भरतपुर. नगर विकास न्यास भरतपुर ने शहरवासियों के लिए सेक्टर-13 योजना के बड़े बड़े सब्जबाग दिखाए. चौड़ी सड़कें और बेहतर योजना विकसित करने के नाम पर 10 गांवों के 2980 किसानों की 2200 बीघा जमीन अधिग्रहित कर ली. किसानों को न तो जमीन के बदले पट्टे मिले और न ही मुआवजा. सरकारें बदलती रहीं, लेकिन योजना आगे नहीं बढ़ पाई. 14 साल से हजारों किसानों और हजारों लोगों को योजना का इंतजार है. अब किसानों ने भाजपा सरकार से इस योजना को जल्द लॉन्च करने की मांग उठाई है.
सालों से योजना का इंतजार : दरअसल, जयपुर-आगरा हाईवे पर नगर विकास न्यास ने सेक्टर-13 योजना की प्लानिंग की. 21 सितंबर 2005 को योजना को मूर्त रूप देकर वर्ष 2010 से किसानों के खेती करने पर रोक लगा दी और वर्ष 2014 में 2200 बीघा (346.86 हेक्टेयर) भूमि अधिग्रहित कर ली गई. इसमें 10 गांवों के 2980 किसानों की जमीन शामिल है. तमाम विवाद और अड़चनों के बाद योजना को 2 अक्टूबर 2018 को लॉन्च किया गया, लेकिन 8 माह बाद ही योजना को बंद कर दिया गया. तत्कालीन कलेक्टर ने सक्षम अधिकारियों से अनुमति नहीं लेने की बात बोलकर योजना रद्द कर दी, जबकि योजना के लिए करीब 8 हजार लोगों ने आवेदन किया था.
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बसपा जिलाध्यक्ष और जमीन धारक मोती सिंह ने बताया कि योजना को लेकर किसान लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन कोई सरकार इस योजना को लेकर गंभीर नहीं है. 14 साल से किसान इस जमीन पर न तो खेती कर पा रहा है, न उसे पट्टा मिला है और न ही मुआवजा. किसानों ने जब योजना को लेकर काफी विरोध किया तो इसी साल करीब 1 हजार से अधिक किसानों को पट्टे जारी कर दिए और बाद में फिर से रोक लगा दी गई. अभी भी करीब 50 फीसदी से अधिक किसानों को पट्टे नहीं मिल पाए हैं.
समाजों को खुश करने के लिए दे दी जमीन : बसपा जिलाध्यक्ष मोती सिंह ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस सरकार के समय सेक्टर-13 में कई समाजों को एक-एक हजार वर्ग गज जमीन दे दी गई. करीब 15 हजार वर्ग गज जमीन विभिन्न समाजों को खुश करने के लिए दे दी गई. ऐसे में यह योजना अब खटाई में पड़ती नजर आ रही है.
वापस ले लिए आवेदन : योजना में वर्ष 2018 में लॉन्चिंग के दौरान कुल 8 हजार लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन योजना रद्द होते ही 5 हजार से अधिक आवेदकों ने अपने आवेदन वापस ले लिए. अब लोगों को फिर से योजना की लॉन्चिंग का इंतजार है, लेकिन नगर विकास न्यास की ओर से योजना को लेकर कोई प्रयास होते नजर नहीं आ रहे हैं. वहीं, ईटीवी भारत ने इस मामले में यूआईटी सचिव से बात करने का प्रयास किया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया.