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उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र का किलों ने किया नामकरण, यहां 52 नहीं 300 गढ़ थे, जानें इतिहास

गढ़वाल में गढ़ों की संख्या 52 नहीं 300 थी, इसलिए गढ़वाल का नाम गढ़वाल पड़ा. एचएनबी केंद्रीय विवि में इस पर शोध हो रहा है.

HISTORY OF GARHWAL name
गढ़वाल क्षेत्र का किलों ने किया नामकरण (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 9, 2024, 5:24 PM IST

श्रीनगर: गढ़वाली संस्कृति आज केवल उत्तराखंड में ही नहीं पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इसी बीच हम गढ़वाल के गढ़ों (किला) के बारे में बताने जा रहे हैं. आम तौर पर ये धारणा है कि गढ़वाल में गढ़ों की संख्या 52 रही होगी, लेकिन असल में गढ़वाल में छोटे-बड़े सभी गढ़ों की कुल संख्या 300 के आसपास थी. इनमें जो बड़े गढ़ थे, उनकी संख्या 30 से 32 के आसपास थी. इन मूल गढ़ों के नीचे कार्य करने वाले अधिपतियों के कुल 300 के आसपास गढ़ हुआ करते थे, जिनमें सबसे बड़ा गढ़ चौंदकोट गढ़ था.

गढ़वाल विवि 15 सालों से कर रहा शोध: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि का इतिहास विभाग पिछले 15 सालों से इन खोए हुए गढ़ों के संबंध में शोध कर रहा है. उनके अनुसार गढ़वाल 52 गढ़ों की धरती नहीं, बल्कि 300 गढ़ों की धरती है. एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर का इतिहास और पुरातत्व विभाग अब तक 161 गढ़ों का मूल स्थान खोज चुका है, जबकि अब तक 61 गढ़ों के अवशेष ढूंढ निकाले गए हैं.

गढ़वाल क्षेत्र में 52 नहीं 300 गढ़ थे (video-ETV Bharat)

गढ़ों से राजाओं को कर और अनाज मिलता था: शेष 100 से अधिक अवशेषों की खोज जारी है. प्राचीन धर्मग्रंथों में गढ़वाल को केदारखंड और कुमाऊं को मानसखंड कहा गया है. कालांतर में केदारखंड में राजाओं ने सुरक्षा की रणनीति से गढ़ों या किला की स्थापना की. इन गढ़ों की जिम्मेदारी गढ़पतियों को दे दी गई. गढ़ों से राजाओं को सामरिक मदद सहित कर और अनाज की प्राप्ति होती थी. इन गढ़ों में पूरी बस्ती बसा करती थी.

राजा अजयपाल ने 52 गढ़ों को जीता था: राजा अजयपाल ने 52 गढ़ों को जीतकर साम्राज्य की स्थापना की थी. तब से केदारखंड को गढ़वाल कहा जाने लगा. यहां 8वीं शताब्दी से ब्रिटिश काल तक गढ़ों का काल रहा. गढ़ों को लेकर हमेशा लोगों में उत्सुकता रही है. इसी को देखते हुए वर्ष 2011 में गढ़वाल विवि के इतिहास और पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र रावत ने गढ़ों को खोज निकालने का जिम्मा लिया है. उन्होंने गढ़वाल के गढ़ों पर ही अपनी पीएचडी की है.

गढ़वाल में 300 से अधिक छोटे-बड़े गढ़ रहे: गढ़वाल विवि के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर नागेंद्र रावत ने बताया कि अब तक गढ़वाल में 300 से अधिक छोटे-बड़े गढ़ रहे हैं. इन्हीं गढ़ों के कारण गढ़वाल का नाम गढ़वाल पड़ा. उन्होंने बताया कि अमूमन लोगों के मन ये धारणा है कि गढ़वाल में 52 गढ़ ही थे, लेकिन यहां अब तक 300 गढ़ रह चुके हैं. जो बड़े गढ़ से उनकी संख्या 30 से 32 के बीच थी, जिनके नीचे छोटे गढ़पति आते थे. ये गढ़पति सैन्य चौकियों और टैक्स वसूली का कार्य किया करते थे.

पूरा सिस्टम गढ़ों से करता था कार्य: इन्हीं छोटे गढ़ों के जरिये बड़े गढ़ों की अन्य राज्यों से सैन्य निगरानी भी की जाती थी. ये एक पूरा सिस्टम था जो इन गढ़ों से कार्य किया करता था. ये एक सैन्य रणनीति और आर्थिक रणनीति का हिस्सा थे. उन्होंने बताया कि ये सारे गढ़ ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर थे, जिनसे पूरे इलाके में नजर रखी जाती थी. सैन्य कार्रवाई के लिए पहुंचना अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं था, यहां उस समय के हिसाब से सारी व्यवस्थाएं रहती थी.

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गढ़वाल विवि 15 सालों से कर रहा शोध: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विवि का इतिहास विभाग पिछले 15 सालों से इन खोए हुए गढ़ों के संबंध में शोध कर रहा है. उनके अनुसार गढ़वाल 52 गढ़ों की धरती नहीं, बल्कि 300 गढ़ों की धरती है. एचएनबी केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर का इतिहास और पुरातत्व विभाग अब तक 161 गढ़ों का मूल स्थान खोज चुका है, जबकि अब तक 61 गढ़ों के अवशेष ढूंढ निकाले गए हैं.

गढ़वाल क्षेत्र में 52 नहीं 300 गढ़ थे (video-ETV Bharat)

गढ़ों से राजाओं को कर और अनाज मिलता था: शेष 100 से अधिक अवशेषों की खोज जारी है. प्राचीन धर्मग्रंथों में गढ़वाल को केदारखंड और कुमाऊं को मानसखंड कहा गया है. कालांतर में केदारखंड में राजाओं ने सुरक्षा की रणनीति से गढ़ों या किला की स्थापना की. इन गढ़ों की जिम्मेदारी गढ़पतियों को दे दी गई. गढ़ों से राजाओं को सामरिक मदद सहित कर और अनाज की प्राप्ति होती थी. इन गढ़ों में पूरी बस्ती बसा करती थी.

राजा अजयपाल ने 52 गढ़ों को जीता था: राजा अजयपाल ने 52 गढ़ों को जीतकर साम्राज्य की स्थापना की थी. तब से केदारखंड को गढ़वाल कहा जाने लगा. यहां 8वीं शताब्दी से ब्रिटिश काल तक गढ़ों का काल रहा. गढ़ों को लेकर हमेशा लोगों में उत्सुकता रही है. इसी को देखते हुए वर्ष 2011 में गढ़वाल विवि के इतिहास और पुरातत्व विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र रावत ने गढ़ों को खोज निकालने का जिम्मा लिया है. उन्होंने गढ़वाल के गढ़ों पर ही अपनी पीएचडी की है.

गढ़वाल में 300 से अधिक छोटे-बड़े गढ़ रहे: गढ़वाल विवि के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर नागेंद्र रावत ने बताया कि अब तक गढ़वाल में 300 से अधिक छोटे-बड़े गढ़ रहे हैं. इन्हीं गढ़ों के कारण गढ़वाल का नाम गढ़वाल पड़ा. उन्होंने बताया कि अमूमन लोगों के मन ये धारणा है कि गढ़वाल में 52 गढ़ ही थे, लेकिन यहां अब तक 300 गढ़ रह चुके हैं. जो बड़े गढ़ से उनकी संख्या 30 से 32 के बीच थी, जिनके नीचे छोटे गढ़पति आते थे. ये गढ़पति सैन्य चौकियों और टैक्स वसूली का कार्य किया करते थे.

पूरा सिस्टम गढ़ों से करता था कार्य: इन्हीं छोटे गढ़ों के जरिये बड़े गढ़ों की अन्य राज्यों से सैन्य निगरानी भी की जाती थी. ये एक पूरा सिस्टम था जो इन गढ़ों से कार्य किया करता था. ये एक सैन्य रणनीति और आर्थिक रणनीति का हिस्सा थे. उन्होंने बताया कि ये सारे गढ़ ऊंची-ऊंची पहाड़ियों पर थे, जिनसे पूरे इलाके में नजर रखी जाती थी. सैन्य कार्रवाई के लिए पहुंचना अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं था, यहां उस समय के हिसाब से सारी व्यवस्थाएं रहती थी.

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