नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली में भी अब 140 प्रत्याशियों के द्वारा नामांकन करने के बाद राजनीतिक पारा चढ़ने लगा है. सोमवार को नामांकन का अंतिम दिन है. इसके बाद दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मियां और तेज होने की उम्मीद है. ऐसे में, दिल्ली में हुए पुराने चुनावों को भी लोग याद कर रहे हैं. दिल्ली के लोकसभा चुनावों से जुड़े कुछ दिलचस्प संस्मरण भी जुड़े हुए हैं.
ऐसा ही एक संस्मरण पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से वर्ष 1997 में हुए उपचुनाव में पहली बार जीतने वाले लाल बिहारी तिवारी ने साझा किया. उन्होंने बताया कि उस समय में दिल्ली में मदन लाल खुराना जी की सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री था. पूर्वी दिल्ली से भाजपा के तत्कालीन सांसद बीएल शर्मा प्रेम ने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इस्तीफा देने से पहले उस समय पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी से भी नहीं पूछा. इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी का आडवाणी जी के पास फोन आया कि आपकी पार्टी के सांसद बीएल शर्मा प्रेम ने इस्तीफा मुझे भेजा है, इसको स्वीकार करें या नहीं. आडवाणी जी ने कहा कि जब उन्होंने हमसे बिना पूछे इस्तीफा दिया है तो हम इसे अस्वीकार करने के लिए कैसे कहें आप इस्तीफा स्वीकार कर लीजिए. इसके बाद यह सीट खाली हो गई.
उन्होंने बताया कि तब बाहरी दिल्ली, उत्तर पूर्वी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली की मौजूदा सीटों के क्षेत्र को मिलाकर एक सीट होती थी. नरेला से शुरू होकर यह लोकसभा सीट यूपी के गाजियाबाद और नोएडा बॉर्डर पर जाकर खत्म होती थी. उस समय इस सीट पर 32 लाख मतदाता थे.
अटल-आडवाणी के आग्रह पर मंत्री पद से इस्तीफा देकर लड़ा लोकसभा का उपचुनाव
लाल बिहारी तिवारी ने बताया कि सीट खाली होने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी ने मुझे बुलाया और कहा कि बीएल शर्मा प्रेम को इस बात का घमंड हो गया है कि पूर्वी दिल्ली सीट से उनके अलावा कोई और जीत नहीं सकता है, इसलिए इस उपचुनाव को हर हाल में जीतना है. उनकी बात सुनकर मैंने कहा कि अभी तो मैं पहली बार विधायक बना हूं और मंत्री के रूप में मुझे जनता की सेवा करने का अच्छा मौका मिल रहा है. पूरी दिल्ली की जनता की सेवा कर पा रहा हूं और अपने क्षेत्र पर भी ध्यान दे पा रहा हूं. मुझे आप यहीं रहने दीजिए और उपचुनाव आप लड़ लीजिए. लाल कृष्ण आडवाणी जी उस समय एक हवाला केस के आरोप से बरी हुए थे. उन्होंने बरी होने से पहले चुनाव लड़ने से मना कर रखा था. बरी हुए तो मैंने भी कहा कि आप ही चुनाव लड़ लीजिए अब तो आप बरी भी हो चुके हैं. फिर आडवाणी जी ने कहा कि हमने पूर्वी दिल्ली की सीट पर सर्वे करा लिया है. वहां, तुम्हारे अलावा औऱ कोई नहीं जीत सकता है. प्रदेश से बड़ा देश होता है. प्रदेश में आपने काम कर लिया अब देश के लिए काम करना है. आपको संसद में बैठना है. इसके बाद मैंने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उप चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो गया. मैंने मंत्री बनते ही लोगों के लिए 72 घंटे में घर पर राशन कार्ड बनाने का काम शुरू करा दिया था और बहुत बड़ी संख्या में दिल्ली में उत्तर प्रदेश औऱ बिहार से रहने आए लोगों के राशन कार्ड बनवा दिए थे. इसकी वजह से लोगों में एक अच्छी छवि बन गई थी.
लोगों ने चुनाव लड़ने के लिए इतना चंदा दिया कि बच गए थे 20 लाख रुपए
लाल बिहारी तिवारी ने बताया कि कांग्रेस ने मेरे सामने उस के कांग्रेस के बड़े औऱ मजबूत नेता एचकेएल भगत को उम्मीदवार बना दिया. मैं उनके सामने कुछ भी नहीं था. वह पैसे और संसाधन हर तरह से मजबूत थे. मेरे पास तो चुनाव लड़ने के लिए पैसे भी नहीं थे. मुझे पार्टी ने पैसा दिया और लोगों ने चंदा दिया. इससे इतना पैसा इकट्ठा हो गया कि चुनाव लड़ने और जीतने के बाद 20 लाख रुपये बच गए, जो मैंने बाद में पार्टी फंड में जमा कराए. लोगों ने नोट के साथ वोट भी दिया.
एक थ्री व्हीलर और एक टू व्हीलर से चुनाव प्रचार कर जीता था चुनाव
लाल बिहारी तिवारी ने बताया कि बैशाख के महीने में तपती दोपहरी में हम लोग एक थ्री व्हीलर और एक टू व्हीलर से चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे. भरी दोपहरी में उपचुनाव में मात्र 24 प्रतिशत मतदान हुआ था. कांग्रेस ने भी इस सीट को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया. लेकिन, जब चुनाव परिणाम आया तो मात्र 24 प्रतिशत की वोटिंग पर करीब सवा लाख वोटों से मैंने भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की. इसके बाद 1998 के मध्यावधि चुनाव और फिर 1999 के मध्यावधि चुनाव में भी लाल बिहारी तिवारी ने जीत दर्ज की. 1998 में उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री शीला दीक्षित को हराया तो 1999 में उन्होंने दिल्ली के उपराज्यपाल रहे एचकेएल कपूर को हराया. Conclusion:वर्ष 2004 का चुनाव वह कांग्रेस की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित से हार गए.
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