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सुसाइड करने वाले छात्र के पिता बोले- बेटे की मौत रह जाएगी रहस्य, साथ लेकर चला जाता तो मेरे साथ होता ऋषित - Kota Student Suicide Case

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jun 29, 2024, 3:21 PM IST

Jharkhand Student Death in Kota, दादाबाड़ी में सुसाइड करने वाले कोचिंग छात्र के पिता कहना है कि शव को करीब 5 दिन हो गए और काफी स्मेल आ रही है. इसके चलते बिहार ले जाना संभव नहीं है. पिता ने मलाल जताया कि 2 महीने पहले वे ऋषित को साथ ले जाते तो यह दिन देखने को नहीं मिलता और ऋषित उनके साथ होता. उन्होंने इस मामले में हॉस्टल संचालक की गलती बताई है.

Kota Student Suicide Case
बेटे की मौत पर पिता का छलका दर्द (ETV Bharat Kota)

कोटा. दादाबाड़ी थाना इलाके में कोचिंग छात्र के सुसाइड का मामला सामने आया था. उसके परिजन बिहार से कोटा पहुंचे. उन्होंने शनिवार को तहरीर दी और 17 वर्षीय छात्र ऋषित का पोस्टमार्टम पुलिस ने करवाया है. उसके पिता डॉ. प्रदीप राघव मूलरूप से झारखंड के देवघर निवासी हैं, जबकि बिहार के भागलपुर यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं. उन्हें पुलिस ने शव सौंप दिया, जिसके बाद परिजनों ने कोटा में ही अंतिम संस्कार किया.

डॉ. राघव का कहना है कि शव को करीब 5 दिन हो गए और काफी स्मेल आ रही है. इसके चलते बिहार ले जाना संभव नहीं है. पिता ने मलाल जताया कि 2 महीने पहले वे ऋषित को साथ ले जाते तो यह दिन देखने को नहीं मिलता और ऋषित उनके साथ होता. साथ ही उन्होंने इस मामले में हॉस्टल संचालक की गलती बताई है.

पढ़ें : कोटा में मेडिकल एंट्रेंस NEET UG की तैयारी कर रहे छात्र ने की खुदकुशी - STUDENT SUICIDE

22 जून से नहीं उठा रहा था फोन : डॉ. राघव का कहना है कि ऋषित कुमार 2 साल पहले कोटा आया था. वह भाई हर्षित के साथ रहता था. हर्षित वापस पटना जाकर पढ़ने लग गया था. ऐसे में अकेला ऋषित ही कोटा में रहता था. मेरी लास्ट टाइम बात सुबह 22 जून को हुई थी, तब उसने कहा था कि वह जिम से आया है और अब ब्रेकफास्ट करने जा रहा है. ऋषित की मदर आरती शिक्षिका हैं और प्रशिक्षण के लिए कहीं गईं थीं. उन्होंने मुझे 22 जून को बताया कि ऋषित फोन नहीं उठा रहा है. इसके बाद में लगातार फोन करता रहा, उसने 26 जून तक फोन नहीं उठाया. इसके बाद हॉस्टल संचालक को मैंने कहा, तब इस घटना का पता चला.

हॉस्टल संचालक ने नहीं निभाई जिम्मेदारी : अनय रेजिडेंसी के नाम से यह हॉस्टल संचालित हो रहा है. इसे आशीष बिरला चला रहे हैं. इस हॉस्टल में 50 कमरे हैं और 2 दर्जन से ज्यादा बच्चे वर्तमान में रह रहे हैं. डॉ. राघव का कहना है कि हॉस्टल संचालक ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभाई, क्योंकि पुलिस ने मुझे बताया कि बच्चे की मौत 42 से 48 घंटे पहले हुई थी. ऐसे में हॉस्टल में नाइट अटेंडेंस भी नहीं ली गई. इसके अलावा बच्चों ने दो दिन से खाना नहीं खाया. यह जानकारी भी हॉस्टल संचालक को नहीं ली. हॉस्टल स्टाफ समय से अपना काम करता तो 26 जून को ही इस घटना का पता चल जाता.

2 महीने पहले वापस ले जाने के लिए आ गए थे पिता : ऋषित के पिता डॉ. राघव का कहना है कि 2 महीने पहले उन्हें एलन कोचिंग संस्थान से शिकायत मिली थी कि ऋषित सात-आठ दिन से पढ़ने नहीं जा रहा है. ऐसे में कोटा आए थे और वापस ले जा रहे थे, क्योंकि जिस उद्देश्य से ऋषित को कोटा रखा था वह पूरा नहीं हो रहा था. हालांकि, ऋषित ने उनसे आग्रह किया और कहा कि मेरा कोर्स पूरा हो जाने दीजिए, तब हमने उसकी बातों में आकर यहां पर छोड़ दिया. मैं अपने बेटे के प्रेम में आकर ही उसे यहां पर छोड़कर गया था. ऐसा नहीं होता तो यह हादसा भी नहीं होता.

पेरेंट्स को सलाह- तन्हा नहीं छोड़ें : पिता ने कहा कि अब हॉस्टल संचालक या जिला प्रशासन से आरोप प्रत्यारोप करने में कोई मतलब नहीं रह जाता है, क्योंकि मेरा सब कुछ अब खो गया है. मेरा बेटा पढ़ाई में काफी इंटेलिजेंट था. वह स्कूल का टॉपर भी रहा है. मैं कोटा आने वाले सभी अभिभावकों को सलाह देता हूं कि बच्चों को तन्हा नहीं छोड़ा जाए. अभिभावक को कोटा रहना चाहिए. बच्चे अनमोल अनमैच्योर होते हैं. जब मैच्योर हो जाएं, तभी उन्हें छोड़ा जा सकता है. अनमैयोर होने पर भटकाव उनके जीवन में आ सकता है.

कोटा. दादाबाड़ी थाना इलाके में कोचिंग छात्र के सुसाइड का मामला सामने आया था. उसके परिजन बिहार से कोटा पहुंचे. उन्होंने शनिवार को तहरीर दी और 17 वर्षीय छात्र ऋषित का पोस्टमार्टम पुलिस ने करवाया है. उसके पिता डॉ. प्रदीप राघव मूलरूप से झारखंड के देवघर निवासी हैं, जबकि बिहार के भागलपुर यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं. उन्हें पुलिस ने शव सौंप दिया, जिसके बाद परिजनों ने कोटा में ही अंतिम संस्कार किया.

डॉ. राघव का कहना है कि शव को करीब 5 दिन हो गए और काफी स्मेल आ रही है. इसके चलते बिहार ले जाना संभव नहीं है. पिता ने मलाल जताया कि 2 महीने पहले वे ऋषित को साथ ले जाते तो यह दिन देखने को नहीं मिलता और ऋषित उनके साथ होता. साथ ही उन्होंने इस मामले में हॉस्टल संचालक की गलती बताई है.

पढ़ें : कोटा में मेडिकल एंट्रेंस NEET UG की तैयारी कर रहे छात्र ने की खुदकुशी - STUDENT SUICIDE

22 जून से नहीं उठा रहा था फोन : डॉ. राघव का कहना है कि ऋषित कुमार 2 साल पहले कोटा आया था. वह भाई हर्षित के साथ रहता था. हर्षित वापस पटना जाकर पढ़ने लग गया था. ऐसे में अकेला ऋषित ही कोटा में रहता था. मेरी लास्ट टाइम बात सुबह 22 जून को हुई थी, तब उसने कहा था कि वह जिम से आया है और अब ब्रेकफास्ट करने जा रहा है. ऋषित की मदर आरती शिक्षिका हैं और प्रशिक्षण के लिए कहीं गईं थीं. उन्होंने मुझे 22 जून को बताया कि ऋषित फोन नहीं उठा रहा है. इसके बाद में लगातार फोन करता रहा, उसने 26 जून तक फोन नहीं उठाया. इसके बाद हॉस्टल संचालक को मैंने कहा, तब इस घटना का पता चला.

हॉस्टल संचालक ने नहीं निभाई जिम्मेदारी : अनय रेजिडेंसी के नाम से यह हॉस्टल संचालित हो रहा है. इसे आशीष बिरला चला रहे हैं. इस हॉस्टल में 50 कमरे हैं और 2 दर्जन से ज्यादा बच्चे वर्तमान में रह रहे हैं. डॉ. राघव का कहना है कि हॉस्टल संचालक ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभाई, क्योंकि पुलिस ने मुझे बताया कि बच्चे की मौत 42 से 48 घंटे पहले हुई थी. ऐसे में हॉस्टल में नाइट अटेंडेंस भी नहीं ली गई. इसके अलावा बच्चों ने दो दिन से खाना नहीं खाया. यह जानकारी भी हॉस्टल संचालक को नहीं ली. हॉस्टल स्टाफ समय से अपना काम करता तो 26 जून को ही इस घटना का पता चल जाता.

2 महीने पहले वापस ले जाने के लिए आ गए थे पिता : ऋषित के पिता डॉ. राघव का कहना है कि 2 महीने पहले उन्हें एलन कोचिंग संस्थान से शिकायत मिली थी कि ऋषित सात-आठ दिन से पढ़ने नहीं जा रहा है. ऐसे में कोटा आए थे और वापस ले जा रहे थे, क्योंकि जिस उद्देश्य से ऋषित को कोटा रखा था वह पूरा नहीं हो रहा था. हालांकि, ऋषित ने उनसे आग्रह किया और कहा कि मेरा कोर्स पूरा हो जाने दीजिए, तब हमने उसकी बातों में आकर यहां पर छोड़ दिया. मैं अपने बेटे के प्रेम में आकर ही उसे यहां पर छोड़कर गया था. ऐसा नहीं होता तो यह हादसा भी नहीं होता.

पेरेंट्स को सलाह- तन्हा नहीं छोड़ें : पिता ने कहा कि अब हॉस्टल संचालक या जिला प्रशासन से आरोप प्रत्यारोप करने में कोई मतलब नहीं रह जाता है, क्योंकि मेरा सब कुछ अब खो गया है. मेरा बेटा पढ़ाई में काफी इंटेलिजेंट था. वह स्कूल का टॉपर भी रहा है. मैं कोटा आने वाले सभी अभिभावकों को सलाह देता हूं कि बच्चों को तन्हा नहीं छोड़ा जाए. अभिभावक को कोटा रहना चाहिए. बच्चे अनमोल अनमैच्योर होते हैं. जब मैच्योर हो जाएं, तभी उन्हें छोड़ा जा सकता है. अनमैयोर होने पर भटकाव उनके जीवन में आ सकता है.

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