डूंगरपुर. लोकसभा चुनाव के तहत बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर 26 अप्रैल को वोटिंग होनी है. आजादी के बाद बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर पहली बार ऐसा मौका होगा, जब कांग्रेस चुनावी मैदान में नहीं है. पिछले विधानसभा चुनाव में इस सीट के अंतर्गत आने वाली बांसवाड़ा की 5 और डूंगरपुर की 3 विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने सर्वाधिक वोट हासिल किए थे, लेकिन बीएपी से गठबंधन के चलते कांग्रेस ने इस सीट पर अपने हथियार डाल दिए हैं.
राजस्थान के दक्षिणांचल में स्थित डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिला कई मायनों में खास है. प्रदेश की बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है. आजादी के बाद से अभी तक यहां 17 सांसद रहे हैं, जिनमें 12 बार सांसद कांग्रेस पार्टी के रहे हैं. एक बार भारतीय लोक दल, एक बार जनता दल और 3 बार भाजपा के सांसद जीतकर लोकसभा में गए हैं. पिछले दो बार से इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है.
कांग्रेस इस बार मैदान में नहीं : बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट पर 17 चुनावों में से 12 बार जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस पार्टी आजादी के बाद पहली बार चुनावी मैदान में नहीं होगी. कांग्रेस पार्टी ने इस बार इस सीट पर भारत आदिवासी पार्टी से गठबंधन कर लिया है. भारत आदिवासी पार्टी से राजकुमार रोत चुनावी मैदान में हैं, जिनकी सीधी टक्कर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए महेंद्रजीत सिंह मालविया से है. इस सीट पर गठबंधन करने पर स्थानीय कांग्रेसी नेताओं में कांग्रेस आलाकमान से नाराजगी है. पिछले विधानसभा चुनाव में बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली बांसवाड़ा की 5 और डूंगरपुर की 3 विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने सर्वाधिक वोट हासिल किए थे. वहीं, 8 सीट में से 5 सीट पर जीत दर्ज की थी. दो सीट भाजपा व एक सीट बीएपी ने जीती थी.
गठबंधन से भविष्य में कांग्रेस को खतरा : कांग्रेस ने इस बार लोकसभा चुनाव में मजबूत होते हुए भी गठबंधन करते हुए हथियार डाल दिए हैं. कांग्रेस के इस गठबंधन के कदम को राजनीति के जानकार कांग्रेस के लिए खतरा मान रहे हैं. डूंगरपुर के वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस वागड़ में काफी मजबूत स्थिति थी. कांग्रेस एक मजबूत उम्मीदवार को उतारकर कड़ी टक्कर दे सकती थी, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा न करके बीएपी से गठबंधन किया है. इससे स्थानीय कांग्रेसी नेताओं में अंदर खाने नाराजगी है. वहीं, आने वाले चुनावों में कांग्रेस के इस कदम से पार्टी को काफी नुकसान पहुंच सकता है. बहरहाल, आजादी के बाद पहली बार इस सीट से कांग्रेस लोकसभा के रण में नहीं है. पार्टी गठबंधन करते हुए बीएपी को समर्थन दे रही है. अब देखने वाली बात है कि कांग्रेस व बीएपी मिलकर पिछले दो बार से लगातार जीतने वाली भाजपा के विजय रथ को रोक पाती है या नहीं.