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जानिए क्यों मौसम विज्ञानियों का दावा हो रहा फेल; क्या अगस्त में होगी जोरदार बारिश - UP Weather Latest Update

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 15, 2024, 1:12 PM IST

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है ला-नीना का जो असर जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त के पहले सप्ताह से सक्रिय होना था, वह अब एक महीने देरी से होगा. इससे सामान्य से अधिक वर्षा का मौसम भी देर से ही बनेगा.

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ला-नीनो और अल नीनो के पैटर्न में बदलाव. (फोटो क्रेडिट; मौसम विभाग)

कानपुर: मौसम वैज्ञानिक लगातार इस बात का दावा कर रहे थे कि इस मानसून सीजन में औसत से भी अधिक बारिश होगी. कानपुर मंडल में 25 जून के आसपास से मानसून सीजन की गतिविधियां शुरू जरूर हुई मगर 15 जुलाई तक बहुत अधिक बारिश नहीं हुई. इससे लोगों को एक बार फिर से दिन में 35 डिग्री से अधिक तापमान वाली गर्मी महसूस करनी पड़ रही है. रात में भी तापमान 25 डिग्री से अधिक तक पहुंच जा रहा है, जिससे लोग बुरी तरह परेशान हैं.

अब मौसम वैज्ञानिक बता रहे हैं कि समुद्र की सतह पर जुलाई के पहले सप्ताह के बाद भी गर्म हवा का मौसम बनने से तेज बारिश लाने वाला ला-नीना की स्थितियां पूरी तरीके से नहीं बन पा रही हैं. ऐसे में जब तक समुद्र की सतह पर मौजूद हवा का तापमान कम नहीं होगा, तब तक कानपुर समेत उत्तर भारत में तेज भारत की शुरुआत नहीं हो सकेगी.

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है ला-नीना का जो असर जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त के पहले सप्ताह से सक्रिय होना था, वह अब एक महीने देरी से होगा. इससे सामान्य से अधिक वर्षा का मौसम भी देर से ही बनेगा.

जानिए क्या है ला नीना और अल नीनो प्रभाव: मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन सुनील पांडे ने बताया कि ला-नीना और अल नीनो प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलाव यानी पैटर्न का नाम है. अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला-नीना के चलते ठंडा. दोनों मौसम की स्थितियां आमतौर पर 9 से 12 महीने तक रहती हैं.

अल नीनो के दौरान समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है. यह तापमान सामान्य से चार से पांच डिग्री सेल्सियस तक अधिक हो सकता है जबकि ला नीना में तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है. इसकी वजह से दुनिया भर में बारिश, सर्दी का असर देखने को मिलता है.

किसानों के सामने भी असमंजस की स्थिति: मानसून सीजन से पहले जब मौसम वैज्ञानिक यह बात कह रहे थे कि इस सत्र में औसत से भी अधिक बारिश होगी तो किसान इस बात को लेकर बेहद चिंतित थे कि कहीं उनकी फसल बारिश में डूब ना जाए. लेकिन, जो मौजूदा स्थितियां हैं, उसमें तो वह इस बात से ही परेशान हो गए हैं कि बहुत अधिक गर्मी होने के चलते उनकी फसलें बुरी तरीके से झुलस जा रही हैं.

किसानों का कहना है कि इस समय कद्दू, लौकी, तरोई, भिंडी, परवल समेत अन्य मौसमी सब्जियों पर एक तरीके से ऐसे मौसम की मार पड़ रही है, जिससे उन्हें बचा पाना संभव नहीं है. जबकि मौसम वैज्ञानिक अब इस बात के लिए कह रहे हैं कि किसान सुबह-शाम फसलों में सिंचाई लगातार करते रहें.

ये भी पढ़ेंः फुल फार्म में मानसून: यूपी में आज 11 जिलों में भारी बारिश की संभावना, 23 जिलों में चमकेगी बिजली, जुलाई में उम्मीद से 14% ज्यादा वर्षा

कानपुर: मौसम वैज्ञानिक लगातार इस बात का दावा कर रहे थे कि इस मानसून सीजन में औसत से भी अधिक बारिश होगी. कानपुर मंडल में 25 जून के आसपास से मानसून सीजन की गतिविधियां शुरू जरूर हुई मगर 15 जुलाई तक बहुत अधिक बारिश नहीं हुई. इससे लोगों को एक बार फिर से दिन में 35 डिग्री से अधिक तापमान वाली गर्मी महसूस करनी पड़ रही है. रात में भी तापमान 25 डिग्री से अधिक तक पहुंच जा रहा है, जिससे लोग बुरी तरह परेशान हैं.

अब मौसम वैज्ञानिक बता रहे हैं कि समुद्र की सतह पर जुलाई के पहले सप्ताह के बाद भी गर्म हवा का मौसम बनने से तेज बारिश लाने वाला ला-नीना की स्थितियां पूरी तरीके से नहीं बन पा रही हैं. ऐसे में जब तक समुद्र की सतह पर मौजूद हवा का तापमान कम नहीं होगा, तब तक कानपुर समेत उत्तर भारत में तेज भारत की शुरुआत नहीं हो सकेगी.

मौसम वैज्ञानिकों का कहना है ला-नीना का जो असर जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त के पहले सप्ताह से सक्रिय होना था, वह अब एक महीने देरी से होगा. इससे सामान्य से अधिक वर्षा का मौसम भी देर से ही बनेगा.

जानिए क्या है ला नीना और अल नीनो प्रभाव: मौसम वैज्ञानिक डॉ. एसएन सुनील पांडे ने बताया कि ला-नीना और अल नीनो प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलाव यानी पैटर्न का नाम है. अल नीनो की वजह से तापमान गर्म होता है और ला-नीना के चलते ठंडा. दोनों मौसम की स्थितियां आमतौर पर 9 से 12 महीने तक रहती हैं.

अल नीनो के दौरान समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है. यह तापमान सामान्य से चार से पांच डिग्री सेल्सियस तक अधिक हो सकता है जबकि ला नीना में तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है. इसकी वजह से दुनिया भर में बारिश, सर्दी का असर देखने को मिलता है.

किसानों के सामने भी असमंजस की स्थिति: मानसून सीजन से पहले जब मौसम वैज्ञानिक यह बात कह रहे थे कि इस सत्र में औसत से भी अधिक बारिश होगी तो किसान इस बात को लेकर बेहद चिंतित थे कि कहीं उनकी फसल बारिश में डूब ना जाए. लेकिन, जो मौजूदा स्थितियां हैं, उसमें तो वह इस बात से ही परेशान हो गए हैं कि बहुत अधिक गर्मी होने के चलते उनकी फसलें बुरी तरीके से झुलस जा रही हैं.

किसानों का कहना है कि इस समय कद्दू, लौकी, तरोई, भिंडी, परवल समेत अन्य मौसमी सब्जियों पर एक तरीके से ऐसे मौसम की मार पड़ रही है, जिससे उन्हें बचा पाना संभव नहीं है. जबकि मौसम वैज्ञानिक अब इस बात के लिए कह रहे हैं कि किसान सुबह-शाम फसलों में सिंचाई लगातार करते रहें.

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