 39.3%
- 1957 : 40.68%
पिछले चुनाव की बात करें, तो 2014 में भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी को सवा चार लाख से भी ज्यादा वोटों से पराजित किया था. उन्हें 6,74,633 वोट मिले थे, जो कुल मतदान के 53,29 फीसद थे.
वहीं रालोद के जयंत चौधरी को महज 2,43,890 वोट मिले थे, कुल मतदान का सिर्फ 22.62 प्रतिशत था. तीसरे स्थान पर रहे बसपा के विवेक निगम को 73,572 और चौथे नंबर पर रहे सपा के दिनेश कर्दम को 36,673 वोट प्राप्त हुए थे.
दूसरी ओर 2019 में हेमा मालिनी की जीत का ग्राफ नए कीर्तिमान की ओर था. इस चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन होने के बावजूद भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी को 6,71,293 वोट मिले, जो कुल मतदान का 60.77 प्रतिशत थे. यह इस सीट पर अब तक दूसरा सबसे ज्यादा मत प्रतिशत था.
इससे पहले 1977 जनता पार्टी के मनीराम बागड़ी को सबसे ज्यादा कुल मतदान के 75.6 फीसद वोट मिले थे. 2019 में दूसरे स्थान पर रहे रालोद, सपा और बसपा के संयुक्त प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह 3,77,822 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे.
हेमा मालिनी ने उन्हें 2,93,471 वोटो से पराजित किया था. तीसरे स्थान पर कांग्रेस के महेश पाठक रहे थे, जिन्हें 28,084 मत प्राप्त हुए थे. जातीय समीकरणों की बात की जाए, तो लगभग 18 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर लगभग साढ़े तीन लाख जाट मतदाता हैं.
वहीं सवर्ण मतदाताओं की आबादी सात लाख से भी ज्यागा मानी जाती है, जिनमें ब्राह्मण और क्षत्रिय तीन-तीन लाख के आसपास आते हैं. मथुरा संसदीय सीट पर लगभग बीस अनुसूचित जाति के मतदाता निवास करते हैं, जबकि यहां लगभग अस्सी हजार जाटव मतदाता भी हैं.
यदि 2022 के विधानसभा चुनावों की चर्चा करें, तो संसदीय क्षेत्र की पांचों विधानसभा सीटों छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव (सु) में भाजपा के उम्मीदवार ही जीतकर आए हैं.
ऐसे भाजपा को गठबंधन और बसपा प्रत्याशी कितनी चुनौती पेश कर पाएंगे, समझा जा सकता है. हां यदि हेमा मालिनी चुनाव जीतती हैं, तो इस सीट पर लगातार जीत बार जीतने के भाजपा प्रत्याशी चौधरी तेजवीर सिंह के रिकॉर्ड की बराबरी जरूर कर लेंगी.
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