कोटा : प्रदेश में खाद्य सुरक्षा को लेकर लगातार अलग-अलग तरह के अभियान राज्य सरकार के निर्देश पर चलाए जा रहे हैं. इन अभियानों के तहत खाद्य पदार्थों के नमूने भी लिए जा रहे हैं. इसके अलावा रूटीन में भी नमूने लिए जाते रहे हैं. प्रदेश में पुराने 33 जिलों के अनुसार 92 फूड सेफ्टी ऑफिसर्स (FSO) तैनात किए गए हैं, जिनका रिपोर्ट कार्ड राज्य सरकार ने तैयार करवाया है. इसके अनुसार कोटा के 2 फूड सेफ्टी ऑफिसर नमूने लेने के मामले में टॉप 10 में शामिल हुए हैं. इसके साथ ही नमूने फेल होने के प्रतिशत के मामले में कोटा में तैनात तीनों फूड सेफ्टी ऑफिसर अव्वल रहे. खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को हर महीने 10 सैंपल लेने हैं. इसके अनुसार अप्रैल से लेकर अक्टूबर महीने तक 70 के आसपास नमूने इन्हें लेने थे, लेकिन 6 खाद्य सुरक्षा अधिकारी इतने भी नमूने नहीं ले पाए हैं.
हम रैंडम सेंपलिंग करते हैं और कोशिश भी यही करते हैं कि जहां पर ज्यादा गड़बड़ी या मिलावट की शिकायत है, वहां पर नमूने लिए जाएं, क्योंकि उन्हीं लोगों को मिलावट करने से रोकना है. हमने यह निर्देश सभी फूड सेफ्टी ऑफिसर को दिए हैं कि खाद्य पदार्थों के नमूनों की संख्या भी बढ़ाई जाए. यही नहीं सैंपल फेल के आंकड़े को लेकर भी सभी फूड सेफ्टी ऑफिसर्स को निर्देशित किया है. सैंपल उठा लेने से कोई नहीं डरेगा, जब सैंपल फेल होंगे और उनके खिलाफ एडीएम या फिर सीजेएम कोर्ट में मामले को लेकर जाएंगे, जहां से उनके खिलाफ होगी, तब जाकर ही मिलावट रुकेगी. : इकबाल खान, कमिश्नर, फूड सेफ्टी और ड्रग कंट्रोल
अलवर के एफएसओ प्रदेश में अव्वल : नमूने फेल होने के प्रतिशत की बात की जाए तो अलवर के फूड सेफ्टी ऑफिसर केशव कुमार गोयल पूरे प्रदेश में अव्वल रहे हैं. उन्होंने 127 नमूने लिए थे, इनमें से 52 फ़ीसदी यानी 66 नमूने फेल हो गए हैं, जबकि दूसरे नंबर पर कोटा के फूड सेफ्टी ऑफिसर संदीप अग्रवाल रहे हैं. उन्होंने 137 सैंपल लिए हैं, जिनमें से 47 फीसदी यानी 64 नमूने फेल हुए हैं. नमूने फेल होने के प्रतिशत के मामले में कोटा में तैनात तीनों फूड सेफ्टी ऑफिसर टॉप 10 में ही शामिल रहे हैं, जबकि अन्य जिलों से केवल एक-एक फूड सेफ्टी ऑफिसर हैं. कोटा में तैनात चंद्रवीर सिंह जादौन ने 133 नमूने लिए, इनमें से 37 फ़ीसदी यानी 49 नमूने फेल हुए हैं. इसी तरह से नितेश गौतम ने 105 नमूने लिए और 34 फीसदी यानी 36 नमूने फेल हो गए है. प्रदेश का सबसे बड़ा जिला जयपुर होने के बावजूद भी यहां का एक भी फूड सेफ्टी ऑफिसर टॉप 10 में शामिल नहीं है.
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चूरू के एफएसओ के केवल चार फीसदी नमूने फेल : इसी तरह से बात की जाए तो नमूने लेने के बाद फेल होने के प्रतिशत में सबसे पीछे की तो चूरू के फूड सेफ्टी ऑफिसर निर्मल कुमार महर्षि हैं. उन्होंने 92 नमूने लिए, लेकिन केवल चार ही फेल हुए हैं. यानी 4 फीसदी के आसपास ही नमूने फेल हुए हैं. इसी तरह से भरतपुर के विश्वबंधु गुप्ता ने 95 नमूने लिए, लेकिन केवल 6 नमूने ही फेल हुए हैं. यह 6.32 प्रतिशत के आसपास ही है. वहीं, तीसरे नंबर पर धौलपुर के पदम सिंह परमार ने 139 नमूने लिए और महज 9 नमूने फेल हुए हैं. करौली के विजय सिंह के 153 में से 10 और पाली के आनंद कुमार के 55 में से चार नमूने फेल हुए हैं.
सबसे ज्यादा नमूने हनुमानगढ़ में : सबसे ज्यादा नमूने लेने के मामले में हनुमानगढ़ के सुदेश कुमार गर्ग सबसे आगे रहे हैं. उन्होंने 176 नमूने लिए हैं. इनमें से 42 फेल हुए हैं. दूसरे नंबर पर करौली के विजय सिंह ने 153, हनुमानगढ़ के रफीक मोहम्मद ने 151, अजमेर के अजय मोयल ने 147 और झुंझुनू के महेंद्र चतुर्वेदी ने 140 नमूने लिए हैं. प्रदेश में सबसे कम नमूने बूंदी के मोती लाल कुम्हार ने महज 43 सैंपल लिए हैं. पाली के आनंद कुमार ने 55 सैंपल खाद्य पदार्थों के उठाए हैं. इसके बाद नागौर के विशाल मित्तल ने 62, बाड़मेर के सुरेश चंद्र शर्मा और दौसा के मदनलाल गुर्जर ने 66-66 नमूने लिए हैं.
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10 सैंपल प्रतिमाह लेने हैं : कोटा के एफएसओ संदीप अग्रवाल का कहना है कि लक्ष्य यही रहता है कि वही सैंपल लिए जाएं जो फेल हों, ताकि मिलावट को रोक जा सके. ऐसे में हमारे ज्यादातर सैंपल फेल होते हैं. सैंपल ज्यादा फेल होने का मुख्य कारण भी यही है कि लगातार टीम सक्रिय रहती है. कहीं से भी शिकायत आती है तो कार्रवाई करते हैं. साथ ही फील्ड में भी लोगों को एक्टिवेट किया हुआ है, जिनसे सूचना मिलती है और कार्रवाई की जाती है. उच्च अधिकारियों के दिशा निर्देश की भी पालन करते हैं, इसीलिए सैंपल कलेक्शन दर भी ज्यादा है. एक्ट में 10 सैंपल प्रतिमाह लेने का प्रावधान किया हुआ है, हालांकि कोटा के सैंपल इससे ज्यादा ही रहते हैं.
इससे नहीं होगा सरकार का उद्देश्य पूरा : फूड सेफ्टी ऑफिसर नितेश गौतम का कहना है कि राजस्थान में 9100 सैंपल उन्होंने लिए हैं, जिसमें से कोटा में 375 नमूने लिए गए हैं. राजस्थान में 23 फीसदी सैम्पल फैलियर रेट है तो कोटा में यह 40 फीसदी के आसपास है. कोटा में ज्यादा रेट होने का कारण यह है कि सैंपल लेने के पहले हम उसकी क्वालिटी देखते हैं. संदेह के आधार पर यह तय करते हैं कि यह फेल हो सकता है, तभी उस नमूने को उठाया जाता है. इस आधार पर हम सैंपलिंग कर रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा फेल होने वाले नमूने उठाते हैं, क्योंकि जो नमूने पास हो जाएं उन्हें लेने से सरकार और विभाग का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो रहा है.
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