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शोध पेटेंट कराने में चाइना से आगे निकलने की MMMUT की पहल, यूएस-यूके से पेटेंट लेने को बढ़ाया कदम - MMMUT REASEARCH

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोध को पेंटेंट कराने लिए लॉ फर्म सभी पहलुओं पर कार्य करेगी. इसके अलावा विश्वविद्यालय शोध पेटेंट होने पर शोधार्थी को पैसों का भी भुगतान करेगा.

मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (Etv Bharat)

गोरखपुर: इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और छात्रों के संयुक्त प्रयास से सिविल, केमिकल, इलेक्ट्रिकल, सीएस समेत कई अन्य विधाओं में शोध के अच्छे परिणाम आने के बाद भी इन्हे पेटेंट मिलने में हो रही देरी का निदान अब मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMUT) ने खोज निकाला है.

अब तक सैकड़ों शोध और उनमें दो दर्जन से ज्यादा ऐसे शोध जिनकी ग्लोबल मान्यता सालों से लटकी है, उन्हे पेटेंट दिलाने के लिये MMMUT अब एक लॉ फर्म के माध्यम से विश्व स्तरीय पर पहल शुरू कर दिया है. जिन शोध को लेकर वह आगे बढ़ने जा रहा है, उनके पेपर इंटरनेशनल जर्नल में कई बार प्रकाशित हो चुके हैं. लेकिन पेटेंट नहीं मिला है. इसके माध्यम से अब यह इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय चाइना को पीछे छोड़ने की कोशिश करेगा. चीन जिस आधार पर पेटेंट कराने में सफल होता है, वह प्रकिया MMMUT भी अपना रहा है. इससे विश्वविद्यालय और शोद्धार्थी दोनों को फायदा होगा.

MMMUT कुलपति प्रोफेसर जेपी सैनी. (Video Credit; ETV Bharat)


विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जेपी सैनी ने बताया है कि शोध के पेटेंट होने से न सिर्फ किसी शोध को मान्यता मिलती है, बल्कि उससे विश्वविद्यालय और शोधार्थी दोनों की ग्लोबल पहचान बनती है. जो किसी नए प्रोडक्ट को अपने शोध के माध्यम से समाज के भीतर लाने का काम करता है. लॉ फर्म पेटेंट कराने के लिए सभी पहलुओं पर कार्य करेगी. विश्वविद्यालय इसके लिए उसे भुगतान भी करेगा. यह फर्म पेटेंट कराने से लेकर उसके अवार्ड होने तक शोधार्थी की मदद करेगी. पेटेंट के अवार्ड हो जाने पर उसका क्रेडिट तो शोधार्थी को मिलेगा, लेकिन उसका मालिकाना हक विश्वविद्यालय का होगा. उन्होंने कहा कि एक शोध को पेटेंट कराने में करीब 2 लख रुपये तक का खर्च आता है, जो विश्वविद्यालय वहन करेगा. इसके अलावा इंटरनेशनल शोध के लिए 50000 और देश स्तरीय शोध के पेटेंट होने के लिए शोधार्थी को 25000 का भुगतान भी विश्वविद्यालय करेगा.

उन्होंने कहा कि शोध के पेटेंट होने से विश्वविद्यालय की रैंकिंग भी सुधरेगा. इससे नैक और एनआईआरएफ रैंकिंग में भी विश्वविद्यालय का महत्व बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि जब इसमें विश्वविद्यालय रैंकिंग के लिए आवेदन करता है तो, यह पूछा जाता है कि विश्वविद्यालय के कितने शोध पेटेंट हुए हैं. ऐसे में हुए शोध को पेटेंट कराने के लिए विश्वविद्यालय मजबूत पहल करने के क्रम में लॉ फर्म का चयन किया है. उन्होंने कहा कि जब विश्वविद्यालय के शोध पेटेंट की संख्या बढ़ेगी तो उसके रैंकिंग में भी सुधार बढ़ता जाएगा. उन्होंने कहा कि शोध पत्र विश्वविद्यालय को सौंपने के बाद विद्यार्थी और गाइड यानी कि प्रोफेसर की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी. उसे असली मुकाम यानी की पेटेंट तक पहुंचाने का भार विश्वविद्यालय के कंधे पर होगा.

इसे भी पढ़ें-टनल की खोदाई और भवनों की नींव को सुरक्षित करेगा रिडक्शन फैक्टर, MMMUT के छात्र ने विकसित की खास तकनीक

गोरखपुर: इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और छात्रों के संयुक्त प्रयास से सिविल, केमिकल, इलेक्ट्रिकल, सीएस समेत कई अन्य विधाओं में शोध के अच्छे परिणाम आने के बाद भी इन्हे पेटेंट मिलने में हो रही देरी का निदान अब मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMUT) ने खोज निकाला है.

अब तक सैकड़ों शोध और उनमें दो दर्जन से ज्यादा ऐसे शोध जिनकी ग्लोबल मान्यता सालों से लटकी है, उन्हे पेटेंट दिलाने के लिये MMMUT अब एक लॉ फर्म के माध्यम से विश्व स्तरीय पर पहल शुरू कर दिया है. जिन शोध को लेकर वह आगे बढ़ने जा रहा है, उनके पेपर इंटरनेशनल जर्नल में कई बार प्रकाशित हो चुके हैं. लेकिन पेटेंट नहीं मिला है. इसके माध्यम से अब यह इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय चाइना को पीछे छोड़ने की कोशिश करेगा. चीन जिस आधार पर पेटेंट कराने में सफल होता है, वह प्रकिया MMMUT भी अपना रहा है. इससे विश्वविद्यालय और शोद्धार्थी दोनों को फायदा होगा.

MMMUT कुलपति प्रोफेसर जेपी सैनी. (Video Credit; ETV Bharat)


विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जेपी सैनी ने बताया है कि शोध के पेटेंट होने से न सिर्फ किसी शोध को मान्यता मिलती है, बल्कि उससे विश्वविद्यालय और शोधार्थी दोनों की ग्लोबल पहचान बनती है. जो किसी नए प्रोडक्ट को अपने शोध के माध्यम से समाज के भीतर लाने का काम करता है. लॉ फर्म पेटेंट कराने के लिए सभी पहलुओं पर कार्य करेगी. विश्वविद्यालय इसके लिए उसे भुगतान भी करेगा. यह फर्म पेटेंट कराने से लेकर उसके अवार्ड होने तक शोधार्थी की मदद करेगी. पेटेंट के अवार्ड हो जाने पर उसका क्रेडिट तो शोधार्थी को मिलेगा, लेकिन उसका मालिकाना हक विश्वविद्यालय का होगा. उन्होंने कहा कि एक शोध को पेटेंट कराने में करीब 2 लख रुपये तक का खर्च आता है, जो विश्वविद्यालय वहन करेगा. इसके अलावा इंटरनेशनल शोध के लिए 50000 और देश स्तरीय शोध के पेटेंट होने के लिए शोधार्थी को 25000 का भुगतान भी विश्वविद्यालय करेगा.

उन्होंने कहा कि शोध के पेटेंट होने से विश्वविद्यालय की रैंकिंग भी सुधरेगा. इससे नैक और एनआईआरएफ रैंकिंग में भी विश्वविद्यालय का महत्व बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि जब इसमें विश्वविद्यालय रैंकिंग के लिए आवेदन करता है तो, यह पूछा जाता है कि विश्वविद्यालय के कितने शोध पेटेंट हुए हैं. ऐसे में हुए शोध को पेटेंट कराने के लिए विश्वविद्यालय मजबूत पहल करने के क्रम में लॉ फर्म का चयन किया है. उन्होंने कहा कि जब विश्वविद्यालय के शोध पेटेंट की संख्या बढ़ेगी तो उसके रैंकिंग में भी सुधार बढ़ता जाएगा. उन्होंने कहा कि शोध पत्र विश्वविद्यालय को सौंपने के बाद विद्यार्थी और गाइड यानी कि प्रोफेसर की जिम्मेदारी खत्म हो जाएगी. उसे असली मुकाम यानी की पेटेंट तक पहुंचाने का भार विश्वविद्यालय के कंधे पर होगा.

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