जयपुर : प्रदेश की राजधानी जिसे "छोटी काशी" के नाम से भी जाना जाता है. पिंकसिटी में मकर संक्रांति का त्योहार केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि कौमी एकता का प्रतीक भी है. इस दिन पतंगबाजी का खास महत्व होता है और इसमें हिस्सा लेने वाले लोग विभिन्न समुदायों से होते हैं. खासकर पतंग के कारोबार से जुड़े अधिकांश लोग मुस्लिम समुदाय से हैं, जबकि मकर संक्रांति हिंदू समुदाय का त्योहार है. करीब आठ दशकों से जयपुर में यह पर्व दोनों समुदायों को साथ लेकर मनाया जाता है और इसका मुख्य स्थल हांडीपुरा बाजार है.
हांडीपुरा बाजार की शुरुआत तीन दुकानों से हुई थी, जो अब बढ़कर 100 से ज्यादा हो गई है. इस बाजार में सिर्फ जयपुर के ही नहीं, बल्कि दिल्ली और बरेली से भी व्यापारी पतंग और डोर बेचने के लिए आते हैं. यहां के व्यापारियों का कहना है कि यह क्षेत्र पतंग बनाने और बेचने का प्रमुख केंद्र बन चुका है. सवाई राम सिंह द्वितीय ने लखनऊ से विशेष रूप से पतंगबाजी के लिए परिवारों को हांडीपुरा में बसाया था और आज यही क्षेत्र पतंग और मांझे का हब बन गया है.
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कई राज्यों मे सप्लाई : यहां के 85 वर्षीय व्यापारी जाफर अंसारी बताते हैं कि वह पिछले 60 साल से पतंग के कारोबार में हैं. शुरुआत में यहां केवल कुछ ही दुकानें होती थीं, लेकिन अब यह जयपुर का सबसे बड़ा पतंग बाजार बन चुका है. उन्होंने बताया कि शहर में बनने वाली 80% पतंगें यहीं से बिकती हैं और यहीं से अन्य शहरों और राज्यों में सप्लाई होती हैं. पहले यहां पतंग बनाने का सामान पूरी तरह से स्थानीय स्तर पर तैयार होता था, लेकिन अब पतंग का सामान अन्य राज्यों से भी मंगवाया जाता है.
हांडीपुरा बाजार में विभिन्न प्रकार की पतंगें और मांझा उपलब्ध होते हैं. पतंगों की कीमत 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक होती है और मांझे की कीमत 700 से 2200 रुपए तक होती है. विशेष रूप से मकर संक्रांति के दौरान हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग यहां से पतंग और मांझा खरीदते हैं. हालांकि, चाइनीज मांझा पर प्रतिबंध है, इसलिए उसे यहां नहीं बेचा जाता.
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करोड़ों का व्यापार : पिछली मकर संक्रांति पर इस बाजार में लगभग 20 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ था. इस बार बाजार में और भी तेजी आई है. एक समय था जब राजा राम सिंह जलमहल की पाल पर पतंगबाजी के दंगल आयोजित करते थे और आज भी मकर संक्रांति के दिन जयपुर की पतंगबाजी एक प्रमुख पहचान बन गई है. यहां देश-विदेश से पर्यटक और एनआरआई भी आकर इस उत्सव का हिस्सा बनते हैं और पतंगबाजी का आनंद लेते हैं.