अररिया : बिहार में सीमांचल का इलाका एनडीए के लिए काफी महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सीमांचल में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. राष्ट्रीय जनता दल से छीनी हुई सीट को बीजेपी बरकरार रखना चाहती है. प्रधानमंत्री के बाद जेपी नड्डा किले को और मजबूत करना चाहते हैं. तभी तो उन्होंने आज अररिया से हुंकार भरी. आरजेडी को निशाने पर लिया.
सीमांचल के लिए NDA की फुलप्रूफ प्लानिंग : सीमांचल इलाके का सामरिक महत्व है. कहा जाता है कि सीमांचल की सियासत कई माइनों में देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करती है. भारतीय जनता पार्टी सीमांचल के किले को फुलप्रूफ बनाना चाहती है. फिलहाल एनडीए के पास सीमांचल में चार में से तीन सीटे हैं. पूर्णिया और कटिहार जेडीयू के पास है तो अररिया बीजेपी के पास है.
प्रदीप सिंह बनाम शाहनवाज आलम : तीसरे चरण में अररिया में चुनाव होने हैं. ऐसे में भाजपा अपना सीटिंग सीट बचाना चाहती है. अररिया से प्रदीप सिंह सांसद हैं और वह अति पिछड़ा समुदाय से आते हैं. प्रदीप सिंह का मुकाबला तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलम से है. शाहनवाज आलम राष्ट्रीय जनता दल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
तस्लीमुद्दीन का गढ़ है अररिया : अररिया लोकसभा सीट दिवंगत तस्लीमुद्दीन का गढ़ माना जाता है. इसलिए उनके छोटे बेटे पर लालू ने दांव लगाया है. शाहनवाज आलम जोकीहाट से विधायक हैं और पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं.
RJD से BJP ने छीनी है सीट : अररिया लोकसभा सीट सामरिक महत्व वाला माना जाता है. नेपाल से अररिया जिले की सीमा लगती है. अररिया में 40 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की मानी जाती है. फिलहाल अररिया सीट बीजेपी के पास जरूर है, लेकिन यह याद रखना होगा कि अररिया सीट को बीजेपी ने राष्ट्रीय जनता दल से छीना था.
पहले मोदी आए अब नड्डा : सीमांचल में अररिया ही ऐसी लोकसभा सीट है, जिस पर भाजपा का कब्जा है. भारतीय जनता पार्टी कब्जे को बरकरार रखना चाहती है. लिहाजा पीएम मोदी ने अररिया में चुनाव प्रचार किया था और अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अंतिम कील ठोकने पहुंच गए.
4 बार BJP ने जमाया है कब्जा : अररिया में 7 मई को मतदान होने हैं. भाजपा तीसरी बार अररिया सीट को जीतने के लिए जद्दोजहद कर रही है. अररिया लोकसभा सीट बीजेपी चार बार जीत चुकी है. 1998 में रामजी दास ऋषि देव 2004 में सुखदेव पासवान 2009 में प्रदीप कुमार सिंह और फिर 2019 में भी प्रदीप कुमार सिंह को जीत हासिल हुई है.
1967 में अस्तित्व में आया अररिया : 1967 के परिसीमन से पहले अररिया लोकसभा सीट पूर्णिया का हिस्सा हुआ करता था, लेकिन परिसीमन के बाद अररिया अलग लोकसभा सीट के रूप में बना. परिसीमन के बाद पहली बार अररिया में 1967 में चुनाव हुए और कांग्रेस पार्टी के तुलमोहन राम सांसद बने. कांग्रेस पार्टी चार बार अररिया सीट को जीत चुकी है. 2014 में पहली बार राष्ट्रीय जनता दल को अररिया लोकसभा सीट पर जीत हासिल हुई थी और मोहम्मद तस्लीमुद्दीन विजयी हुए थे. 2018 में भी मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के मौत के बाद चुनाव हुए और उनके बड़े बेटे सरफराज आलम राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते.
तस्लीमुद्दीन परिवार Vs प्रदीप कुमार सिंह : मोहम्मद तस्लीमुद्दीन ने 2014 में भाजपा नेता प्रदीप कुमार सिंह को हराया था. तस्लीमुद्दीन लगभग 1,46,000 वोटों से चुनाव जीते थे. तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद जब 2018 में दोबारा चुनाव हुआ तो 61000 से अधिक वोटों से सरफराज आलम चुनाव जीते. वहीं 2019 के चुनाव में भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने सरफराज आलम को पटखनी दे दी. प्रदीप कुमार सिंह 1,37,193 वोटों से चुनाव जीतने में कामयाब हुए.
BJP और RJD में शह मात का खेल : अररिया लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी अधिक है. आंकड़ों के मुताबिक 42.9% मुस्लिम आबादी है, तो हिंदुओं की आबादी 56.6% के आसपास है. अररिया लोकसभा सीट पर भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल के बीच शह मात का खेल पिछले कुछ चुनाव से चल रहा है. अररिया लोकसभा सीट हर हाल में भाजपा जीतना चाहती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अररिया में चुनावी सभा किया और अब जेपी नड्डा किले को मजबूत करने में जुट गए.
'एंटी इनकंबेंसी फैक्टर की संभावना से इनकार नहीं' : राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर संजय कुमार का मानना है कि सीमांचल में भाजपा एक सीट जीती हुई है और उसे बरकरार रखना चाहेगी. भाजपा को जहां अति पिछड़ों पर भरोसा है, वहीं राष्ट्रीय जनता दल को मुस्लिम वोटरों से उम्मीद है. प्रदीप कुमार सिंह दो बार सांसद रह चुके हैं और सरल स्वभाव के हैं. उनका अधिक समय क्षेत्र में बीतता है. दो बार सांसद रहने के चलते इनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
''जहां तक शाहनवाज आलम का सवाल है तो वह पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे. शाहनवाज आलम को बड़े भाई सरफराज आलम के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. सरफराज आलम भी एआईएमआईएम की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. अनुभव के मामले में शाहनवाज आलम कमजोर दिख रहे हैं, लेकिन माय की ताकत उनके साथ है. शाहनवाज आलम को तस्लीमुद्दीन का पुत्र होने का स्वाभाविक फायदा मिल सकता है.''- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक
ये भी पढ़ें :-
'रिश्वतखोर, जंगलराज, दलदल..' अररिया में जेपी नड्डा ने बताई RJD की नई परिभाषा - JP Nadda