लखनऊ : माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की मौत भले ही जेल में हार्टअटैक से होनी हुई बताई गई है, लेकिन उसके बेटे उमर अंसारी ने पिता मुख्तार की मौत को हत्या बताया है. इसके साथ ही आरोप लगाया है ब्रजेश सिंह व त्रिभुवन सिंह पर. हालांकि, यह पहली बार नहीं होगा जब ब्रजेश सिंह पर मुख्तार की हत्या करवाने या फिर उसकी कोशिश करने का आरोप लगा हो. इससे पहले भी आरोप लगा था कि ब्रजेश सिंह के गुर्गों ने मुख्तार अंसारी पर सैकड़ों गोलियां दागीं. मुख्तार की किस्मत थी कि वह इस हमले में बच गया और बन गया यूपी का माफिया डॉन. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे और क्यों शुरू हुई मुख्तार व ब्रजेश सिंह के बीच अदावत. दोनों की दुश्मनी के बीच त्रिभुवन सिंह कि एंट्री कैसे हुई?
ब्रजेश सिंह पर लगा आरोप : वर्ष 2001 में यूपी में पंचायत चुनाव चल रहे थे. हर जिले में नेता और माफिया छोटी विधानसभा कहे जाने वाले पंचायत चुनाव को जीतना चाहते थे, इसी वजह से हर तरफ टेंशन बनी हुई थी. पूर्वांचल में दो गुट अपने-अपने लोग पंचायत चुनाव में विजेता होना देखना चाहते थे, इसमें एक तब तक पूर्वांचल का डॉन बन चुका मुख्तार था तो दूसरी ओर मुख्तार के सामने पहाड़ की तरह खड़ा ब्रजेश सिंह और इसी पंचायत चुनाव की टशन ने पूर्वांचल में इतनी गोलियों की बारिश करवा दी, जिसकी आवाज आज तक गूंज रही है.
ट्रक से निकलकर बदमाशों ने की थी फायरिंग : तारीख 15 जुलाई 2001, गाजीपुर जिले में मोहम्मदाबाद का उसरी चट्टी गांव, जहां मुख्तार अंसारी का काफिला एंट्री कर रहा था. रास्ते में रेलवे फाटक था, बस जैसे ही रेलवे लाइन काफिले ने पार की थी कि सामने एक ट्रक ने काफिले को रोक लिया. गाड़ियों ने ब्रेक मारा गाड़ी में बैठे मुख्तार और उसके गुर्गे अस्त व्यस्त हो गए और जब तक संभलते तब तक ट्रक से निकलकर कई बदमाशों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. ऐसा पहली बार था जब मुख्तार पर इस कदर फायरिंग हो रही थी. उसके गुर्गों ने भी मोर्चा संभाला, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. हमले में मुख्तार के एक गनर समेत तीन लोगों की मौत हो गई और मुख्तार अंसारी गंभीर रूप से घायल हो गया. किसी तरह मुख्तार के लोग उसे वहां से निकालकर किसी सुरक्षित जगह ले गए. मुख्तार अंसारी यह तो भलीभांति जान चुका था कि ये गुर्गे ब्रजेश सिंह के हैं और उस पर हमला करने की हिम्मत सिर्फ उसी में है. लिहाजा उसने ब्रजेश सिंह व त्रिभुवन समेत 14 लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई. दोनों की दुश्मनी दशकों पुरानी थी. आइए जानते हैं कि इन दोनों के बीच की ये अदावत कैसे शुरू हुई.
कैसे शुरू हुई ब्रजेश और मुख्तार की दुश्मनी : 80 के दशक में जब वाराणसी का अरुण सिंह उर्फ ब्रजेश सिंह अपने पिता के हत्यारों की हत्या के आरोप में जेल गया था, उस दौरान उसकी मुलाकात जेल में ही बंद त्रिभुवन सिंह से हुई. त्रिभुवन सिंह भी अपने भाई के हत्यारों की हत्या के आरोप में जेल गया था. ब्रजेश सिंह को त्रिभुवन सिंह अपना जैसा ही लगा था, ऐसे में दोनों ने दोस्ती कर ली. त्रिभुवन सिंह रेलवे में लोहे के स्क्रैप व रेत की अवैध ठेकेदारी करने वाले साहिब सिंह के गैंग का सदस्य था. ऐसे में उसने ब्रजेश को उसके साथ काम करने के लिए राजी कर लिया. ब्रजेश ने भी यह सोचकर साहिब सिंह के गैंग को ज्वॉइन कर लिया कि घटना वह बाहर करके आया है, उससे बचने के लिए उसे किसी गैंग की जरूरत होगी. अब साहिब गैंग के साथ ब्रजेश सिंह था तो उसका सबसे प्रतिद्वंद्वी गैंग मकनू गैंग के पास था शार्प शूटर मुख्तार अंसारी. बस यही से शुरू हुई पूर्वांचल के दो भविष्य के माफिया के बीच अदावत.
साहिब सिंह की हुई थी हत्या : साहिब गैंग के पास थे त्रिभुवन व ब्रजेश सिंह और मकनू के पास मुख्तार अंसारी. ऐसे में बालू खनन के ठेके, शराब की तस्करी और लोहे के स्क्रैप समेत अन्य ठेकों को लेकर गैंगवार अब चरम सीमा पर थी. पेशी के दौरान साहिब सिंह की कोर्ट के बाहर गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. हत्या के पीछे मुख्तार अंसारी व साधु सिंह का हाथ होना बताया गया. जिसके बाद ब्रजेश सिंह ने साहिब सिंह गैंग की कमान खुद के हाथों में ली और हत्या का बदला लेने के लिए मुख्तार और साधु की हत्या की साजिश रचने लगा. उसे पता चला कि साधु सिंह जिला अस्पताल गाजीपुर में भर्ती है. ब्रजेश सिंह पर आरोप लगा की फिल्मी स्टाइल में पुलिस की वर्दी पहनकर अस्पताल में घुसा और साधु को गोलियों से भून दिया. साधु की मौत के बाद मकनू गैंग की कमान मुख्तार अंसारी के हाथ आ गई और फिर आए दिन दोनों के बीच होने वाली गैंगवार से पूर्वांचल की धरती रक्तरंजित होने लगी.
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90 का दशक आधा बीत चुका था. इन वर्षों में मुख्तार के कई ठेकों पर ब्रजेश सिंह का कब्जा हो गया. ब्रजेश सिंह हर उस ठेके पर अपना हाथ रखने लगा, जो कभी मुख्तार एंड गैंग का हुआ करता था. ब्रजेश सिंह से लोहा लेने के लिए मुख्तार को जरूरत थी राजनीतिक संरक्षण की, उसने 1995 में कम्यूनिस्ट पार्टी से विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन, हार गया. 1996 में बसपा से लड़ा और बन गया विधायक. विधानसभा पहुंचते ही तत्कालीन सीएम मायावती ने उसे मजबूत सुरक्षा दे दी. ऐसे में अब मुख्तार के पास सिर्फ हथियारों की ही नहीं बल्कि सत्ता की भी ताकत थी, जिससे वह ब्रजेश सिंह को दबाने में जुट गया. ब्रजेश सिंह के हाथों से एक बार फिर सभी ठेके जाने लगे, उसका इन वर्षों में बनाया गया रुतबा कम होने लगा, एक एक कर उसके गुर्गे भी मारे जाने लगे. ब्रजेश सिंह पर मुख्तार अंसारी पर 15 जुलाई 2001 को उसरी चट्टी पर हमला कराने का आरोप लगा. हालांकि, वह जिंदा बच गया. इसी मामले में मुख्तार अंसारी ने ब्रजेश सिंह व त्रिभुवन सिंह के खिलाफ मुकदमा लिखवाया और इस केस में मुख्तार वादी व गवाह दोनों थे.
मुख्तार के डर से ब्रजेश जेल गया : उसरी चट्टी हमले में मुख्तार जिंदा बच गया, जो ब्रजेश सिंह के लिए खतरे की घंटी थी. एफआईआर दर्ज होने के बाद ब्रजेश अंडरग्राउंड हो गया, जिस पर पुलिस ने उसे पांच लाख इनामिया घोषित कर दिया. हालांकि, ब्रजेश को पता था कि वह ज्यादा दिन तक छिपा नहीं रह सकता है और एक ना एक दिन मुख्तार उसे ढूंढ ही लेगा. लिहाजा उसने जेल को ही अपने लिए सबसे सुरक्षित स्थान समझते हुए 2008 को ओडिशा में खुद को गिरफ्तार करवा दिया. ब्रजेश सिंह के परिवार के लोग धीरे-धीरे राजनीति में उतरने लगे. भतीजे और पत्नी को विधायक बनवाया और खुद जेल में रहते एमएलसी बना. वर्तमान में ब्रजेश सिंह को मजबूत माना जाता है, लिहाजा मुख्तार अंसारी के परिवार को शक है कि उनके पिता मुख्तार अंसारी को जेल में स्लो प्वाइजन देकर मरवा दिया है.