शिमला: डिजिटल डिजिटल अरेस्ट साइबर ठगी का एक नया तरीका है. साइबर ठग धोखाधड़ी के लिए डिजिटल अरेस्ट स्कैम को अंजाम दे रहे हैं. ठग खुद को ईडी, कस्टम, सीबीआई, एनआईए का बड़ा अधिकारी बताकर डराते हैं. वो लोगों को उनके आधार कार्ड, बैंक खाते, पैन कार्ड या किसी दूसरे अन्य दस्तावेज का गैर कानूनी और देश विरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल होने का डर दिखाते हैं. लोगों को गिरफ़्तारी का डर दिखाते हैं .
ठग आपको पूरी तरह से डराने के बाद स्काइप या फिर व्हाट्स एप के जरिए वीडियो कॉल करते हैं. साइबर ठगों के पीछे का बैकग्राउंड थाने, पुलिस स्टेशन, सीबीआई कार्यालय के जैसे ही लगता है. इसे देखकर लोग इन्हें असली पुलिस ऑफिसर ही समझते हैं. इसके बाद ठगों का गैंग बड़ा अधिकारी बनकर बारी बारी आपसे बात करेगा. ठग मोबाइल स्क्रीन शेयरिंग भी करवा सकते हैं, जिसके बाद वे आपके मोबाइल पर होने वाली हर एक एक्टिविटी को आसानी से देख सकते हैं और डिजिटल अरेस्ट के नाम पर आप पर कई घंटों नजर रखते हैं.
डिजिटल अरेस्ट को लेकर क्या कहता है कानून
आखिर डिजिटल अरेस्ट क्या है. इसे लेकर हमने DIG साइबर क्राइम मोहित चावला से बातचीत की. DIG मोहित चावला ने बताया कि, 'भारत के किसी भी कानून में डिजिटल अरेस्ट का प्रावधान नहीं हैं. साइबर ठग लोगों को पुलिस या कस्टम अधिकारी बनकर फोन करते हैं. इसके बाद लोग डरकर ठगों को पैसे भेज देते हैं. इस तरह की घटना अगर आपके साथ होती है तो उसपर भरोसा न करें. डिजिटल अरेस्ट नाम की चीज का कानून में कोई प्रावधान नहीं है .
ऐसे झांसे में लेते हैं शातिर
पुलिस के अनुसार डिजिटल अरेस्ट के मामले में लोगों कई तरह से फंसाया जाता है. जैसे किसी कूरियर का नाम लेकर कि इसमें गलत सामान आया है. कुरियर में ड्रग्स है, जिसकी वजह से आप फंस जाएंगे. आपके बैंक खाते से इस तरह के ट्रांजेक्शन हुए हैं, जो फाइनेंशियल फ्रॉड रिलेटेड हैं. मनी लॉन्ड्रिंग, एनडीपीएस का भय दिखाकर अधिकतर उन लोगों को फंसाया जाता है.
मामला निपटाने के नाम पर होती है पैसों की मांग
लोगों को अपने जाल में पूरी तरह फंसाने के बाद ये ठग ये कहकर पैसों की मांग करते हैं कि अगर आपको इस केस या चंगुल से बाहर आना है तो आपको हमें पैसे देने होंगे इसके बाद मामला दबाकर आपको जांच से बाहर निकाल दिया जाएगा. अपनी जान बचाने के लिए लोग ठगों के खाते में पैसे भेज देते हैं. अगर आपके बैंक खाते में पैसे नहीं हैं, तो आपको लोन दिलवाया जाता है. कई बार उनके पास लोन लेने वाले एप्स नहीं होते हैं, तो उन एप्स को भी डाउनलोड कराया जाता है. कई बार दो से तीन दिन तक डिजिटल अरेस्ट रखा जाता है.
यहां करें शिकायत
डीआईजी मोहित चावला ने कहा कि, 'अगर आपको लगता है कि आप डिजिटल अरेस्ट के नाम पर साइबर ठगी का शिकार हो गए हैं तो आप सबसे पहले नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करें और अपनी शिकायत दर्ज करवाए. ठगी होने के तुरंत बाद साइबर थाने में शिकायत दें. इसके बाद पुलिस स्कैमर्स के बैंक खातों पर रोक लगा देती है. इससे आपका पैसा वापस आने की उम्मीद बढ़ जाती है. हिमाचल प्रदेश में साल 2024 में डिजिटल अरेस्ट के 15 मामले सामने आए हैं. इसमें करीब 6 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया है.'
डिजिटल अरेस्ट का कॉल आने पर क्या करें
कोई फोन करता है तो बिल्कुल विश्वास न करें. सबसे पहले वेरिफाई करें. किसी भी एजेंसी का अधिकारी ज्यादा से ज्यादा समन कर सकते हैं और अपने कार्यालय बुला सकते हैं. आपको डिजिटल अरेस्ट नहीं किया जा सकता इस स्थिति में बिल्कुल भी न घबराएं.
मैसेज का न दें जवाब
भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-एन) की ओर से डिजिटल अरेस्ट से बचने के लिए जारी की गई एडवाइजरी के मुताबिक साइबर ठग डिजिटल अरेस्ट के जाल में फंसाने के लिए आपको फोन कॉल, ई-मेल, मैसेजिंग एप से मैसेज भेजते हैं. इस तरह की किसी कॉल, ई-मेल, मैसेज पर ध्यान न दें. कॉल या वीडियो कॉल पर डिजिटल अरेस्ट के नाम पर ठगी करने वालों के सवालों का जवाब देने में जल्दबाजी न करें. एकदम शांत रहें, उनकी बात को ध्यान से सुनें और अपनी कोई भी पर्सनल डिटेल शेयर न करें. ठगों की फॉन कॉल का स्क्रीनशॉट या वीडियो की रिकॉर्डिंग कर लें, ताकि जरूरत पड़ने पर इसे सबूत के तौर पर पेश किया जा सके. अपने इलेक्ट्रॉनिक गेजेट को किसी के साथ शेयर न करें. अपने फोन में किसी भी तरह का रिमोट एक्सेस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल न करें.